हिमाचल में सूचना जागने लगी

कोरोना काल ने हिमाचल जैसे राज्य को भी विमर्श के कई नए बिंदु और स्वीकारोक्तियां सौंपी हैं। ऐसे में राज्य से लौटते प्रवासी श्रमिकों की ताकत के मुकाबले बाहर से वापस आते हिमाचलियों से मुस्तकबिल मुखातिब है। इन दोनों परिस्थितियों के सामने एक तीसरी परिस्थिति खड़ी हो रही जो भविष्य का आदान-प्रदान करेगी। यानी अब श्रम की परिभाषा में रोजगार का ऊंट किस करवट बैठता यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि उपलब्ध अवसरों को हम कैसे चुनते तथा इस्तेमाल करते हैं। क्या रोजगार के मायने बदल कर हिमाचल आगे का सफर चुन पाएगा या जो रोजगार खोकर लौटे हैं, वे तमाम प्रदेशवासी इस क्षमता में होंगे कि बीबीएन सहित समस्त औद्योगिक केंद्र उन्हें समाहित कर पाएंगे। जाहिर है पुरानी स्थिति में लौटने से पहले रोजगार का प्लस-माइनस भी होगा। एक आंकड़े के मुताबिक अकेले बीबीएन में ही करीब साढ़े चार लाख प्रवासी मजदूर या औद्योगिक मानव संसाधन बाहर से आया है। इसी तरह बागबानी-कृषि, रेहड़ी-फड़ी और काम-धंधों में अन्य राज्यों से आकर लोग हिमाचल की आर्थिकी में शिरकत कर रहे हैं। ऐसे में अब यह सुनिश्चित करना होगा कि जो प्रवासी लौट गए या जो हिमाचली बाहर रोजगार छोड़कर वापस लौट आए, क्या इसमें प्रदेश नफे में रहेगा। क्या अब हिमाचल में रोजगार व स्वरोजगार में नए क्रांतिकारी कदम उठाए जाएंगे या इसी संवेदना में बाहर स्थापित प्रदेशवासी अपने राज्य में निवेश करने को अहमियत देंगे। जो भी हो कोरोना काल के सबक अगर अब तक भारी पड़े, तो जीने की नई उम्मीदों-इरादों का विस्तार भी इनके साथ नत्थी है। हर किसी को अपने आसपास की संभावनाओं में गति व प्रगति ढूंढनी पड़ेगी। इसका एक उदाहरण हिमाचल के मीडिया संघर्ष में भी देखा जा रहा है। प्रिंट मीडिया की चुनौतियां कई प्रकार से सामने आईं, लेकिन इस दौर को लांघने की नई कसौटियां सामने आ गइर्ं। प्रदेश में रोजगार के अवसर पैदा करने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है, लेकिन इससे भी कहीं अधिक कोरोना काल को अपनी सूचनाओं का व्यापक आधार देने की कोशिश हो रही है। इसी जज्बात की जिंदादिली नहीं, बल्कि हिमाचली मीडिया ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लगभग शून्यता को डिजिटल मीडिया से तराश दिया। यह पहला अवसर है जब हिमाचल के चौबीसों घंटों में मीडिया की नई पहरेदारी में सूचना जागने लगी है। ऊना के रेलवे स्टेशन में अगर ट्रेन मध्य रात्रि आई या अल सुबह किसी रेलगाड़ी से हिमाचली  उतरे, तो उसका आंखों देखा हाल जीवंतता के साथ घर-घर पहुंचा। कोरोना काल ने हिमाचल की कई आदतें बदलीं, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बदलाव मीडिया के नए अवतार में हुआ। डिजीटल मीडिया की सार्थकता में संदेश, सूचना व शब्द हर मर्म को छूते हुए पेश हुए, तो हिमाचली पत्रकार ने अपने व्यावसायिक संदर्भों में प्रासंगिकता ढूंढ ली। प्रदेश को इस दौर में एक ऐसे मीडिया के दर्शन हो गए, जो हर क्षण मौजूद है। यह बिलकुल घरेलू, नजदीकी, सरल, साहसी और प्रादेशिक रंग ढंग में पेश है। यह दीगर है कि कोरोना काल के बाद हर पहलू की समीक्षा होगी, लेकिन एक रिक्तता को भरने की पहल मीडिया क्षेत्र हुई है। समाचार इसी बहाने सीधे घटनाक्रम से उठे और हर प्रश्न को छूते सरोकार दिखे। बहरहाल हिमाचल ने कोरोना काल में परिवर्तित होने का मंत्र तो सीख ही लिया। प्रदेश को समझने की नई परिपाटी उस दौर में शुरू हुई जब यहां से प्रवासी लौट रहे थे या जब कोई हिमाचली प्रवेश द्वार पर दस्तक दे रहा था, तो हर लम्हा कुछ बता रहा था। इसीलिए मीडिया को भी मुखर होने का विकल्प चाहिए था, जो डिजिटल के आधार पर नए आयाम, नए पैगाम दे गया।