तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

डाक्टर ने देखकर बताया- ‘यह मिर्गी का दौरा नहीं है।’ मिर्गी के दौरे में रोगी एडि़यां रगड़ता है। उसका संपूर्ण शरीर ऐंठता है। उसके मुंह से झाग निकलते हैं। मिर्गी के यह मुख्य लक्षण हैं, पर वहां तो एक भी ऐसा लक्षण न था। राजेश केवल बेतरह हांफता रहता। उसका उतार-चढ़ाव बढ़ता जाता। अंत में एक लंबी सीत्कार लेकर वह एक ओर लुढ़क जाता…

-गतांक से आगे…

शरीर का दौरा समझकर उसे डाक्टरों, वैद्यों, हकीमों को दिखलाया गया। दौरा पड़ने पर खबर देकर डाक्टर को भी बुलवाया गया। डाक्टर ने देखकर बताया- ‘यह मिर्गी का दौरा नहीं है।’ मिर्गी के दौरे में रोगी एडि़यां रगड़ता है। उसका संपूर्ण शरीर ऐंठता है। उसके मुंह से झाग निकलते हैं। मिर्गी के यह मुख्य लक्षण हैं, पर वहां तो एक भी ऐसा लक्षण न था। राजेश केवल बेतरह हांफता रहता। उसका उतार-चढ़ाव बढ़ता जाता। अंत में एक लंबी सीत्कार लेकर वह एक ओर लुढ़क जाता। हांफता फिर भी…सांसें शनैः शनैः रुकने लगतीं और तब धीरे-से राजेश आंखें खोल दिया करता। यह कौनसी और कैसी बीमारी थी, जिसे डाक्टर पकड़ नहीं पा रहे थे। राजेश को इस प्रकार के दौरे बराबर जारी थे। अंत में इसे भूत-प्रेत का चक्कर समझा गया। तांत्रिकों को बुलाया गया। उन्होंने तब देखकर अपना ‘उपाय’ किया और बोले- ‘अब यह ठीक हो गया है।’ उनका उपाय हृदय विदारक था। दौरे के दौरान पहले तो राजेश को हंटरों से पीटा गया था। आश्चर्य! राजेश चीख-चीख उठता था, एक भी निशान उसके शरीर पर न पड़ रहा था। अंत में उसे तांत्रिक ने ‘रक्षा कवच’ बांध दिया था। फिर वह खुश हो गया था। ‘चली गई।’ वह बुदबुदाए थे। फिर आश्वस्त कर गए। अब कुछ नहीं  होगा। उनके जाने के बाद राजेश पांच-छह दिनों तक एकदम ठीक रहा। फिर अचानक यह ‘दौरा’ पड़ गया। माता-पिता दोनों एक-दूसरे का मुंह आश्चर्य से ताकने लगे। शिथिल, थका-मांदा, राजेश चुपचाप लेटा था। उसका चेहरा भ्रम से भरा था। ‘ये तो फिर शुरू हो गया।’ उनका स्वर चिंतित था। ‘हां।’ पिता बोले- ‘मैं आर्यनव से बात करूंगा।’ ‘उनको बुलाकर फिर दिखाओ।’ पिता ने ठीक ऐसा ही किया। वह तांत्रिक को सब बतलाकर ले आए। तांत्रिक के सामने ही राजेश को दौरा आ गया। आर्यनव ने अपना ‘उपाय’ किया। अचानक वह भरभराकर पीछे की तरफ पड़ गए। ऐसा लगा मानो कसकर किसी ने उन पर प्रहार किया हो। ‘अ…अरे…परे हट।’ वह घबराकर बोला। बड़ी कठिनता से वह अपनी रक्षा कर पा रहे थे। फिर उनके हाथ-पैर ढीले पड़ गए। वह निराश होकर बोले- ‘मेरे वश की बात नहीं है।’ आर्यनव निराश होकर बैठ गया। राजेश का दौरा लगातार चलता रहा और फिर उसी प्रकार समाप्त हो गया जिस प्रकार हमेशा समाप्त होता था। आर्यनव उसे असहाय-सी दशा में देखते रह गए। फिर चुपचाप उठकर चले गए। राजेश के माता-पिता एक-दूसरे का मुंह देखते रह गए। राजेश पर फिर वही भयंकर जानलेवा दौरे शुरू हो गए थे। तांत्रिकों ने हाथ पीछे खींच लिया था।