मुझे इस देश में मास्क लगाकर आना पड़ा

 व्यंग्य

मृदुला श्रीवास्तव, मो.-9418539595

अब तक आपने पढ़ा: कोरोना शमशानी भारत में घुस आए हैं। फटीचर टाइम्स के संपादक उनसे जानना चाहते हैं कि वह किस उद्देश्य से आए हैं और कब तक वापस जाएंगे। कोरोना शमशानी बताते हैं कि वह भारतीयों को नैतिक सबक सिखाने आए हैं। अब उससे आगे की कहानी पढ़ेंः

-गतांक से आगे…

‘जी शुक्रिया। अपने पत्ते खोलने का। मैं अब सीधे पूछना चाह रहा था कि आखिर आप चाहते क्या हैं? इस देश से जाने का आप क्या लेंगे? कोई रिश्वत-डोनेशन से काम चले तो कहें, उसका भी इंतजाम तो भारत में हमेशा ही रहता है। आपकी खिसकाव योजना क्या है।’ ‘गुड क्वश्चन। जो आया है वत्स, वह जाएगा भी। अभी नहीं तो कभी। चाहे वह कोरोना पीडि़त इनसान हो या कोरोना मुक्त। या फिर चाहे स्वयं मैं खुद यानी कोरोना शमशानी ही क्यों न हूं। एक दिन सब को जाना है। मुझे चाहिए गजब की सफाई। वो कहते हैं न कि सारे घर के बदल डालूंगा टाइप जुनूनी सफाई। मुझे दरकार है तुम्हारे भीतर संवेदना के प्रकाश की। स्वच्छ पौष्टिक भोजन, स्ट्रांग इम्युनिटी और सर्वहारा वर्ग के प्रति सरकार की गंभीर व वास्तविक चिंता। मुंह पर मास्क लगाओ जब तक मैं हूं। वरना मेरा दिल मोर-मोर करता रहेगा, अब और सुनिए कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे चाहिए सामाजिक दूरी लेकिन प्यार से। दूरी मगर प्यार से। मुझे चाहिए तुम्हारी निर्भयता, दृढ़ आत्म विश्वास और एकता। हां, मैं तुम्हारे देश के उन लोगों को, जो हालांकि मेरे अस्तित्व के लिए खतरा जरूर हैं, फिर भी उन्हें सलाम करता हूं जो किसी भी स्तर पर मुझसे लड़ रहे हैं। उन कर्मवीरों से मुझे डर लगने लगा है जिन्होंने मुझ तक को लौटती टे्रन से वापसी का टिकट बुक करवाने के लिए मजबूर कर दिया है। पर अभी तो टे्रनें, मैट्रो, प्लेन सब बंद हैं, इसलिए मैं सेफ  हूं। दरअसल मुझे तुम्हारे देश की गंदगी से बचने के लिए मास्क लगाना पड़ा। मुझे बेहद गुस्सा आया, इसलिए तुम सबको मैंने मास्क लगवा दिया।’  अगला प्रश्न संपादक महोदय का। ‘सर आपसे कितना डरना चाहिए?’ ‘डरना नहीं, बचना है। डरो मत। मैं इतना भी बुरा नहीं, तुम्हें कुछ सिखाकर ही जाऊंगा। भूल जाओगे गंदगी मचाना। अपव्यय करना, अनावश्यक टूर बनाना, भूल जाओगे एक-दूसरे से नफरत करना। अब अगर किसी को कोरोना है तो क्या उससे नफरत करोगे? उसकी सेवा करो, दूरी बनाए रखते हुए मुंह पर मास्क लगाना मत भूलना।’ संपादक महोदय की फोन के दूसरी तरफ  से कोई हूं, हां, अब नहीं आ रही थी, पर कोरोना शमशानी का बोलना जारी था। ‘भटनागर जी क्या आप मेरा स्टेटस पूछने से पहले जानते हो, अपना स्टेटस। तुम्हारी सबकी व्यस्तताओं के कारण तुम्हारे बच्चों को कितने दिन से प्यार नहीं मिला। तुमने न जाने कितने बरसों से उनके साथ कैरम बोर्ड शतरंज नहीं खेला था।

तुम भूल गए थे कि तुम्हें भी कभी अपनी पत्नी-बच्चों को गोभी के परांठे बनाकर खिलाने चाहिए। देखो मैं भी तो अपनी कोविदा बानो के लिए गुजराती पोहा बना रहा हूं। और पत्नी भी भूल गई थी कि अपने बच्चों के कुछ कपड़े वो घर पर ही सिल सकती है। कितने बरसों बाद सिलाई मशीन बाहर निकली। कितनों ने तो ढेरों प्यार से मास्क बना डाले।…मजदूर वर्ग की चिंता तुमने करनी बंद कर दी थी। तुम्हारी मेड दो दिन की छुट्टी पर भी जाए तो तुम उसका वेतन काटने का फरमान जारी करते थे। और अब कैसे बिना काम के लॉकडाउन में पूरे महीने का वेतन दे रहे हो। भगवान जी मेरी मेड बनी रहे कहीं काम छोड़कर चली न जाए। मूर्खो, तुमने अब जाकर सीखा कि देश पर महामारी जैसे संकट के आने पर एक हो जाना चाहिए। मैं ऐसा टीवी चैनलों-मीडिया पर छाया कि रवीश और अर्णब भी अपनी राजनीतिक बातें करना भूल गए और कोरोना-कोरोना का ही राग अलापते दिखे। इसे कहते हैं समय समय का फेर। दोस्त, नाराज मत हो। मेरा आना आवश्यक था। तुम्हें याद दिलाना जरूरी था कि तुम जो हो वो दिखते नहीं हो और जो दिखते हो वो दरअसल हो नहीं। लॉकडाउन कर्फ्यू ने एक-एक की बोलती बंद कर दी। रामायण-महाभारत मेरे ही कारण घर-घर में सुना-देखा गया।

ऑनलाइन पढ़ाई करनी भी छोटे-छोटे बच्चों तक ने मोबाइल पर सीख ली। पहले तो न पढ़ी कभी गीता, कुरान, बाइबल घर में वो भी मास्क मुंह पर लगाकर। कम बोलना सेहत के लिए अच्छा होता है। प्रकृति का नियम जो है। पहले जैन मुनियों का कितना मजाक उड़ाते थे, अब समझ आया कि जैन मुनि मुंह पर सफेद पट्टी क्यो बांधते थे।

           -क्रमशः