स्वामी जी का भाषण

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

स्वामी जी आधी रात तक उनके साथ विचार विमर्श करते रहे। अगले दिन प्रातः कोलंबो के पब्लिक हॉल में वेदांत पर एक लंबा भाषण दिया। 11 जनवरी को कोलंबो से कंडी को प्रस्थान लिया और वहां का कार्यक्रम पूरा करके जाफना को चल दिए रास्ते में ऐतिहासिक महत्त्व के नगर अनुराधापुरम गए। वहां जाकर उन्होंने उपासना विषय पर एक व्याख्यान दिया। बुद्ध गया के बोधिवृक्ष की शाखा को रोपकर बढ़ाए गए प्राचीन वट वृक्ष के नीचे इस सभा का आयोजन किया। अनुराधापुरम में स्वामी जी के गंतव्य जाफना की दूरी 120 मील थी। स्वामी जी बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे। जिस वक्त वे जाफना पहुंचे, उस वक्त शाम हो चुकी थी। स्वागत के लिए हजारों लोग प्रतीक्षा कर रहे थे। लोगों से घिरे स्वामी जी की शोभायात्रा राजपथ पर आगे बढ़ने लगी। हिंदू कालेज के प्रांगण से बने सज्जित मंडप में स्वामी जी को ले जाया गया। वहां विशाल जनसमुदाय ने उनका अभिनंदन किया। स्वामी जी का प्रवचन हुआ, जनता का उत्साह देखने लायक था। अगले दिन वेदांत के संबंध में स्वामी जी का व्याख्यान हुआ। श्रीलंका की यात्रा यहां पूरी हुई। यहां से उन्होंने अपने सहयोगियों और शिष्यों सहित स्टीमर पर सवार होकर भारत के लिए प्रस्थान किया। स्वामी जी के आने की खबर सुनकर रामनद के राजा भास्कर वर्मा अपने दल बल सहित पुण्यदर्शनों के लिए पांबल आ पहुंचे। विराट जन समुदाय समुद्र तट पर आतुरता के साथ स्वामी जी की प्रतीक्षा कर रहा था। उसी समय स्टीमर आ पहुंचा। स्वामी जी स्टीमर से उतरकर राजा साहब की सुसज्जित वोट पर चढ़ गए। पुण्यभूमि भारत स्वामी जी के पर्दापण करते ही राजा भास्कर वर्मा ने दंडवत प्रणाम किया और स्वामी जी के चरणों की धूल को अपने माथे से लगाया। उनके साथ ही उपस्थित सभी लोग नतमस्तक हो गए। जय-जयकार से पूरा वातावरण गूंज रहा था। समुद्र के किनारे सुंदर शामियाने के मंडप में स्वागत समारोह का आयोजन था। पांबनवासियों की तरफ से नागलिंगम पिल्ले महोदय ने स्वामी जी को अभिनंदन पत्र भेंट किया। स्वामी जी ने उपस्थित जनता को धन्यावाद देते हुए एक छोटा सा भाषण दिया। जब सभा खत्म हुई, तब स्वामी जी अपने ठहरने के स्थान की तरफ जाने लगे। राजा  जी के आश्रम में बग्घी में जुते घोड़ों को खोल दिया गया। खुद राजा जी और अन्य जनता गाड़ी को खींचकर ले जाने लगे। दूसरे दिन सुबह स्वामी जी सेतुबंध श्री रामेश्वर के दर्शन करने गए। यहां भी उनके स्वागत के लिए आयोजन किया गया था। यहां भी स्वामी जी ने भाषण दिया। यहां  स्वामी जी ने उपस्थिति जनता को कहा कि यह यत्र जीवः तत्रः जीव यह सच्ची शिव पूजा है। उस दिन स्वामी जी के आने के उपलक्ष्य में सैकड़ों दरिद्रनारायणों को भोजन कराया गया।