आज की किताबें

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

वेद मंत्रों का संबंध एक आकार को ध्वनि में बदलने से है। आज यह प्रमाणित तथ्य है कि हर ध्वनि के साथ एक आकृति भी जुड़ी होती है। इसी तरह से हर आकृति के साथ एक खास ध्वनि जुड़ी होती है। आकृति और ध्वनि के बीच के इस संबंध को हम मंत्र के नाम से जानते हैं। आकृति को यंत्र कहा जाता है और ध्वनि को मंत्र। यंत्र और मंत्र को एक साथ प्रयोग करने की तकनीक को तंत्र कहते हैं…

हमारे वेद आज की किताबों की तरह नहीं हैं। न ही उनके विषय हमारे पुराणों की तरह मनगढ़ंत हैं। वे कोई नैतिक धर्म संहिता भी नहीं हैं, जिसकी किसी एक ने या कुछ निश्चित लोगों ने मिल कर रचना की हो। वे बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के खोजों की एक श्रृंखला हैं। प्राचीन काल में इन्हें ज्ञान की किताब के तौर पर देखा गया था। वेदों में तमाम बातों के बारे में बताया गया है, मसलन खाना कैसे खाया जाए, वाहन कैसे बनाए जाएं, अपने पड़ोसी से कैसा व्यवहार किया जाए और अपनी परम प्रकृति तक कैसे पहुंचा जाए। जाहिर है वेद सिर्फ पढ़ने वाली किताबें नहीं हैं, बल्कि वे हमारे अस्तित्व के तमाम पहलुओं की बुनियादी रूपरेखा हैं। वेद मंत्रों का संबंध एक आकार को ध्वनि में बदलने से है। आज यह प्रमाणित तथ्य है कि हर ध्वनि के साथ एक आकृति भी जुड़ी होती है। इसी तरह से हर आकृति के साथ एक खास ध्वनि जुड़ी होती है। आकृति और ध्वनि के बीच के इस संबंध को हम मंत्र के नाम से जानते हैं। आकृति को यंत्र कहा जाता है और ध्वनि को मंत्र। यंत्र और मंत्र को एक साथ प्रयोग करने की तकनीक को तंत्र कहते हैं। उस काल में हमारे ऋषियों ने तमाम तरह के जीवों, उनकी ध्वनि और विभिन्न आकृतियों के बीच के इस संबंध को समझा और उसमें महारत हासिल की। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का ज्यादातर हिस्सा इसी संबंध के बारे में है। ध्वनि में महारत हासिल करके आप आकृति के ऊपर भी महारत हासिल कर लेते हैं। यही है मंत्रों का विज्ञान, जिसकी दुर्भाग्यवश गलत तरीके से विवेचना की गई है और उस का दुरुपयोग भी किया जाता है। ये व्यक्तिपरक विज्ञान हैं। स्कूल, कालेज में जाकर इनका अध्ययन नहीं किया जा सकता। इसे समझने के लिए बहुत गहरे समर्पण और जुड़ाव की आवश्यकता है। इसी में डूबकर आपको जीना पड़ेगा, नहीं तो कोई प्राप्ति नहीं होगी।  इसमें अगर आप कोई डिग्री हासिल करना चाहते हैं या फिर इसे आप एक व्यवसाय के रूप में चुनना चाहते हैं, तो इससे आपको कुछ भी हासिल नहीं होगा। कुछ हासिल करने के लिए तो आपको इसके प्रति खुद को समर्पित करना होगा। तभी कुछ हो सकता है। आधुनिक शिक्षा विज्ञानी ऐसा मानते हैं कि शिक्षा, खेल, संगीत और कहानियों के माध्यम से दी जानी चाहिए। वैदिक काल में शिक्षा इसी तरह से दी जाती थी। विज्ञान के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को भी कहानी के रूप में समझाया जाता था। दुर्भाग्यवश बाद में आकर लोग इस प्रक्रिया को जारी नहीं रख पाए। उन्होंने विज्ञान को छोड़ दिया और कहानियों को आगे बढ़ाने लगे। जाहिर है, जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कहानियां आगे जाएंगी, तो उनमें कहीं न कहीं थोड़ा बहुत फेरबदल भी होगा। कई बार यह फेरबदल इतना ज्यादा हो सकता है कि कहानी एक अतिशयोक्ति का रूप ले ले जैसा कि आज की धार्मिक कहानियों में सुनने को मिलता है। वेद तो ऋषि-मुनियों द्वारा रचित संग्रह का ऐसा खजाना है, जिसे अपने अंतर्मन की गहराइयों में उतारने के लिए जीवन भर का प्रयास भी कम है।