चीन के खिलाफ आठ देशों का महामोर्चा, व्यापार, सुरक्षा, मानवाधिकार के लिए ड्रैगन को बताया खतरा

वाशिंगटन-कोरोना वायरस, साउथ चाइना सी और हांगकांग को लेकर चीन पूरी दुनिया के निशाने पर है। वहीं, भारत के साथ लद्दाख सीमा पर जारी तनाव पर भी दुनिया की नजर है। ऐसे में अमरीका समेत आठ देशों ने चीन की मौजूदगी को वैश्विक व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकारों के लिए खतरा मानते हुए एक गठबंधन बनाया है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को  इस इंटर पार्लियामेंटरी अलायंस ऑन चाइना (आईपीएसी) को लांच किया गया है। इसमें अमरीका, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, स्वीडन, नॉर्वे और यूरोप की संसद के सदस्य शामिल हैं। इसके मुताबिक चीन से जुड़े हुए मुद्दों पर सक्रियता से रणनीति बनाकर सहयोग के साथ उचित प्रतिक्रिया देनी चाहिए। चीन के आलोचक और अमरीका की रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर मार्को रूबियो आईपीएसी के सहअध्यक्षों में से एक हैं। रूबियो ने कहा है कि कम्यूनिस्ट पार्टी के राज में चीन वैश्विक चुनौती पेश कर रहा है। अलायंस का यह भी कहना है कि चीन के खिलाफ  खड़े होने वाले देशों को अक्सर ऐसा अकेले करना पड़ता है और बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती है। कोरोना वायरस के फैलने के बाद से चीन और अमरीका के बीच संबंधों में तनाव बढ़ता जा रहा है, जिसका असर दोनों के ट्रेड और ट्रैवल संबंधों पर भी दिखने लगा है।  वहीं, इस इंटर पार्लामेंटरी अलायंस ऑन चाइना (आईपीएसी) को चीन में फर्जी  बताया जा रहा है। चीन की ओर से कहा गया है कि 20वीं सदी की तरह उसे अब परेशान नहीं किया जा सकेगा और पश्चिम के नेताओं को कोल्ड वॉर वाली सोच से बाहर आ जाना चाहिए। चीन में इस कदम की तुलना 1900 के दशक में ब्रिटेन, अमरीका, जर्मनी, फ्रांस, रूस जापान, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी के आठ नेशन अलायंस से की जा रही है। चीन के ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक तब इन देशों की सेनाओं ने बीजिंग और दूसरे शहरों में लूटपाट मचाई थी और साम्राज्यवाद के खिलाफ  चल रहे यिहेतुआन आंदोलन को दबाने की कोशिश की। बीजिंग में चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट ली हाएडांग का कहना है कि चीन अब 1900 दशक की तरह नहीं रहा और वह अपने हितों को कुचलने नहीं देगा। ली का कहना है कि अमरीका दूसरे देशों के प्रशासन तंत्रों को अपने साथ चीन विरोधी सोच में शामिल करना चाहता है और पश्चिम में चीन के खिलाफ माहौल बनाना चाहता है, ताकि अमरीका को फायदा हो।

 ये देश एकजुट

चीन के खिलाफ बने गठबंधन में अमरीका, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, स्वीडन, नॉर्वे और यूरोप की संसद के सदस्य शामिल हैं।