श्रीगोपाल सहस्रनाम स्तोत्रम्

-गतांक से आगे…

गोपाड़्गनावृतोनन्तो वृन्दावनसमाश्रयः।

वेणुवादरतः श्रेष्ठो देवानां हितकारकः।। 136।।

बालक्रीड़ासमासक्तो नवनीतस्यं तस्करः।

गोपालकामिनीजारश्चोरजारशिखामणिः।। 137।।

परंज्योतिः पराकाशः परावासः परिस्फुटः।

अष्टादशाक्षरो मन्त्रो व्यापको लोकपावनः।। 138।।

सप्तकोटिमहामन्त्रशेखरो देवशेखरः।

विज्ञानज्ञानसन्धानस्तेजोराशिर्जगत्पतिः।। 139।।

भक्तलोकप्रसन्नात्मा भक्तमन्दारविग्रहः।

भक्तदारिद्रयदमनो भक्तानां प्रीतिदायकः।। 140।।

भक्ताधीनमनाः पूज्यो भक्तलोकशिवंकरः।

भक्ताभीष्टप्रदः सर्वभक्ताघौघनिकृन्तनः।। 141।।

अपारकरुणासिन्धुर्भगवान भक्ततत्परः।

अपारकरुणासिन्धुर्भगवान भक्ततत्परः।। 142।।

इति श्रीराधिकानाथसहस्त्रं नाम कीर्तितम।

स्मरणात्पापराशीनां खण्डनं मृत्युनाशनम।। 143।।

वैष्णवानां प्रियकरं महारोगनिवारणम।

ब्रह्महत्यासुरापानं परस्त्रीगमनं तथा।। 144।।

परद्रव्यापहरणं परद्वेषसमन्वितम।

मानसं वाचिकं कायं यत्पापं पापसम्भवम।। 145।।