गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

मंत्र कहता है वेदोक्त शुभ कर्म किए बिना कर्मों से छूटने का अन्य कोई उपाय नहीं है। अतः हम हठयोग में यह मन न बनाएं कि आज से हम कर्मफल का त्याग करते हंै। केवल वेद, शास्त्र, गीता आदि ग्रंथों को पढ़कर बिना यज्ञ, योगाभ्यास आदि नैतिक शुभ कर्म आचरण में लाएं…

गतांक से आगे…

यही कारण है कि पढे़-लिखे, अनपढ़,कई प्रकार के साधु-संत आज गद्दी के लिए अथवा अपनी इच्छा पूर्ति के लिए राग-द्वेष में फंसे कई प्रकार की लड़ाइयां लड़ते देखे गए हैं,जिनका वर्णन अखबारों और दूरदर्शन (टी.वी)से प्राप्त होता रहता है। हम वेदाध्ययन द्वारा वेदानुकूल शुभ कर्म करें। इस संदर्भ में यजुर्वेद जो कर्मकांड है,उसके अंतिम 40वें अध्याय का दूसरा मंत्र प्रमाणिक है। उसमें कहा हे जीव तू वेदों के अनुसार शुभ कर्म करता-करता सौ वर्ष की सुखमय आयु प्राप्त कर। इससे तू कर्मफल में कर्मों में लिप्त भी नहीं होगा। अर्थात तुझे कर्मफल नहीं भोगने होंगे। मंत्र कहता है वेदोक्त शुभ कर्म किए बिना कर्मों से छूटने का अन्य कोई उपाय नहीं है। अतः हम हठयोग में यह मन न बनाएं कि आज से हम कर्मफल का त्याग करते हंै। केवल वेद, शास्त्र, गीता आदि ग्रंथों को पढ़कर बिना यज्ञ, योगाभ्यास आदि नैतिक शुभ कर्म आचरण में लाएं। ऐसा न कहें कि आज से हमने ग्रंथों को सुनकर यह निश्चय कर लिया है कि हम कर्मफल का त्याग कर देंगे। इस प्रकार कर्मफल का त्याग कभी भी नहीं होता। श्लोक 9/29 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि मैं सब भूतों में समान रूप से हूं। मुझे न किसी से द्वेष है,न कोई प्रिय है किंतु जो मुझे भक्ति सहित भजते हैं अर्थात मेरी उपासना करते हैं वे मुझमें और मैं भी उनमें हूं। भाव- सामवेद मंत्र 1232 के ही भाव श्रीकृष्ण महाराज ने श्लोक 9/29/ में कहे हैं कि ईश्वर सब भूतों अर्थात जड़ और चेतन दोनों जगत में समान रूप से व्यापक है। अर्थात प्रत्येक कण,प्रत्येक बिंदु में वह परमेश्वर पूर्ण है, न कहीं कम है, न कहीं ज्यादा है। वैसे भी ऋग्वेद मंत्र 6/50/14 में कहा है कि वह ‘अजःएक पात’ अर्थात जन्म-मृत्यु से परे रहित और सदा हर काम में एक रस है।                                         – क्रमशः