तालाबंदी और खोलना भी!

अब 30 जून तक देश में लॉकडाउन-5 जारी रहेगा। इतनी लंबी अवधि के लिए पहली बार यह प्रयोग किया जा रहा है। होटल, रेस्तरां, शॉपिंग मॉल, सैलून और धार्मिक स्थलों के खोलने की घोषणा की गई है और लॉकडाउन भी प्रभावी रहेगा। यह विरोधाभास समझ के परे है। कुछ ही दिनों में मेट्रो टे्रन, सिनेमाघर, जिम और स्वीमिंग पूल आदि भी खुलने लगभग तय हैं। औद्योगिक संस्थान भी आठ जून से धड़कने लगेंगे। तो फिर लॉकडाउन किनके लिए और क्यों चस्पां किया गया है? इस दौरान केरल सरकार का एक चिंतित बयान आया है कि राज्य कोरोना के सामुदायिक संक्रमण के कगार पर है। कोरोना वायरस पर काबू पाने में केरल ने एक उदाहरण स्थापित किया था, लेकिन वह भी टूटने को लग रहा है। उसके बिल्कुल उलट भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव का दावा है कि कोरोना से संक्रमितों की संख्या कितनी भी बढ़ती रहे, लेकिन भारत ने मृत्यु-दर, कोरोना वायरस के अप्रत्याशित उछाल की दर और अन्य स्थितियों को नियंत्रण में रखा है। बेशक संक्रमण का आंकड़ा दो लाख के करीब पहुंच रहा है, लेकिन हमारी मृत्यु-दर 3.2 से घटकर 2.86 फीसदी हुई है। कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होकर घर लौटने वालों का औसत भी 47 फीसदी से अधिक है और संक्रमित मरीज करीब 16 दिनों में दोगुने हो रहे हैं। ऐसे औसत के बावजूद छिपी हुई विसंगतियां क्या हैं कि कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित और संक्रमित देशों की सूची में भारत 8वें या 9वें स्थान पर है? यह वाकई खतरनाक और सामुदायिक संक्रमण का संकेत है। चीन और ब्रिटेन में कार्यरत भारत मूल के प्रख्यात चिकित्सकों का भी यह सवाल है कि हररोज 7000 या उससे अधिक संक्रमित मामले सामने आने का अर्थ क्या है? शनिवार और रविवार सुबह तक के 24 घंटे के दौरान 8380 नए मरीज सामने आए हैं। यह अभूतपूर्व और भयभीत कर देने वाला आंकड़ा है। एक ही दिन में मौतें भी 193 हुई हैं। करीब 90,000 मरीज अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। इससे यह तो जाहिर है कि एक संक्रमण कई लोगों को संक्रमित कर रहा है। शायद यही सामुदायिक संक्रमण का आधार है, लेकिन हमारे अधिकारी और वैज्ञानिक अभी यह मानने को तैयार नहीं हैं। बहरहाल इसे भी हमारी उपलब्धि और एहतियात का ही नतीजा माना जारहा है कि 35 लाख से अधिक टेस्ट करने और 138 करोड़ से ज्यादा आबादी और उसके घनत्व के बावजूद मरने वालों की कुल संख्या 5164 है। यह आंकड़ा भी रविवार सुबह तक का है। बेशक अमरीका और यूरोपीय देशों की तुलना में यह आंकड़ा बेहद बौना है। बढ़ते संक्रमण के बावजूद हमें अपनी पूरी व्यवस्था खोलनी पड़ी है, तो उसका बुनियादी कारण विवशता भी है और तार्किक कारण भी है कि आखिर कब तक भारत जैसे विराट देश को तालाबंदी में जकड़ कर रखा जा सकता है? इधर कुछ सर्वेक्षण सार्वजनिक हुए हैं, जिनका मूल्यांकन है कि अभी तक 12.2 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं। उनमें नौ करोड़ से ज्यादा दिहाड़ीदार मजदूर और दिहाड़ी पर ही काम करने वाले कारीगर आदि हैं, जिनकी नौकरी गई है। देश की बेरोजगारी दर भी 24 फीसदी को लांघ चुकी है। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान जीडीपी की विकास दर चार फीसदी से कुछ ज्यादा रही है, जबकि जनवरी-मार्च की आखिरी तिमाही में तो यह दर 3.1 फीसदी रही। यह बीते 11 सालों में न्यूनतम है। इस दौर में कोरोना उग्र नहीं हुआ था, बस शुरुआत ही हुई थी, उसके बावजूद अर्थव्यवस्था का ऐसा कचूमर सामने आया है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बीते दिनों चेतावनी दी थी कि 2020-21 में बढ़ोतरी दर ऋणात्मक हो सकती है। लिहाजा आर्थिक गतिविधियों का खुलना तो तय था, लेकिन 68 दिन के लॉकडाउन के अनुभवों से जो हासिल हुआ है, उसके मद्देनजर अब इसकी जरूरत महसूस नहीं होती। यह बेहद लंबी लड़ाई है, आखिर तालाबंदी कब तक रखी जा सकती है? विशेषज्ञों का आकलन है कि अभी जुलाई के आखिरी सप्ताह तक कोरोना वायरस अपनी उग्रता के साथ फैलेगा। उसके बाद कुछ राहत दिख सकती है और सितंबर आते-आते यह शांत होने लगेगा, लेकिन यह वायरस कितने साल तक हमारी जिंदगी से जुड़ा रहेगा, फिलहाल नहीं कहा जा सकता। लिहाजा ऐसी अनिश्चितता में हम अपने काम की तालाबंदी नहीं कर सकते। अब तो माहौल खुल चुका है, उसे आगे बढ़ने दीजिए, बस निगरानी बनाए रखें।