ऑडियो की फांस

एक ऑडियो की फांस ने पहले हिमाचल के स्वास्थ्य निदेशक को पद से उतार दिया और अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डा.राजीव बिंदल को पद से त्यागपत्र देना पड़ा। जाहिर तौर पर कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग की जिस तरह चीरफाड़ शुरू हुई है, उससे विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। हम इस सारे प्रकरण में भ्रष्टाचार के कई आयाम देख सकते हैं, जहां विभागीय पद्धति में सुराख और राजनीतिक व्यभिचार की गलबाहियां भी शरीक हैं। ऑडियो वीडियो के मार्फत हुआ खुलासा अगर शक के दायरे में पार्टी मुखिया को गफलत में डाल गया, तो यह भी देखना होगा कि मांगी गई राशि के करीब कौन-कौन रहा। ऐसे कौन से सौदे हैं जहां हमेशा एक थर्ड पार्टी होती है या हमारी व्यवस्था का कोई भी पत्ता बिना सियासी आका के नहीं हिलता। भाजपा और सरकार के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी का फंसना और पार्टी अध्यक्ष का इस्तीफा काफी लज्जाजनक साबित हो सकता है। इससे सियासी समीकरण तो बदलेंगे, विपक्ष को हमला करने का अवसर भी मिलेगा। हालांकि पूरे प्रकरण की कोख से क्या-क्या जन्म लेगा, अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन मामले की तहें सत्तापक्ष की मुसीबत बढ़ाएंगी। यह इसलिए भी कि भाजपा का आक्रामक रुख कांग्रेस को हमेशा भ्रष्टाचार की जननी जैसी संज्ञाओं से ओतप्रोत रहता रहा है और अतीत से आज तक पार्टी के पक्ष में जनता के सरोकार केवल इसी अंतर पर इसे कामयाब करते रहे। अब भ्रष्टाचार के ताबूत में पार्टी का यह पद और कद दिखाई दे रहा है, तो अढ़ाई साल की सत्ता के संदर्भों में आशंकाएं बढ़ जाएंगी। यह सारा मामला इतना भी सरल दिखाई नहीं देता कि महज एक ऑडियो वीडियो से ही सारे घटनाक्रम का वृत्तांत मिल जाएगा। काफी कुछ जांच के दायरे में है और अगर निष्पक्षता से यह आगे बढ़ती है तो काली करतूतों का ढेर लग सकता है। ऐसा भी प्रतीत होता है कि प्रदेश के कुछ विभाग वित्तीय खदान की तरह कार्य कर रहे हैं। खास तौर पर जहां वित्तीय फंडिंग के स्रोत उदार हैं, वहां धन के आयोजन-प्रयोजन में कई नाम जुड़ जाते हैं। अतीत में कमोबेश हर सरकार के काल में कई स्कैंडल सामने आए, लेकिन जांच के निष्कर्ष आज तक सजा का कोई उदाहरण पेश नहीं कर पाए। ऐसे में यह ऑडियो मात्र पांच लाख की फिरौती मांग रही है या यहां व्यवस्था की कब्र में भ्रष्टाचार का लंबा हिसाब होता रहा है। बहरहाल हमें यह भी समझना होगा कि वर्तमान सरकार के ओहदों का वितरण क्यों बार-बार झमेलों में रहा। मंत्रिमंडलीय पदों की रिक्तता के कारण सत्ता से कहीं दूर विभागों की चूलें ढीली हो गईं। अनिल शर्मा और किशन कपूर का मंत्रिमंडल से हटना संयोग नहीं रहा और न ही विपिन सिंह परमार का मंत्रीपद से विधानसभा अध्यक्ष पद को स्थानांतरित होना बेहतर सूचक रहा। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष से सीधे पार्टी कमान थामने वाले डा. राजीव बिंदल के लिए यह घटना राजनीतिक अनहोनी की तरह है। पार्टी गतिविधियों में उनके कद के व्यक्ति का बोलबाला स्पष्ट दिखाई दे रहा था, तो अचानक यह ऑडियो विस्फोट कैसे हुआ। भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले यानी सेनेटाइजर खरीद पर अभी तक कार्रवाई का शिकंजा इतना सख्त नहीं हुआ तो ऑडियो की फांस इस तरह क्यों  खूंखार होने लगी, यह काफी रहस्यमयी पहेली बनी रहेगी। भ्रष्टाचार के विषय को लेकर सरकार की सक्रियता, पार्टी की नैतिकता और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दिशा-निर्देश भी इस घटनाक्रम को एक नए आयाम तक पहुंचा रहे हैं। एक ओर हिमाचल सरकार को अब ऑडियो से निकले जिन्न को काबू में करना है तो दूसरी ओर यह भी साबित करना होगा कि सारे बखेड़े के पीछे कोई सियासी मंशा नहीं, बल्कि यह जीरो टोलरेंस का ही प्रतिफल है। अब मामला भाजपा के राष्ट्राध्यक्ष के लिए भी खास हो गया है क्योंकि उनके अपने गृह राज्य के पार्टी अध्यक्ष को इस तरह की परिस्थितियों में देखना पड़ा। इससे सारे प्रकरण में सत्ता की हस्ती में हिमाचल सरकार का आचरण क्या मुख्यमंत्री को शक्तिशाली प्रमाणित करेगा या कहीं अस्तबल में सारे घोड़े नाकाम होकर छटपटाने को छोड़ दिए जाएंगे। जो भी हो सत्ता के सामने ऑडियो के बहाने ये प्रश्न तो उठेंगे कि प्रदेश में कई विभाग बिना मंत्रियों के क्यों चल रहे हैं या इतने मंत्रियों के पद गुम हो जाने का असली राज है क्या?