देवभूमि हिमाचल प्रदेश में सतधार कहलूर, ब्यासपुर आदि नामों से सुशोभित जनपद बिलासपुर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक मानचित्र पर एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसी जनपद मुख्यालय से करीब 20 किमी.की दूरी पर बंदला-परनाली धार के आंचल में आने वाला महर्षि मार्कंडेय तीर्थ स्थल अनायास ही धार्मिक पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। स्कंद पुराण अनुसार यहां ब्रह्मा के पंचम अवतार ऋषि मृकंडु धर्मपत्नी सहित निवास करते थे। ऋषि मृकंडु के कठोर तप से प्रसन्न होकर प्रजापिता ब्रह्मा ने उन्हें एक आशय की शर्त पर वर मांगने को कहा। उन्होंने पूछा कि वरदान स्वरूप आपको अल्पआयु कुशाग्र बुद्धिमान या दीर्घायु साधारण बुद्धिमान पुत्र चाहिए? ऋषि श्रेष्ठ ने अल्पायु कुशाग्र बुद्धिमान पुत्ररत्न की इच्छा प्रकट की। वरदान के प्रभाव से निश्चित समय उपरांत अलौकिक प्रकाश पुंज सदृश पुत्र की प्राप्ति पर दंपत्ति फूले नहीं समा रहे थे। ऋषि मृकंडु ने ग्रह नक्षत्रों की गति से बालक की अल्पायु जानकर शीघ्र ही उसका यज्ञोपवीत संस्कार करवा दिया। महर्षि वेदव्यास ने देव आज्ञा से ही मार्कंडेय को गुरुमंत्र स्वरूप सभी मनुष्यों को प्रणाम व अभिवादन करने का निर्देश दिया। बचपन से ही बालक के कठोर तप से देवराज इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। उन्होंने बालक मार्कंडेय की तपस्या को भंग करने के लिए पहले देवदूत वटी किशन, इंद्र दमन तथा बाद में अप्सराओं को भेजा। बाल तप के प्रभाव से वे सभी वहीं पानी के चश्मों में परिवर्तित हो गए। उन्हीं दिनों सप्तऋषि मृत्युलोक भ्रमण करते उधर से गुजरते हैं, तो बालक मार्कंडेय ने उन्हें प्रणाम करके चिरंजीवी होने का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। लेकिन जब अंतर्दृष्टि से उसकी आयु के तीन दिन शेष जानकर सप्तऋषि बालक मार्कंडेय सहित तत्क्षण ब्रह्मलोक में पहुंचे। प्रजापिता ब्रह्मा ने सप्तऋषियों की सारी बातें सुनकर चिरंजीवी आशीर्वाद का मान रखने हेतु मार्कंडेय को महामृत्युंजय मंत्र जाप का परामर्श दिया फिर अलौकिक बालक पुष्प भद्रा नदी के किनारे एक बड़ी शिला पर तप में लीन हो गए। बालक की बारह वर्ष आयु पूर्ण होने से कुछ पहर पहले यमदूतों द्वारा प्राण हरकर आत्मा को यमपुरी लाने के कार्य में असफल होने पर यमराज स्वयं मार्कंडेय के समक्ष पहुंचे। उनसे डरकर बालक ने शिवलिंग को पकड़कर महामृत्युंजय मंत्रोच्चारण जारी रखा। तत्क्षण भोलेनाथ प्रकट हुए तथा यमराज को उन्हें हानि न पहुंचाने का आदेश दिया। महर्षि मार्कंडेय को अमरत्व का वरदान बैशाखी की पूर्व संध्या पर मिलने की याद में तीन दिवसीय नौण स्नान सहित मार्कंडेय मेले का विधिवत आयोजन काफी पुरातन धर्म सांस्कृतिक धरोहर का द्योतक है। महर्षि मार्कंडेय मुख्य मंदिर के साथ ही शिव मंदिर, राम दरबार, राधा कृष्ण, शनिदेव, नवग्रह मंदिर, दत्तात्रेय आश्रम मंदिर आदि दर्शनीय हैं। यमराज मार्कंडेय भेंट दृश्य को प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र के शिल्पकारों ने बखूबी चित्रण किया है। मंदिर प्रांगण में पवित्र झरने के नीचे निर्मित स्नानाघरों में श्रद्धालुओं के स्नान की समुचित व्यवस्था है। मान्यता के अनुसार यहां स्नान से चर्म रोग, व्याधि बीमारियों के ठीक होने की लोकास्था प्रसिद्ध है। इस देव को बाल रक्षक देव भी माना जाता है। निःसंतान दंपति संतान प्राप्ति हेतु यहां अरदास करते व मनोकामना पूरी होने पर शिशु सहित भेंट चढ़ाने, तीर्थ स्नान हेतु आते अकसर देखे जा सकते हैं। जनश्रुति के अनुसार इस तीर्थ स्थल सहित समीपवर्ती इंद्र दमण, रोहिणी,महोदधि,वटी कृष्ण में स्नान करने से मृत्यु लोक के चौरासी चक्करों से मुक्ति मिलती है। चारधाम तीर्थयात्रा के अंतिम पड़ाव में इस तीर्थ स्थान में स्नान करने से भी यात्रा संपूर्ण होने की बात मानकर यहां तीर्थ यात्रियों का भी आवागमन होता रहता है। मंदिर के समीप ही मार्कंडेय, व्यास गुफा है, जिसके दूसरे छोर का बिलासपुर नगर की प्रसिद्ध व्यास गुफा में मिलना बताया जाता है। इस गुफा में दोनों महर्षि गूढ़ शास्त्र वेद पुराण चर्चा हेतु मिलते थे।
-रवि कुमार सांख्यान, बिलासपुर