सरकारी प्रकाशनों में हिमाचली साहित्य

रतनचंद निर्झर

मो.-9459773121

साहित्य, कला व संस्कृति के संवर्धन में जब सरकारी पक्ष से भी प्रोहत्साहन मिलता है तो साहित्यकार, कलाकार व संस्कृति कर्मी के रचनाकार के रचना कर्म में और ऊर्जा जागृत होती है और वे दुगने उत्साह के साथ अपनी रचनाधर्मिता का निर्वहन करते हैं। इस संदर्भ में पचास के दशक में हिमाचल प्रदेश में ज्यादातर लेखक शिक्षा विभाग से जुड़े होते थे, अध्यापन के साथ-साथ सतत अध्ययन प्रवृत्ति  से शिक्षक वर्ग का  लेखन की ओर रुझान बढ़ता गया। निजी प्रयासों और कुछ साहित्यिक संस्थाओं के सामूहिक प्रयत्नों से हिंदी, पहाड़ी, उर्दू भाषा में साहित्य सृजन किताबों के रूप में सामने आया। राज्य गठन के समय शिक्षा विभाग के अलावा और कोई ऐसा महकमा मौजूद नहीं था जो इस तरह के कार्यकलापों में सहयोग करता। लेखकों के निजी प्रयासों से हिमाचल के प्रकाशकों के सहयोग से कुछ एक पुस्तकें प्रकाशन में आईं। प्रदेश लोक संपर्क विभाग द्वारा अप्रैल 1955 में मासिक पत्र हिमप्रस्थ प्रारंभ किया गया जो यहां के लेखकों के लिए एक नई सुबह लेकर आया। यह प्रदेश की ओर से सरकारी क्षेत्र की पहली शुरुआत थी। लेखकों की एक नई जमात सामने आई। हिमप्रस्थ मासिक पत्रिका ने जहां अपने करीब 65 साल के सफर में प्रदेश के विभिन्न रचनाकारों को मंच प्रदान किया, वहीं दूसरी तरफ  राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। वर्ष 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार के कार्यकाल में प्रदेश लोक संपर्क विभाग की तरह साप्ताहिक पत्र गिरिराज का प्रकाशन शुरू हुआ। शुरू में इसमें पहाड़ी भाषा के लिए दो पृष्ठ रखे गए, जिसमें प्रदेश के विभिन्न पहाड़ी रचनाकारों की विविध रचनाएं प्रकाशित होती रहीं, जिनमें कहानी, कविता, एकांकी के अलावा अनूदित रचनाएं भी शामिल रहीं। हिंदी में विकासात्मक लेखों के अलावा फीचर, कहानी, कविताएं, शोध व संस्कृति से संबंधित लेख भी इसमें प्रकाशित हुए। पंचायती राज विभाग द्वारा मासिक पत्रिका पंच जगत, वन विभाग की पत्रिका वन संदेश सहकार दर्पण, प्रदेश विधानसभा की विधान माला के अलावा समय-समय पर राज्य व अंतरराष्ट्रीय मेलों में प्रकाशित होने वाली स्मारिकाओं में भी साहित्यिक रचनाओं को यथावत प्रकाशित किया गया, जिसमें स्थानीय लेखकों की रचनाओं को प्राथमिकता दी जाती रही। भाषा संस्कृति विभाग के गठन से पूर्व राजभाषा राज्य भाषा संस्थान जो कि शिक्षा विभाग के अंतर्गत हुआ करता था, ने भी कुछ पुस्तकों का प्रकाशन किया जिनमें प्रदेश के लेखकों की रचनाएं शामिल रहीं। विभाग के गठन के उपरांत त्रैमासिक पत्रिका हिम भारती शुरू की गई जो कि पहाड़ी भाषा में रचनाएं प्रकाशित करती थी। पहाड़ी की इस पत्रिका के माध्यम से पहाड़ी भाषा को प्रगति की एक राह उपलब्ध हुई। इसी बीच हिमाचल प्रदेश भाषा संस्कृति विभाग की द्विमासिक विपाशा नाम की पत्रिका प्रारंभ हुई। इस पत्रिका ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान बनाया व इसकी गिनती देश की नामी-गिरामी पत्रिका में होने लगी। हिमाचल प्रदेश कला संस्कृति और भाषा अकादमी के गठन के उपरांत शोध पत्रिका सोमसी का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। पहाड़ी पत्रिका हिम भारती का संपादन अकादमी की ओर से होने लगा व कालांतर में इसे त्रैमासिक से छमाही कर दिया गया। अकादमी द्वारा संस्कृत भाषा में श्यामला पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है जिसमें देश के संस्कृत विद्वान लेखों के साथ-साथ यहां के संस्कृत लेखकों की रचनाओं को भी बराबर से प्रकाशित किया जाता है। प्रदेश भाषा विभाग द्वारा काफी अरसे तक उर्दू भाषा की पत्रिका फिक्रो फन का प्रकाशन किया जाता रहा है। 1970 से आज तक भाषा विभाग और कला, संस्कृति, भाषा अकादमी द्वारा करीब सौ पुस्तकें देव परंपरा, कला, इतिहास, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य, मोनोग्राफ, शोध समीक्षा, जनजातीय लोक संस्कृति की दुर्लभ पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अतीत में प्रदेश सरकार के सरकारी व गैर सरकारी प्रकाशनों में हिमाचली साहित्य लेखन की प्रगति यात्रा जारी रही।