किराया लेना न्यायसंगत नहीं

-सिद्धांत ढडवाल, गंगथ

एक मई को श्रमिक दिवस था। आप सब इस बात को मानेंगे कि श्रमिक के श्रम के बिना विकास होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक तरफ  जहां जनता अपनी हैसियत के हिसाब से दिल खोल कर प्रधानमंत्री रिलीफ  फंड में पैसे जमा करवा रही है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने हर केंद्र सरकार के कर्मचारी का डेढ़ साल का भत्ता काट लिया है। लगभग हर प्रदेश सरकार ने अपने-अपने कर्मचारियों की एक-एक दिन की तनख्वाह काट ली है। सबसे बड़ी बात यह कि सभी विधायकों या सांसदों की दो साल की विकास के लिए दी जाने वाली निधि भी स्थगित की जा चुकी है। आप सब को याद हो कि पिछले 5-6 साल से कच्चे तेल की कीमतें लगभग आधी हो गई थीं, उसके बाद भी दुगने दाम पर सरकार ने पेट्रोल-डीजल बेचा। उस वक्त सरकार के प्रवक्ता यही कहा करते थे कि बुरे वक्त में यही पैसा काम आएगा। अब उन मजदूरों से, जिन्हें दूसरे राज्यों से घर-घर छोड़ा जा रहा है, किराया वसूलना किसी भी तरह जायज नहीं है।