रेल में हिमाचली इजाफा

दौलतपुर चौक से सीधे जयपुर की तरफ निकली रेलगाड़ी हिमाचल के अपने सफर की कहानी भी है। यह महज पिंक सिटी को छूना नहीं, बल्कि रेल के संपर्कों में हिमाचल का इजाफा है। जाहिर है दौलतपुर चौक तक पहुंचा कारवां रेल विस्तार का प्रमुख आयाम है। हिमाचल की दृष्टि से इसे महज एक स्टेशन या जयपुर से जुड़ने की इबारत से कहीं आगे उस सत्य को अंगीकार करने की कोशिश है, जो हिमाचली कनेक्टिविटी का मानचित्र उकेरता है। पाठकों को याद होगा कि हमने कई बार इन्हीं कालमों में लिखा है कि हिमाचल में रेल यात्रा वाया ऊना, हवाई यात्रा वाया कांगड़ा एयरपोर्ट तथा एक्सप्रेस सड़क परियोजनाएं वाया हमीरपुर प्रदेश की भौगोलिक संरचना को कनेक्टिविटी के खाके से परिपूर्ण कर सकती हैं। विडंबना यह है कि कनेक्टिविटी हो, विकास का ढांचा या प्रदेश के हित का संतुलन, सदैव राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ही परिलक्षित होती है। यह दौर आज भी जारी है। कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार के बीच राजनीति के घूंघट स्पष्ट हैं। कुछ इसी तरह शिमला-मटौर और पठानकोट-मंडी फोरलेन परियोजनाएं रूठी राजनीतिक मिलकीयत की तरह कोने पर खड़ी हैं। हमारा यह मानना है कि रेल विस्तार में पठानकोट-जोगिंद्रनगर की पटरी को ब्रॉडगेज की पाजेब पहनाने के बजाय अंब-अंदौरा या दौलतपुर चौक तक पहुंची रेल का रुख ज्वालाजी की ओर मोड़ना होगा। हम बेशक सांसद एवं वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर को जयपुर से जुड़ती रेलयात्रा के लिए साधुवाद दें, लेकिन असली परीक्षा तो पटरी का आंतरिक हिमाचल से मिलन से ही पूरी होगी। ऊना रेल न केवल हमीरपुर-कांगड़ा या मंडी तक पहुंच सकती है, बल्कि आगे सीमेंट व सेब की ढुलाई का सफर तय कर सकती है। यह दीगर है कि जिस तरह हिमाचल सरकार मंडी हवाई अड्डे विस्तार को हजार करोड़ दे रही है, उस हिसाब से हमीरपुर ट्रेन पर अभी दिल पसीजा नहीं है। हमारा मानना है कि सर्वप्रथम ऐसी परियोजना का यथार्थ टेंपल ट्रेन प्रोजेक्ट में समझना होगा ताकि तीर्थ यात्रा से इसका वजूद सामने आए। यानी इसे हमीरपुर के बजाय मंदिर रेल परियोजना के मार्फत सर्वप्रथम ज्वालाजी मंदिर से जोड़ने का काम करना होगा, ताकि आगे चलकर यह दियोटसिद्ध व नयनादेवी के श्रद्धालुओं को मंजिल तक पहुंचाए। दूसरी तरफ ज्वालाजी से कांगड़ा, चामुंडा से आगे मंडी-पठानकोट तक या हमीरपुर से आगे मंडी और रामपुर बुशहर तक का खाका बना सकती है। प्रदेश की कनेक्टिविटी दरअसल अलग-अलग ट्रैवल कल्चर की उत्पत्ति भी कर रही है। सड़क परियोजनाएं अपने साथ शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, निवेश, आर्थिकी, विकास तथा सामाजिक प्रगति की सूचक हैं। एयरपोर्ट विस्तार से हाई एंड टूरिज्म तथा आईटी के क्षेत्र में प्रदेश बहुत कुछ कर सकता है। रेल विस्तार से हिमाचल राष्ट्र से जुड़ता है तथा घरेलू पर्यटन को नई आवाज देने के साथ-साथ धार्मिक यात्राओं को निखार सकता है। ऐसे में ऊना ट्रेन का रुख प्रभावशाली ढंग से भीतर की ओर मोड़ना हिमाचल की प्राथमिकता बननी चाहिए। अगर इसे टेंपल टूरिज्म रेल प्रोजेक्ट के रूप में देखा जाए, तो विभिन्न आस्था केंद्रों के जरिए हिमाचल अपनी कनेक्टिविटी सुधार सकता है। कोंकण रेल परियोजना की तर्ज पर मंदिर रेल परियोजना के तहत ऊना-नादौन के गुरुद्वारे, चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, कांगड़ा, चामुंडा, बैजनाथ, दियोटसिद्ध, नयनादेवी तथा मंडी-कुल्लू के अनेक धार्मिक स्थल व बौद्ध मठ भी जुड़ सकते हैं। प्रमुख एक दर्जन मंदिरों की आय व जमा पूंजी को जोड़ लें, तो आरंभिक तौर पर ही हिमाचल कम से कम हजार करोड़ रुपए का बंदोबस्त कर लेगा। कोंकण रेल परियोजना भी इसी तरह राज्य व केंद्र के बीच 50-50 वित्तीय सहयोग से पूर्ण हुई है। अतः राज्य के हजार करोड़ तब रेल की साझेदारी में परियोजना का आकार दो हजार करोड़ तक पहुंचा देगा। एक बार रेल चिंतपूर्णी व ज्वालाजी मंदिरों को जोड़ दे, तो श्रद्धालुओं की यात्रा व दर्शन से रेल कर वसूल कर इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। बहरहाल जयपुर से रेल द्वारा जुड़ कर हिमाचल अपनी संभावनाओं को पुष्ट कर रहा है और इस तरह वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर प्रगति का एक विराम हटा रहे हैं। प्रदेश के सभी सांसदों, मंत्रियों और विधायकों को इसी तरह की परियोजनाओं के लिए विजन, विचार, संकल्प और नवाचार खड़ा करना होगा।