गिरती विकास दर से निपटने की चुनौती

रविंद्र सिंह भड़वाल

लेखक, दिव्य हिमाचल से संबद्ध रहे हैं

गिरावट के कारण किसी भी अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव को काफी हद तक उसे संचालित करने वाली आर्थिक नीतियां तय करती हैं, लिहाजा विकास दर में पिछड़ने के बाद सरकार को निष्पक्षता के साथ अपनी आर्थिक नीतियों की समीक्षा करनी होगी। सरकार को अब गैर-उत्पादक कार्यों पर धन बहाना बंद करना होगा। जैसे कि सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में मात्रात्मक विकास पर्याप्त रूप में कर लिया है…

आर्थिक सर्वेक्षण किसी भी अर्थव्यवस्था में संचालित आर्थिक गतिविधियों का एक सटीक लेखा-जोखा होता है। 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में जहां आर्थिक एवं सामाजिक जीवन के कई सकारात्मक पहलू प्रदेश की आर्थिक समृद्धि एवं खुशहाली को तसदीक करते हैं, वही प्रदेश की आर्थिक विकास दर में गिरावट प्रदेश सरकार और इसके तमाम अर्थशास्त्रियों के लिए चिंता का सबब होना चाहिए। विकास दर का सामान्य सा अर्थ किसी अर्थव्यवस्था या इसके किसी खास क्षेत्र में एक निश्चित अवधि में उत्पादन में बढ़ोतरी की दर को कहा जाता है। यह किसी भी अर्थव्यवस्था की आर्थिक हालत को मापने का एक सटीक तरीका माना जाता है। विकास दर में वृद्धि को मापते समय कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन की गणना की जाती है।

वित्तीय वर्ष 2018-19 में 7.1 फीसदी की तुलना में 2019-20 में यह घटकर 5.6 फीसदी के स्तर पर आ गई है, तो इस तथ्य को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अगर अर्थव्यवस्था कमजोर होगी, तो इसका असर हर अन्य क्षेत्र पर नकारात्मक रूप से पड़ेगा। गिरावट के कारण किसी भी अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव को काफी हद तक उसे संचालित करने वाली आर्थिक नीतियां तय करती हैं, लिहाजा विकास दर में पिछड़ने के बाद सरकार को निष्पक्षता के साथ अपनी आर्थिक नीतियों की समीक्षा करनी होगी। सरकार को अब गैर-उत्पादक कार्यों पर धन बहाना बंद करना होगा। जैसे कि सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में मात्रात्मक विकास पर्याप्त रूप में कर लिया है। प्रदेश भर में इतने विद्यालय एवं महाविद्यालय खोल दिए गए हैं कि जो शिक्षा जरूरतों को पूरा करने में हर तरह से सक्षम हैं।

यहां से अब शिक्षा के गुणात्मक विकास के प्रयास होने चाहिए, लेकिन अब यहां से अगर किसी भी नए स्कूल या कालेज को खोलने की घोषणा होगी, तो ऐसे खर्च गैर-उत्पादक की श्रेणी में रखे जाएंगे और ऐसा हर कदम प्रदेश के आर्थिक विकास को नकारात्मक रूप से ही प्रभावित करेगा। दूसरा, हिमाचल प्रदेश समेत पूरा देश हाल ही में किए गए आर्थिक सुधारों के दौर से गुजर रहा है, जिसमें नोटबंदी और जीएसटी प्रमुख हैं। इन सुधारों के कारण अल्पकाल में उद्योग-धंधे, रोजगार, बचत और अंततः मांग भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं। इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ समय से देश में एक तरह की मंदी का माहौल बना हुआ है। इसके कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की विकास दर भी पांच फीसदी के आसपास बनी हुई है। यह भी एक बड़ा कारण माना जाएगा कि हिमाचल प्रदेश की विकास दर 5.6 फीसदी के स्तर पर ठहर कर रह गई। तीसरा बड़ा कारण वित्तीय अनुशासन की कमी माना जाएगा। एक तरफ  जहां प्रदेश में ऋण की सीमा 50,000 करोड़ को पार कर चुकी है, वहीं आज भी कई गैर-जरूरी खर्च बदस्तूर जारी हैं। इन्हीं खर्चों के कारण राजकोषीय घाटा 7,272 करोड़ और राजस्व घाटा 684 करोड़ तक पहुंच चुका है।

अगर भविष्य में सरकार वित्तीय अनुशासन को अपनी कार्य पद्धति में न अपना पाई, तो यह वित्तीय संकट आने वाले समय में और भी गहराता जाएगा। विकास दर को बढ़ाने के उपाय भविष्य के इस आर्थिक संकट से निपटने के लिए प्रदेश सरकार को अपनी नीतियों एवं योजनाओं को और भी स्पष्टता और दूरदर्शिता के साथ निर्धारित करना होगा। इसके तहत प्रदेश को आर्थिकी में आय के कुछ नए स्रोत जोड़ने होंगे। जिस प्रदेश की 90 फीसदी आबादी गांवों में बसती है, वहां यदि स्वरोजगार के व्यावहारिक प्रयास किए जाएं, तो निश्चित तौर पर प्रदेश की आर्थिक हालत इससे कुछ हद तक तो सुदृढ़ होगी। पर्यटन उद्योग ऐसा क्षेत्र है, जिसने प्रदेश को अब तक काफी कुछ दिया है और राजस्व को भरने हेतु भविष्य की कई संभावनाएं समेटे हुए है। ऊपर से यह एक ऐसा क्षेत्र है कि पहाड़ी राज्य की पर्यावरणीय दुश्वारियां भी इस मार्ग में आड़े नहीं आने वाली।

लिहाजा एक स्पष्ट एवं दूरदर्शी पर्यटन नीति तैयार करते हुए उसे अमल में लाया जाए, तो इससे यकीनन आर्थिकी को आने वाले वर्षों में संबल मिलेगा। तीसरा प्रदेश में अब अधोसंरचना का एक ऐसा ढांचा तैयार करना होगा, जिससे ज्यादा से ज्यादा निवेश को आकर्षित किया जा सके। इसके अंतर्गत निवेश आकर्षित करने का जो महाअभियान धर्मशाला में आयोजित इन्वेस्टर मीट से शुरू हुआ है, उसे अब चरणबद्ध तरीके से और भी शिद्दत के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है। इस तरह आर्थिकी के नए स्रोत सृजित करने के साथ-साथ सरकारी खर्च को भी नियंत्रित करना होगा। लिहाजा वित्तीय अनुशासन आर्थिक विकास की एक अनिवार्य शर्त हमेशा बनी रहेगी।

बजट से निकली राहें 20,000 नए रोजगार सृजित करने की घोषणा और कर्मचारियों को जो वित्तीय सौगातें दी गई हैं, उससे निश्चित तौर पर मांग में वृद्धि होगी। ये घोषणाएं आर्थिक विकास दर को आने वाले समय में बढ़ाने में मददगार साबित होंगी। नए हेलिपोर्ट और हवाई अड्डों के विस्तारीकरण के लिए 1,013 करोड़ रुपए का जो धन आबंटित किया गया है, उससे अधोसंरचना के विकास को एक पुख्ता आधार मिल सकता है। हालांकि रेल कनेक्टिविटी के विस्तार की बेडि़यां अब भी निवेश को आकर्षित करने में बाधा बनी रहेंगी। इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए मानव संसाधन को काबिल बनाने की सोच आर्थिक रूप से संपन्न राज्य बनाने के इरादे जाहिर करती है।

बेशक आर्थिक मोर्चे पर फिलहाल सूरत इतनी भयावह नहीं है, फिर भी विकास दर में गिरावट को गंभीरता से लेते हुए भविष्य की रणनीति तैयार करनी होगी। ऐसा इसलिए कि अगर अर्थव्यवस्था कमजोर होगी तो इसका असर हर अन्य क्षेत्र पर नकारात्मक रूप से पड़ेगा। हाल में प्रस्तुत किए गए बजट में इस संकट से उभरने की एक झलक तो मिलती ही है, अब देखना होगा कि इस विजन को धरातल पर उतारने में सरकार किस हद तक कामयाब हो पाती है।