हम सुराख न ढूंढें

कोरोना खौफ के बीच मानवीय चरित्र, सतर्कता, कर्त्तव्य परायणता तथा जागरूकता की समीक्षा भी हो रही है। मानवीय व प्रशासनिक शृंखलाओं को बाधित करने वाले यकीनन देश के दुश्मन हैं। जो संदिग्ध घर में छुप गए या जो लाभ के लिए कर्फ्यू का मजाक उड़ाते हुए अधिक कीमत वसूल रहे हैं, उन्हें धिक्कार है। सोलन से आया किस्सा इस बात को पुख्ता करता है कि व्यवस्था की आंतडि़यों में सुराख करने वालों की कमी नहीं। दरअसल शहर के धोबीघाट इलाके से बार-बार राशन की मांग पर जब महकमा सतर्क हुआ तो पाया कि इस पर भी कुछ लोग रोटियां सेंक रहे हैं। यानी राशन की भी जमाखोरी शुरू हो गई। आश्चर्य और यह सामाजिक होड़ भी है कि सरकारी सुविधाओं का भोग करते हुए हमारा लाभार्थी पक्ष खोटा हो जाता है। इसके कारणों पर जाएं तो हम सभी ऐसी व्यवस्था के पात्र बन चुके हैं, जहां सरकार के साथ चुनाव का सौदा है या सरकारी सुविधाओं की चोरी से हमारा चरित्र मालामाल होना चाहता है। इसी हिमाचल में सबसे बड़ा सवाल तो गरीब और गरीबी की चयन प्रक्रिया को लेकर है। बीपीएल परिवारों की शिनाख्त में जो दस्तूर पनपा है, उसकी मिलीभगत में न जाने कितने लोग नंगे हैं, लेकिन नंगे यथार्थ को नजरअंदाज किया जाता है। हम सभी परिक्रमा कर रहे हैं और हर बार एक नई सत्ता आजमा कर उसे कृतज्ञ होने का अवसर देते हैं। राशन के आबंटन में धन्य होने की उम्मीदें और तमाम स्कीमों के फलक पर राजनीति का ऐसा नक्शा बनाते हैं कि जो बीपीएल होने का तमगा खोजता है। सोलन की घटना वास्तव में हम सबकी मानसिकता का दृष्टिपत्र है। हम किसी भी चौराहे पर बिक सकते हैं, यकीन न हो तो थोक से परचून भाव तक घालमेल को देखें। हमारे चरित्र के चोर दरवाजों के लिए क्या कर्फ्यू और क्या सामान्य परिस्थितियां। जहां भी लाभ की कतार लगेगी, हमारी प्राथमिकताएं एक-एक करके बिक जाएंगी। हम सुराख ढूंढते हैं, या सुराख के बीच से निकलना हमारी असलियत है। बहरहाल दिल्ली मरकज ने भी कुछ सुराख ढूंढ ही लिए। यह चिंता का विषय है कि निजामुद्दीन लोकेशन से ज्ञात हुआ है कि इस दौरान आठ सौ चालीस हिमाचली लोगों का जमघट वहां से गुजरा है। यह एक पड़ताल का विषय है और जरूरी नहीं कि ये लोग विवादित मरकज का हिस्सा होंगे, फिर भी सुराख ढूंढेंगे तो पता चलेगा कि चोर रास्तों से हिमाचल लौटे लोग अपने साथ क्या लाए हैं। यह आशंका इसलिए भयावह नजर आती है कि जो मरकज से लौटे उनके आसपास कोरोना के लक्षणों का आरंभिक दौर शुरू हुआ है। बेहतर होगा निजामुद्दीन के आसपास से लैटे हिमाचली हेल्पलाइन नंबर पर अपनी-अपनी जानकारी दें। इस सारे झमेले के बीच हिमाचल जैसा छोटा राज्य अगर होम डिलीवरी सिस्टम को पुख्ता बनाने की कोशिश कर रहा है, तो इसे तवज्जो मिलनी चाहिए। यह पीरियड अपने आप में समीक्षा का अद्भुत दौर है। भले ही कोरोना वायरस के प्रकोप ने जीवन व लोगों के तालमेल को नए संघर्ष की तरफ धकेला है, लेकिन संयम व संतुलन की समीक्षा जारी रहेगी और जब यह दौर गुजर जाएगा तब हम कह पाएंगे कि एक जैसा सोच कर विपत्तियों पर काबू पाना कितना आसान होता है। यह कमोबेश हर स्तर पर देखा जाएगा कि जब फर्ज का चाबुक या विशेषाधिकार भी हमारे पास था, तो हम कितने संयम व संतुलन से चले। हिमाचल का प्रशासन यही कर रहा है और अब कर्फ्यू के बावजूद जनता भी खुद को पुलिस के सामने एक बेहतर नागरिक होने से प्रमाणित हो रही है। हम उन डाक्टरों के ऋणी हैं जो घर-परिवार से दूर चिकित्सा की दृष्टि को सशक्त करते हुए अपना संतुलन बनाए हुए हैं। खास तौर पर टीएमसी के सुपुर्द कोरोना के पॉजिटिव मामलों के बीच विभाग खुद प्रमाणित कर पाया, तो यह हिमाचल का एक सुखद पक्ष है। जाहिर है हिमाचल इस दौर में भी खुद को खरा साबित करने की काबिलीयत में चिकित्सा, पुलिस-प्रशासनिक व्यवस्था, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के साथ-साथ राज्य के अन्य लक्ष्यों को पूरा करेगा। इस हिसाब से इस दौर के बीच जीएसटी कलेक्शन का आंकड़ा सुधर रहा है या 6868 करोड़ लक्ष्य से आगे निकल कर 6900 करोड़ जुटा लिए तो यह नया संतुलन है, जो वक्त को कामयाब बनाएगा। कहना न होगा कि कोरोना बंद के दौरान भी इतिहास के अध्याय बंद नहीं होंगे और न ही सुशासन व नागरिक अनुशासन के संदर्भ खारिज होंगे। अगर हम संयम, विवेक और संतुलन से एक साथ चार कदम चलेंगे, तो रास्ते के कांटे हटेंगे और मंजिल पर पसरा सन्नाटा भी टूटेगा। हम व्यवस्था के सुराख ढूंढने के बजाय नागरिक समाज की तरह आपसी विश्वास को थामे रखें और यही परीक्षा व समीक्षा भी है कि जब कुछ करना था, तो हमने किया।