माता बगलामुखी मंदिर

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। ऐसे तो हिमाचल प्रदेश में कई धार्मिक स्थल हैं, लेकिन कोटला स्थित माता बगलामुखी की अलग ही पहचान है। बगलामुखी शब्द बगल और मुख से बना है। माता बगलामुखी मंदिर पठानकोट-मंडी नेशनल हाई-वे पर कोटला नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर राजाओं द्वारा निर्मित पुराने किले में विराजमान है, जिसके चारों तरफ  घना जंगल है। कहा जाता है कि यह किला गुलेर के राजा रामचंद्र ने 1500 ई. में बनवाया था। मां बगलामुखी के इस मंदिर का उल्लेख पांडुलिपियों में भी मिलता है। पांडुलिपियों में मां के जिस स्वरूप का वर्णन है, मां बगलामुखी उसी स्वरूप में यहां विराजमान हैं। कई भक्त यहां हर रोज माता बगलामुखी की पूजा करने आते हैं। यह मंदिर हिंदू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। माता बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं। इसके अलावा उत्तर भारत में इन्हें पीतांबरा के नाम से भी बुलाया जाता है। ये पीतवर्ण, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए 133 सीढि़यां बनी हुई हैं, जिनको चढ़ने के बाद ही माता के दर्शन होते हैं। माता के मंदिर से नीचे का दृश्य काफी विहंगम दिखता है। ‘बगलामुखी जयंती’ पर यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। ‘बगलामुखी जयंती’ पर हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से लोग आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बगलामुखी मंदिर का इतिहास

कथानुसार कृत युग में इस धरती पर भयंकर तूफान आया, जिससे जन जीवन अस्त-व्यस्त व धरा तहस-नहस होने लगी। यह देखकर जग के पालनहार भगवान विष्णु चिंता में डूब गए और सोचने लगे कि इस तूफान से सृष्टि को कैसे बचाया जाए। भगवान विष्णु ने घोर तपस्या की जिससे मां त्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुइर्ं और उन्होंने मां बगलामुखी के रूप में प्रकट होकर उस विनाशकारी तूफान से स्तंभ बनकर जगत की रक्षा की, इसलिए मां को स्तंभ शक्ति भी कहा जाता है। मां बगलामुखी की पूजा-अर्चना व हवन करने से अनेक मुसीबतों से छुटकारा मिलता है, मुकद्दमे खत्म हो जाते हैं और शत्रुओं का विनाश होता है। सरकारी कार्यों में रुकावट, प्रोमोशन न मिलना, राजनैतिक लाभ व व्यवसाय में लाभ आदि के लिए मां बगलामुखी का जप सहायक सिद्ध होता है। अभिमंत्रित बगलामुखी यंत्र शत्रुओं से बचने के लिए ब्रह्मास्त्र की तरह काम करता है। मां बगलामुखी के जप में पीले रंग का विशेष महत्त्व है। मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना लगा रहता है। श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं। लोगों का अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती हैं। केवल सच्ची श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है। मंदिर को पीला ही रंग-रोगन किया गया है तथा मंदिर में पीला प्रसाद, पीला वस्त्र चढ़ाया जाता है। मंदिर में  आकर अद्भुत शांति का अनुभव होता है और वापस लौटने को दिल नहीं करता है।

                                    – सुनील दत्त, जवाली