साहित्य और बाल संसार

गणेश गनी, मो.-9736500069

मुझे लगता है कि साहित्य हमारे पैदा होते ही हमारे जीवन से जुड़ जाता है। मां अपने बच्चे को लोरी सुनाती है, कथाएं सुनाती है और नन्हें बच्चों के साथ मिलकर काल्पनिक किस्से सुनाती है। जब हम स्कूल जाते हैं तो एकदम एक नई दुनिया से हमारा नाता जुड़ता है। हम स्कूल में भी अपनी शिक्षा बाल कविताएं याद करके आरंभ करते हैं। तो अब यह भली-भांति समझा जा सकता है कि साहित्य का हमारे जीवन में कितना दखल है। शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यक्रमों में साहित्य हमेशा से रहा है। संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी में तो साहित्य है ही, बल्कि अन्य भाषाओं में भी बेहतरीन साहित्य संसार है। समाज में जो घटनाएं घटी हैं बीते समय में, उसे जानना है तो साहित्य पढ़ना ही पड़ेगा। आज जो घटनाएं घट रही हैं, यदि हम कोई सौ साल पुरानी रचना भी पढ़ेंगे तो लगता है कि यह तो आज की घटना पर सटीक बैठती है।

पाठ्यक्रम में साहित्य होने का यही एक लाभ है कि हम अपने समाज और परिवेश के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर सकते हैं। यहां तक कि हमारा लोक तो पूरी तरह से साहित्य से भरा हुआ है। लोक साहित्य में हर विधा का साहित्य उपलब्ध है और बहुत ही मौलिक भी है। लोक में बच्चों के लिए बेहतरीन और मनोरंजन से भरा साहित्य उपलब्ध है। लोक कथाओं को हमारे पाठ्यक्रमों में उचित स्थान नहीं मिल पाया है। स्कूलों के पाठ्यक्रमों से साहित्य कम किया जा रहा है या कहीं-कहीं उसकी गुणवत्ता कम होती जा रही है। यह भी एक चिंता का विषय है। पुराने समय के पाठ्यक्रमों में बेहतरीन साहित्य रहता था। कविता और कहानियां बहुत ही कमाल की होती थीं। बाल कविताएं तो अज्ञात कवियों की ही आरंभ के दिनों में याद करवाई जाती थीं। रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी घटनाओं को कथाओं में पिरोया होता था। यहां तक कि जो बोध कथाएं या शिक्षाप्रद कथाएं पाठ्यक्रम में होती थीं, अब लगभग नदारद हैं। हमारे बच्चों में यदि साहित्य की तरफ  आकर्षण बढ़ेगा तो यह तय है कि वे मानवता के पक्षधर बनेंगे। वे संवेदनशील बनेंगे। वे प्रकृति से प्रेम करने वाले बेहतरीन नागरिक बनेंगे।

समाज में कई प्रकार के विकार हैं जिन्हें वे सिरे से नकार देंगे। तो हमारा केवल इतना सा फर्ज है कि उन्हें अच्छे साहित्य की ओर बचपन से ही मोड़ें। अपने देश का ही क्यों, बल्कि पूरे विश्व का साहित्य बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध करवाना चाहिए। साहित्य से बच्चों में कई गुण विकसित होंगे। उनकी पढ़ने-लिखने की क्षमता बढ़ेगी। उनका मन अधिक केंद्रित रहकर बेहतर परिणाम देगा। बच्चे जब बड़े होंगे तो मुश्किलों का सामना धैर्यपूर्वक करेंगे। उन्हें कभी तनाव या अवसाद नहीं होगा। समाज, राजनीति, संस्कृति व प्रकृति प्रदूषित होने से बचे रहेंगे। बच्चे बड़े होकर न केवल संवेदनशील होंगे, बल्कि उदार भी होंगे। वे अंधविश्वासों और सामाजिक भेदभावों से ऊपर उठकर एक आदर्श समाज बनाएंगे। बच्चों का भोलापन, निष्कपटता और निश्छलता तभी बच सकती है जब उनका मन और मस्तिष्क स्वच्छ रहेंगे। बच्चों की बात चली है तो चलते-चलते एक कविता पढ़ते चलें-

बच्चे जानते हैं/कहां कर पाते बड़े/जो बच्चे कर लेते हैं/बच्चे जानते हैं दोस्ती करना/धूल और धरती से/बात कर सकते हैं तितलियों से/दोस्तों को दे सकते हैं/अपना सबसे कीमती खिलौना/या खोने पर भी/नहीं करते विलाप/नहीं रूठते देर तक/बच्चे जानते हैं/कैसे किया जाता है माफ/बच्चे ही नाप सकते हैं आकाश/हाथ उठाकर छू सकते हैं चांद/और चल सकते हैं/चांद तारों के साथ/बच्चे सुना सकते हैं कहानी/बिना प्लॉट के/हंसा सकते हैं दुःख में भी/बच्चे ही कर सकते हैं/घुड़सवारी पिता की/बच्चे भीगना चाहते हैं/ठीक वैसे ही जैसे/बड़े बचना चाहते हैं बारिश से।