ईर्ष्या तुलना है

ओशो

ईर्ष्या तुलना है और हमें तुलना करना सिखाया गया है, हमनें तुलना करना सीख लिया है, हमेशा तुलना करते हैं। किसी और के पास ज्यादा अच्छा मकान है, किसी और के पास ज्यादा सुंदर शरीर है, किसी और के पास अधिक पैसा है, किसी और के पास करिश्माई व्यक्तित्व है। जो भी तुम्हारे आसपास से गुजरता है उससे अपनी तुलना करते रहो, जिसका परिणाम होगा, बहुत अधिक ईर्ष्या की उत्पत्ति, यह ईर्ष्या तुलनात्मक जीवन जीने का बाइ प्रोडक्ट है। अन्यथा यदि तुम तुलना करना छोड़ देते हो, तो ईर्ष्या गायब हो जाती है। तब बस तुम जानते हो कि तुम, तुम हो, तुम कुछ और नहीं हो और कोई जरूरत भी नहीं है। अच्छा है तुम अपनी तुलना पेड़ों के साथ नहीं करते हो, अन्यथा तुम ईर्ष्या करना शुरू कर दोगे कि तुम हरे क्यों हो और अस्तित्व तुम्हारे लिए इतना कठोर क्यों है? तुम्हारे फूल क्यों नहीं हैं? यह अच्छा है कि तुम अपनी तुलना पक्षियों, नदियों, पहाड़ों से नहीं करते हो अन्यथा तुम्हें दुख भोगना होगा। तुम सिर्फ  इंसानों के साथ तुलना करते हो, क्योंकि तुमने इंसानों के साथ तुलना करना सीखा है। तुलना बहुत ही मूर्खतापूर्ण वृत्ति है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अनुपम और अतुलनीय है। एक बार यह समझ तुम में आ जाए, ईर्ष्या गायब हो जाएगी। तुम सिर्फ  तुम हो, कोई भी कभी भी तुम्हारे जैसा नहीं हुआ और कोई भी कभी भी तुम्हारे जैसा नहीं होगा और न ही तुम्हें भी किसी और के जैसा होने की जरूरत है। अस्तित्व केवल मौलिक सृजन करता है, यह नकलों में, कार्बन कापी में भरोसा नहीं करता। हर कोई दूसरे से ईर्ष्या कर रहा है और इसी ईर्ष्या से हम ऐसा नरक बना रहे हैं और ईर्ष्या से ही हम इतने ओछे हो गए हैं। एक बूढ़ा किसान बाढ़ के प्रकोपों के बारे में बड़े दुख से बता रहा था। उसका पड़ोसी चिल्लाया, तुम्हारे सारे सूअर नदी में बह गए। किसान ने पूछा, थामसन के सुअरों का क्या हुआ? वे भी बह गए। और लारसन के, हां। अच्छा! किसान खुश होते हुए बोल उठा, यह इतना भी बुरा नहीं था जितना मैं सोचता था। यदि हम सब दुखी हैं तो अच्छा लगता है, यदि सभी हार रहे हों तो भी अच्छा लगता है। यदि सब खुश और सफल हो रहे हों, तो उसका स्वाद बड़ा कड़वा है। पर तुम्हारे मन में दूसरे का विचार आता ही क्यों है? मैं तुम्हें फिर याद दिला दूं, तुमने अपने रस को प्रवाहित होने का मौका नहीं दिया है। तुमने अपने आनंद को फलने का मौका नहीं दिया है, तुमने खुद के होने को भी नहीं खिलने दिया। इसीलिए तुम अंदर से खालीपन महसूस करते हो और तुम सभी के बाहरीपन को देखते हो, क्योंकि केवल बाहर ही देखा जा सकता है। तुम्हें अपने भीतर का पता है और तुम दूसरों को बाहरी रूप से जानते हो। वे तुम्हारी बाहरीपन को जानते हैं और वे अपने को भीतर से जानते हैं, यही ईर्ष्या पैदा करता है। कोई भी तुम्हें भीतर से नहीं जानता। तुम जानते हो कि तुम कुछ भी नहीं हो, दो कौड़ी के और दूसरे बाहर से इतने मुस्कराते हुए दिखते हैं। उनकी मुस्कराहट नकली हो सकती है, पर तुम कैसे जान सकते हो कि वे नकली हैं। हो सकता है उनके दिल भी मुस्करा रहे हों। तुम जानते हो तुम्हारी मुस्कराहट नकली है, क्योंकि तुम्हारा दिल थोड़ा भी नहीं मुस्करा रहा है, यह चीख रहा और रो रहा हो सकता है। तुम अपने भीतर को जानते हो और यह केवल तुम ही जानते हो, कोई और नहीं। और तुम सबको बाहर से जानते हो और बाहर से लोगों ने अपने को सुंदर बनाया हुआ है। बाहरी आवरण दिखावा है और वह बहुत धोखेबाज हैं।