महावीर जयंती : समाज को अन्धकार से निकालने वाले महापुरुष  

महावीर ने एक राजपरिवार में जन्म लिया था। उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, जिसका वे मनचाहा उपभोग भी कर सकते थे, किंतु युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की मोह-माया, सुख और राज्य को छोड़कर यातनाओं को सहन किया। सारी सुविधाओं का त्याग कर वे नंगे पैर पैदल यात्रा करते रहे…

भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा के उपदेश एक खुली किताब की भांति हैं। महावीर ने एक राजपरिवार में जन्म लिया था। उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, जिसका वे मनचाहा उपभोग भी कर सकते थे, किंतु युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की मोह-माया, सुख और राज्य को छोड़कर यातनाओं को सहन किया। सारी सुविधाओं का त्याग कर वे नंगे पैर पैदल यात्रा करते रहे।

परिचय

मानव समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर लाने वाले महापुरुष भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशिला देवी के यहां हुआ था। इस कारण जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयंती के रूप में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्तिपूर्वक मनाते हैं। बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था। जैन धर्मियों का मानना है कि वर्धमान ने कठोर तप द्वारा अपनी समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त की और विजेता कहलाए। उनका यह कठिन तप पराक्रम के समान माना गया, जिस कारण उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए।

वर्धमान नाम

जन्मोत्सव पर ज्योतिषियों द्वारा चक्रवर्ती राजा बनने की घोषणा की गई। उनके जन्म से पूर्व ही कुंडलपुर के वैभव और संपन्नता की ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई। अतः महाराजा सिद्धार्थ ने उनका जन्म नाम वर्धमान रखा। चौबीस घंटे दर्शनार्थियों की भीड़ ने राजपाट की सारी मर्यादाएं तोड़ दीं। वर्धमान ने लोगों में संदेश प्रेषित किया कि उनके द्वार सभी के लिए हमेशा खुले रहेंगे। वीर नाम- जैसे-जैसे महावीर बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उनके गुणों में बढ़ोतरी हो रही थी। एक बार जब सुमेरु पर्वत पर देवराज इंद्र उनका जलाभिषेक कर रहे थे, तब कहीं बालक बह न जाए, इस बात से भयभीत होकर इंद्रदेव ने उनका अभिषेक रुकवा दिया। इंद्र के मन की बात भांप कर उन्होंने अपने अंगूठे के द्वारा सुमेरु पर्वत को दबा कर कंपायमान कर दिया। यह देखकर देवराज इंद्र ने उनकी शक्ति का अनुमान लगाकर उन्हें वीर के नाम से संबोधित किया।

संमति का नाम

बाल्यकाल में महावीर महल के आंगन में खेल रहे थे। तभी आकाशमार्ग से संजय मुनि और विजय मुनि का निकलना हुआ। दोनों इस बात की तोड़ निकालने में लगे थे कि सत्य और असत्य क्या है? उन्होंने जमीन की ओर देखा तो नीचे महल के प्रांगण में खेल रहे दिव्य शक्तियुक्त अद्भुत बालक को देखकर वे नीचे आए और सत्य के साक्षात दर्शन करके उनके मन की शंकाओं का समाधान हो गया। इन दो मुनियों ने उन्हें संमति का नाम दिया और खुद भी उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे।

पराक्रम ने बनाया अतिवीर

 युवावस्था में लुका-छिपी के खेल के दौरान कुछ साथियों को एक बड़ा फनधारी सांप दिखाई दिया, जिसे देखकर सभी साथी डर से कांपने लगे, कुछ वहां से भाग गए, लेकिन वर्धमान महावीर वहां से हिले तक नहीं। उनकी शूरवीरता देखकर सांप उनके पास आया, तो महावीर तुरंत सांप के फन पर जा बैठे। उनके वजन से घबराकर सांप बने संगमदेव ने तत्काल सुंदर देव का रूप धारण किया और उनके सामने उपस्थित हो गए। उन्होंने वर्धमान से कहा, स्वर्ग लोक में आपके पराक्रम की चर्चा सुनकर ही मैं आपकी परीक्षा लेने आया था। आप मुझे क्षमा करें। आप तो वीरों के भी वीर अतिवीर हैं।

महावीर जयंती

इन चारों नामों को सुशोभित करने वाले महावीर स्वामी ने संसार में बढ़ती हिंसक सोच, अमानवीयता को शांत करने के लिए अहिंसा के उपदेश प्रसारित किए। उनके उपदेशों को समझने के लिए कोई विशेष प्रयास की जरूरत नहीं। उन्होंने लोक कल्याण का मार्ग अपने आचार-विचार में लाकर धर्म प्रचारक का कार्य किया। ऐसे महान चौबीस तीर्थंकरों के अंतिम तीर्थंकर महावीर का जन्मदिवस प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रातःकाल प्रभात फेरी निकालते हैं। तत्पश्चात स्वर्ण एवं रजत कलशों से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है। तदुपरांत भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठाकर उत्साह और हर्सोल्लासपूर्वक जुलूस निकालते हैं। इस सुअवसर पर जैन श्रद्धालु भगवान को फल, चावल, जल, सुगंधित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित करते हैं।