कोरोना का यथार्थ बाकी है

फिलहाल देश में लॉकडाउन अंतिम चरण में है। एक सप्ताह ही शेष है, लिहाजा ये चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जाएगी या चरणबद्ध तरीके से इसे समाप्त किया जाएगा। मंगलवार को इस संदर्भ में मंत्री-समूह की बैठक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आवास पर हुई, लेकिन अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकेगा। वैसे देश के बौद्धिक, चिकित्सक और अर्थव्यवस्था से जुड़े वर्गों की दलीलें रही हैं कि लॉकडाउन को भारत जैसे विराट देश में लंबा नहीं खींचा जा सकता। इसके साथ यह भी हकीकत है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के मद्देनजर 62 इलाके ‘हॉट स्पॉट’ के तौर पर सामने आए हैं। यदि लॉकडाउन खोला जाता है, तो उन इलाकों में संक्रमण अधिक फैल सकता है, नतीजतन दूसरे इलाके भी उसकी चपेट में आ सकते हैं। कोरोना के खिलाफ  पूरी लड़ाई ही ध्वस्त हो सकती है। यह निर्णय प्रधानमंत्री के स्तर पर ही तब लिया जा सकता है, जब वह सभी मुख्यमंत्रियों की सहमति ले लेंगे। अभी तो यह भी कड़ा यथार्थ है कि हमारे 138 करोड़ की आबादी वाले देश में सोमवार शाम तक करीब 90,000 टेस्ट ही किए जा सके थे। उनसे जो निष्कर्ष सामने आए हैं, उनके आंकड़े देश को बताए जा रहे हैं। फिलहाल यह अर्द्धसत्य का ही दौर है, क्योंकि केंद्र और राज्यों के स्तर पर टेस्टिंग किट्स, मास्क, पीपीई (डाक्टरों का अंतरिक्ष यात्री जैसा लिबास) और अन्य चिकित्सा उपकरणों की भारी कमी है। भारत सरकार ने सिंगापुर की एक कंपनी को 80 लाख पीपीई का आर्डर दिया है। सिंगापुर की आपूर्ति 11 अप्रैल से शुरू होगी। चीन ने भी 1.70 लाख पीपीई भेजे हैं। अच्छी खबर यह है कि इस आपातकाल में भारत की ही 17 कंपनियां हररोज 50,000 से ज्यादा पीपीई बना रही हैं। इस पर कपड़ा मंत्रालय की पूरी निगरानी है। कपड़ा कंपनियां बंद होने से मजदूरों पर जो संकट आ सकता था, उसके मद्देनजर मजदूरों को इस उत्पादन में लगाया गया है। संभावना है कि बहुत जल्द हमें अमरीका, चीन, थाईलैंड के आसरे नहीं रहना पड़ेगा। इसके अलावा रेलवे और डीआरडीओ भी पीपीई बनाने में जुटे हैं। बहरहाल टेस्टिंग का रैपिड दौर भारत में अब शुरू हो चुका है। बेशक टेस्ट, जांच की व्यापकता बढ़ेगी, तो कोरोना संक्रमण के बढ़े मामले भी सामने आएंगे। उसी से संक्रमण के फैलाव को जाना जा सकता है। दक्षिण कोरिया इसका ज्वलंत उदाहरण है। उसने लॉकडाउन घोषित नहीं किया, लेकिन व्यापक स्तर पर टेस्टिंग शुरू की थी। नतीजतन यथार्थ उसके सामने है और वह सबसे सुरक्षित देश माना जा रहा है। कोरोना संक्रमण नियंत्रण में है। फिर भी हम अमरीका, यूरोपीय देशों और दक्षिण कोरिया से तुलना नहीं कर सकते। हमारी आबादी उनसे कई गुना ज्यादा है। हमारी युवा आबादी करीब 65 फीसदी है, जबकि अन्य देशों में 20-25 फीसदी आबादी ही युवा है, लेकिन टेस्टिंग में हम फिसड्डी रहे हैं। यह हमारी मजबूरी भी है, क्योंकि संसाधन बेहद सीमित रहे हैं। कल्पना करें कि यदि डाक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ  सुरक्षित लिबास में नहीं होंगे, तो टेस्ट और इलाज कैसे संभव होंगे? वैसे भी कोरोना के इन योद्धाओं के भी संक्रमित होने की खबरें लगातार आ रही हैं और भयभीत कर रही हैं। भारत में 10 लाख की आबादी पर टेस्ट का औसत सिर्फ 102 है, जबकि अमरीका का यही औसत 5000 से अधिक है। बहरहाल कोरोना के खिलाफ  यह लड़ाई अभी कितनी लंबी चलेगी, यह कहना असंगत होगा, लेकिन संक्रमण के यथार्थ का सामने आना भी अभी शेष है। उसी के बाद लड़ाई का विश्लेषण किया जा सकता है। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना के 15-20 फीसदी मरीज ऐसे आएंगे, जिनमें लक्षण नहीं होंगे, लेकिन जांच करने पर वे पॉजिटिव मिलेंगे। ऐसे अनुभव भारतीय डाक्टरों ने महसूस किए होंगे। तो फिर कैसे दावा किया जा सकता है कि हम दूसरे देशों की तुलना में सुरक्षित स्थिति में हैं? फिलहाल हमें सावधान रहना है, बढ़ते हुए मामलों से घबराना नहीं है और न ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना है, लेकिन यह भ्रम भी मत पालें कि कोरोना का मतलब मौत होता है।