अप्रैल तोड़ के उत्पादन पर कोरोना का वार

पालमपुर – चाय पत्तियों के लिए बेहतरीन मौसम से इस बार चाय के पेड़ समय रहते पूरी तरह तैयार हैं। चाय बागान पूरे यौवन पर हैं, लेकिन कोविड-19 के कारण अप्रैल तोड़ की चाय की पैदावार कम रहने की आशंका बन रही है। चाय बागानों की हरियाली से चाय बागान मालिकों के चेहरे पर लाली तो है, लेकिन समस्या यह कि चाय पत्ती तुड़ा कर भेजी कहां जाए, क्योंकि कारखाने तो फिलवक्त बंद पड़े हैं और ये पत्तियां ताजी ही उपयोगी मानी जाती हैं। ऐसी परिस्थितियों में छोटे चाय उत्पादक तो अपने स्थानों पर पारंपरिक तरीकों से चाय तैयार कर अप्रैल तोड़ का उत्पादन बरकरार रखने की ओर कदम बढ़ा सकते हैं, लेकिन कारखाने पर निर्भर बड़े उत्पादकों के लिए श्रमिकों की कमी के साथ पत्तियों को बचाए रखना भी मुश्किल का सबब बन सकता है। इससे भारी डिमांड में रहने वाली अप्रैल तोड़ चाय का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। कांगड़ा चाय की मांग हर सीजन में बनी रहती है, पर अप्रैल तोड़ के नाम से जानी जाती चाय की डिमांड कुछ अधिक ही रहती है। इस सीजन की चाय की वर्षों से अलग ही पहचान है। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि अंग्रेजों के जमाने में अप्रैल चाय की फर्स्ट फ्ल्श चाय का प्रयोग सिर्फ रॉयल यानी राजा-महाराजा के परिवारों द्वारा ही किया जाता था। जानकारी के अनुसार अक्तूबर से मार्च का समय चाय के लिए डोरमेंसी यानी शीत निंद्रा का समय माना जाता है और इसके बाद अप्रैल में आने वाली कोपलों की बनी चाय गुणवत्ता और महक के मामले में बाकी सीजन की चाय से ऊपर रहती है। यही वजह है कि अप्रैल की चाय की मांग बाकी सीजन की चाय से अधिक रहती है। विज्ञानिकों के अनुसार अक्तूबर से मार्च तक तापमान कम रहने के बाद जब अप्रैल में तापमान बढ़ता है और इस समय जो टी बड्स तैयार होते हैं, वे अनेक मायनों में बाकि सीजन से अलग गिने जाते हैं। इस समय जमीन में अधिक मात्रा में न्यूट्रीयंट्स होने का लाभ चाय के पेड़ों को मिलता है। इस समय तैयार होने वाले बड्स और हरी पत्ती में पोलीफिनोल की अधिक मात्रा अप्रैल तोड़ की चाय की गुणवत्ता और महक बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। चाय उत्पादक संजीव सरोत्री कहते हैं कि मौजूदा हालात में वह स्वयं ही आवश्यक्तानुसार चाय पत्ती तोड़ कर खुद ही चाय बनाएंगे।