एक घंटे में कोरोना की जांच

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने बनाई पेपर स्ट्रिप आधारित किट, 500 रुपए में एक टेस्ट

नई दिल्ली-वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के त्वरित परीक्षण के लिए एक नई किट विकसित की है, जो पेपर स्ट्रिप आधारित है और एक घंटे के भीतर परिणाम बता देती है। इसकी लागत मात्र पांच सौ रुपए प्रति परीक्षण से भी कम है। सीएसआईआर से संबद्ध राजधानी स्थित जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह एक पेपर-स्ट्रिप आधारित परीक्षण किट है, जिसकी मदद से कम समय में कोविड-19 के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। यह पेपर स्ट्रिप-आधारित परीक्षण किट आईजीआईबी के वैज्ञानिक डा. सौविक मैती और डा. देबज्योति चक्रवर्ती की अगवाई वाली एक टीम ने विकसित की है। यह किट एक घंटे से भी कम समय में नए कोरोना वायरस (एसएआरएस-सीओवी-2) के वायरल आरएनए का पता लगा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आमतौर पर प्रचलित परीक्षण विधियों के मुकाबले यह एक पेपर-स्ट्रिप किट काफी सस्ती है और इसके विकसित होने के बाद बड़े पैमाने पर कोरोना की परीक्षण चुनौती से निपटने में मदद मिल सकती है। आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ देबज्योति चक्रवर्ती ने यहां बताया कि संक्रमण के शिकार संदिग्ध व्यक्तियों में कोरोना वायरस के जीनोमिक अनुक्रम की पहचान करने के लिए इस पेपर-किट में जीन-संपादन की अत्याधुनिक तकनीक क्रिस्पर-कैस-9 का उपयोग किया गया है। इस किट की एक खासियत यह है कि इसका उपयोग तेजी से फैल रही कोविड-19 महामारी का पता लगाने के लिए व्यापक स्तर पर किया जा सकेगा। डा. देबज्योति चक्रवर्ती ने कहा कि अभी इस परीक्षण किट की वैद्यता का परीक्षण किया जा रहा है, जिसके पूरा होने के बाद इसका उपयोग नए कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए किया जा सकेगा। इस किट के आने से वायरस के परीक्षण के लिए वर्तमान में इस्तेमाल की जाने वाली महंगी रियल टाइम पीसीआर मशीनों की जरूरत नहीं पड़ेगी। नई किट के उपयोग से परीक्षण की लागत करीब 500 रुपए आती है।

दो साल से कर रहे थे काम

आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे इस टूल पर लगभग दो साल से काम कर रहे हैं, लेकिन, जनवरी के अंत में, जब चीन में कोरोना का प्रकोप चरम पर था, तो उन्होंने यह देखने के लिए परीक्षण शुरू किया कि यह किट कोविड-19 का पता लगाने में कितनी कारगर हो सकती है। इस कवायद में किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए आईजीआईबी के वैज्ञानिक पिछले करीब दो महीनों से दिन-रात जुटे हुए थे।