आफत में घर वापसी

इंतजाम पुख्ता थे, लेकिन रहबरी ने सीमाओं का उल्लंघन किया। अंततः हिमाचल को भी मानना पड़ा कि कोरोना काल को समझने के लिए दरियादिली नहीं दर्देदिल को परखना होगा। कोरोना पीडि़तों के मामलों ने धीरे-धीरे ऐसी कहानियां जोड़ दीं, जो प्रदेश के हाशियों पर लिखी गईं या संवेदनशीलता के फर्ज को दोयम बना गईं। यानी अब स्थिति यह है कि बाहर से आने की चाह का भी कारण ढूंढा जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अतिआवश्यक कारणों से ही कोई लौट सके, वरना हालात के वर्तमान सायों में चीख सी उभर कर सामने आई है। पिछले पंद्रह दिनों की रफ्तार में अगर कोरोना के खिलाफ हिमाचल की जंग को देखें तो आंकड़े अपनी बदसूरती में सिर उठाते-उठाते ऐसे मुकाम तक पहुंच गए, जहां बूते से बाहर प्रदेश की हकीकत दिखाई दे रही है। मात्र तीन दिनों में अगर कोरोना पीडि़तों का शतक जुड़ेगा और संख्या आठ सौ के करीब पहुंचने की गति बता रही है, तो प्रदेश में आगमन की राहों पर संदेह पैदा होता है। हालांकि शुरुआत से ही प्रदेश में एक वर्ग यह मत रखता है कि बाहर से आगमन पर अंकुश रखें, लेकिन जयराम सरकार ने हर संभव प्रयास से देश के अलग-अलग भागों में आफत में फंसे हिमाचलियों की घर वापसी सुनिश्चित की। अब आंकड़ों का विश्लेषण हिमाचल को कई सतहों पर रोक रहा है। अगर प्रदेश आगमन की खुली छूट जारी रही, तो दिल्ली-मुंबई के चिकित्सकीय दबाव भी आयात होंगे और यही हुआ जब कोरोना पॉजिटिव मरीजों ने हिमाचल के चिकित्सा संस्थानों का रुख किया। यहां विडंबना यह भी है कि बाहर से आए लोगों ने क्वारंटीन व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर स्थानीय जनता को खतरे में डाल दिया। हिमाचल का अनुभव यह भी रहा कि आंतरिक व्यवस्थाओं के ऊपर दिल्ली-मुंबई की अव्यवस्था के दाग चस्पां हो गए। अगर दिल्ली से 270 या मुंबई से 169 मामले पहुंच गए, तो इसका अर्थ हिमाचल को खबरदार करता है। दरअसल महानगरीय बेचैनी का बोझ हिमाचल की तैयारियों पर भी पड़ा है और इसका सीधा असर केवल चिकित्सा संबंधी नहीं, बल्कि सामाजिक पृष्ठभूमि के नए दबाव सरीखा भी है। ऐसे में सरकार द्वारा नए निर्देशों के जरिए यह कोशिश शुरू हो रही है कि अनलॉक हिमाचल की छवि कोरोना से इतर आर्थिक के अवरुद्ध मार्गों को खोलने की भी है। अब तक की कसरतों में बाहर से आए दो लाख के करीब हिमाचलियों की सेवा और सहायता में सरकार का सबसे अधिक श्रम व योगदान रहा है, जबकि अब आर्थिक विवशताओं के बंधन खोलने की प्राथमिकता में प्रदेश का संघर्ष इंगित है। हिमाचल के व्यापार, पर्यटन, परिवहन व औद्योगिक क्षेत्रों में छाई मंदी का एक कारण यह भी है कि सरकार और इसकी मशीनरी का अधिकतम समय बाहर से आ रहे लोगों के मसलों पर ही केंद्रित रहा। नतीजतन आंतरिक दुविधाओं का निवारण नहीं हुआ। अनलॉक हुए माहौल का अर्थ बेशक अपने शुरुआती दौर में बाहर से लौटते हिमाचल के स्वागत में खड़ा रहा, लेकिन अब सुरक्षित माहौल की तंदुरुस्ती चाहिए। यानी अब पूर्व परिस्थिति में लौटने के लिए बाजार और समाज का विश्वास इस बात पर निर्भर करेगा कि कोरोना संबंधी आंकड़े भयभीत न करें। ऐसे में सुरक्षित स्थिति के नियंत्रण में यह आवश्यक है कि दिल्ली या अन्य क्षेत्रों से चिकित्सा के खतरे आयात न हों। देखना यह भी होगा कि सरकार के अगले कदमों का सख्ती से पालन कैसे होता है या शुरू हो चुकी विमान व रेलवे सेवाओं के तहत पहरेदारी का आलम क्या होगा। अनलॉक हिमाचल ने कुछ अनावश्यक खतरे मोल लिए हैं, फिर भी प्रदेश भारत के 36 राज्यों की सूची में मरीजों की दृष्टि से 27वें स्थान पर हैं और यहां का रिकवरी रेट 62 फीसदी रहा है। आंकड़ों पर नजर रखने से कुछ शर्तें जुड़ेंगी और बाहरी राज्यों से अनावश्यक आगमन रुकेगा, फिर भी असली मंजिल तो एक ऐसे प्रदेश का परिदृश्य होगा, जहां वित्तीय और व्यापारिक संस्थाएं पूरी तरह से बहाल होंगी और जनता का कुंठित विश्वास फिर से स्थापित होगा।