21 दिनों की लक्ष्मण रेखा

संपूर्ण देश में 21 दिनों का लॉकडाउन लागू हो चुका है। नागरिकों को इस दौरान घर में ही सिमटे रहना है। यह नजरबंदी या हिरासत नहीं है, बल्कि मौजूदा दौर में राष्ट्रधर्म और देशसेवा है। इनसानी सेहत और जिंदगी को बचाना है। प्रधानमंत्री ने आगाह किया है कि यदि इन 21 दिनों में भी नहीं संभले, तो देश और आपका परिवार 21 साल पीछे चला जाएगा। कई परिवार तो तबाह हो सकते हैं, लिहाजा देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने एक खूबसूरत उपमा का इस्तेमाल किया है कि सभी नागरिकों को अपने घर की दहलीज के बाहर एक लक्ष्मण-रेखा खींचनी है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से बचने के लिए वह लक्ष्मण रेखा न लांघी जाए। इस रेखा का ऐतिहासिक महत्त्व है कि लक्ष्मण रेखा लांघने के फलितार्थ क्या होते हैं। दुनिया के 44 देश संपूर्ण लॉकडाउन घोषित और लागू कर चुके हैं। जाहिर है कि इनसान आपस में बेहद कम मिल सकेंगे और सामाजिक दूरी का फार्मूला भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। अब कोरोना से बचने के लिए यही आखिरी चारा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ही यह फार्मूला दिया था, लिहाजा संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार और प्रधानमंत्री के इस फैसले की तारीफ  की है और भारत के समर्थन का ऐलान भी किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की निगाहें अब भारत के घटनाक्रम पर हैं। उसे हमारे देश  की क्षमताओं पर भरोसा है। चेचक और पोलियो के खिलाफ  सफल लड़ाई के बाद अब कोरोना के संदर्भ में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन को भारत से ही अपेक्षाएं हैं। इसके पीछे की दृष्टि और सोच यह हो सकती है कि चीन के बाद सबसे ज्यादा और घनी आबादी भारत में ही है। यदि संक्रमण सामुदायिक स्तर पर फैलता हुआ विस्तार पाता है, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन का ही आकलन है कि वह दौर किसी त्रासद प्रलय से कम नहीं होगा। ऐसी संभावनाओं के मद्देनजर पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन का फैसला बेहद मानवीय और दूरगामी लगता है। खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह एक किस्म से कफ्र्यू ही है, लेकिन भारत की गरीब, अनपढ़, अबोध, वंचित जमात का मानस अब भी लॉकडाउन की अनिवार्यता को समझ नहीं पा रहा है। इस जमात की मजबूरी भी है। महानगरों में एक छोटे से कमरे में 8-10 मजदूर रहते, सोते, खाते-पीते हैं। सोचिए कि यदि कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित होगा, तो उस वायरस का फैलाव कितनी तेजी से होगा? गरीब और मजदूर तबका पलायन करके गांवों को लौटा है। देश के गांवों में स्वास्थ्य और स्वच्छता के बुरे हाल हैं। यदि प्रधानमंत्री की 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद एक सामान्य भीड़ किराने, दूध, दवा और सब्जी आदि की दुकानों की तरफ  भागी है और वहां लंबी कतारें दिख रही हैं, तो साफ  है कि हमारी जनता भविष्य के प्रति आशक्ति नहीं है। देश की सरकारें, मीडिया, डाक्टर और बौद्धिक जन भारत के बुनियादी यथार्थ को एकदम नहीं बदल सकते। कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या 580 को पार कर चुकी है। हम वैश्विक आंकड़े नहीं दे रहे हैं, क्योंकि वे अत्यंत भयावह और खौफनाक हैं, लेकिन भारत में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लिहाजा इस लॉकडाउन का खौफ  मत खाइए। यह देश की अग्नि-परीक्षा का समय है। बेशक हमारी आर्थिक स्थितियां भी बेहतर नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने भी स्वीकार किया है कि हमें आर्थिक कीमत चुकानी पड़ेगी। फिलहाल संकट देश और नागरिकों को बचाने का है, लिहाजा लॉकडाउन का अक्षरश: पालन कीजिए। आर्थिक पैकेज भी घोषित होगा। वित्त मंत्री ने कुछ रियायतें दी हैं, लेकिन फिलहाल तो आंख लक्ष्मण रेखा पर होनी चाहिए। चीन, इटली, अमरीका के बाद हमें कोरोना का अगला केंद्र बिंदु नहीं बनना है। इसी के मद्देनजर घर में रहिए और 14 अप्रैल तक के वक्त बीतने का इंतजार कीजिए।