भक्ति के फल

श्रीश्री रवि शंकर

जो कोई विभिन्न देवी-देवताओं को पूजता है, वह उनमें से एक बन जाता है, लेकिन मेरे भक्त मुझको प्राप्त करते हैं। हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जो कभी नहीं बदलता और हम सबने कभी न कभी किसी न किसी रूप में इसका अनुभव किया है। यदि हम अपने इस कभी न बदलते हुए स्वरूप की ओर केंद्रित होंगे, तो फिर ज्ञान का भोर होगा कि हम सब शाश्वत हैं और हम सब यहां हमेशा रहेंगे…

संपूर्ण जीवन में आनंद की खोज में लगे रहने से भी जब लाभ न मिले, तो व्यक्ति को भक्ति की ओर केंद्रित होना चाहिए। अपने पूरे जीवन काल में लोग छोटी-छोटी चीजों को पाने की कामना करते हैं जैसे पदोन्नति और अधिक से अधिक धन या संतोषजनक रिश्ता, लेकिन यह सभी कुछ बहुत सीमित दायरे में होता है और कभी भी दीर्घकालिक आनंद और संतोष प्रदान नहीं कर सकता। अधिकांश लोग अपने जीवन में इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रयास करते रहते हैं और उन्हें सिर्फ  छोटे लाभ ही प्राप्त होते हैं। इस तरह के विचार और इच्छाएं सीमित मानव बुद्धि के कारण उत्पन्न होती है और यह उत्तम होगा कि हम इसमें न उलझें। बाहर की सुंदरता, लक्ष्य और इच्छाओं से प्रेम करने से व्यक्ति को सिर्फ  अल्प कालिक परिणाम प्राप्त होते हैं, लेकिन जो लोग अपने भीतर के द्रष्टा के प्रति समर्पित रहते हैं उन्हें शाश्वत परिणाम प्राप्त होते हैं। ध्यान ही वह प्रक्रिया है जिससे मन को बाहर की सुंदरता से द्रष्टा की भक्ति की ओर केंद्रित किया जा सकता है। आपका बाहर की सुंदरता पर इसलिए विश्वास होता है क्योंकि आपको उससे कुछ प्राप्त हो रहा होता है, लेकिन आप जो कुछ भी प्राप्त करते हैं वह आपके भीतर के विश्वास के कारण प्राप्त होता है क्योंकि वह द्रष्टा की भक्ति है। व्यक्ति जीवन में जो भी प्राप्त करता है वह अपनी श्रद्धा की वजह से प्राप्त करता है। भक्ति भीतर से आती है और इसलिए यह कहा जाता है कि भक्ति ही सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भी भक्ति किसी व्यक्ति के पास है वह मेरे और सिर्फ मेरी वजह से है और मैं ही सबसे शुद्ध चेतना हूं। जो कोई विभिन्न देवी-देवताओं को पूजता है, वह उनमें से एक बन जाता है, लेकिन मेरे भक्त मुझको प्राप्त करते हैं। हमारे भीतर कुछ ऐसा है जो कभी नहीं बदलता और हम सबने कभी न कभी किसी न किसी रूप में इसका अनुभव किया है। यदि हम अपने इस कभी न बदलते हुए स्वरूप की ओर केंद्रित होंगे, तो फिर ज्ञान का भोर होगा कि हम सब शाश्वत हैं और हम सब यहां हमेशा रहेंगे। हमारे भीतर के स्वयं को सब कुछ मालूम होता है, उसे अतीत और भविष्य का भी ज्ञान होता है। चेतना की शक्ति को न तो कम किया जा सकता है और न ही उसका विनाश हो सकता है। अकसर हमारी बाहर की ओर रहने वाली इंद्रियां जब विश्राम करती हैं, तो हम भीतर की ओर जा सकते हैं और फिर हम परमानंद का अनुभव कर सकते हैं जो की भीतर की ओर जाने से तुरंत प्राप्त होता है। भक्ति के फल कभी भी कम नहीं होते।