नरक न बन जाए धरती

-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा

22 अप्रैल को धरती दिवस संपूर्ण विश्व में मनाया गया। लेकिन आज जिस तरह पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से मुसीबत में आ घिरा है और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से चिंतित है, उसके लिए तो प्रतिदिन ही धरती दिवस मनाया जाना चाहिए और जो धरती पर बढ़ रहे प्रदूषण से कुंभकर्णी नींद सो रहे हैं, उन्हें जगाने के लिए भी यह जरूरी है। आज जरूरत है लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने की, धरती को हरा-भरा बनाने की। अगर भारत की बात की जाए तो यहां दिन-प्रतिदिन हरे-भरे जंगलों की जगह कंकरीट के जंगल बनते जा रहे हैं। सड़कों का विस्तार करने के लिए भी धड़ाधड़ वृक्षों को काटा जा रहा है। जहां कभी हरे-भरे खेत होते थे या फिर वृक्षों की ठंडी-ठंडी छांव होती थी, वहां अब कई भवन या फिर औद्योगिक इकाइयां स्थापित हो गई हैं। आज धरती पर जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण इत्यादि इस कद्र बढ़ता जा रहा है कि धरती शायद यही पुकार कर रही होगी कि हे मानव जाति! अगर तूने मुझ पर जुल्म करना बंद नहीं किए तो वो दिन दूर नहीं है जब तेरा मुझ पर रहना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जाएगा। अतः धरती को सही सलामत रखने के लिए इसे हर तरह के प्रदूषण से बचाने के लिए सभी को प्रयास करने चाहिएं। तभी धरती स्वर्ग बनी रह सकती है अन्यथा यहां पर रहना नरक से बदतर हो जाएगा और एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब धरती पर प्राणी जाति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। अभी भी मौका है बढ़ते प्रदूषण को रोकने के उपाय किए जाएं, धरती को संभालने के लिए सरकारों और आमजन को बिना किसी स्वार्थ के एकजुट हो प्राथमिक और युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे। तभी भविष्य में कोरोना जैसे खतरों से बचा जा सकता है और धरती को नरक बनने से रोका जा सकता है।