वेदांत धर्म का प्रचार

गतांक से आगे…

श्री नरेंद्रनाथ मित्र इनके मंत्री तथा श्री शशि भूषण घोष और शरतचंद्र सरकार सहायक मंत्री नियुक्त हुए। श्री शरणचंद्र चक्रवर्ती शास्त्र पाठक के पद पर  नियुक्त हुए। प्रति रविवार को शाम चार बजे श्री बलीराम जी के मकान पर बैठक करने का निश्चय हुआ। इन्हीं दिनों इंग्लैंड से कुमारी मुलर आ गई। चिकित्सकों ने स्वामी जी को फिर जलवायु परिवर्तन करने का सुझाव दिया। इच्छा न रहते हुए भी 6 मई को कुछ शिष्यों और गुरुभाइयों  सहित उन्होंने अल्मोड़ा के लिए प्रस्थान किया। अल्मोड़ा के लोग स्वामी जी के आने की खबर पाकर बहुत खुश हुए। स्वागत की तैयारियां होने लगीं। लोदिया नामक स्थान तक जाकर उन्होंने स्वामी जी की अगवानी की और जुलूस बनाकर नगर में लाए। सभाओं में श्री ज्वाला दत्त जोशी ने मानपत्र का पाठ किया। इसके अलावा स्वामी जी का व्याख्यान हुआ। सार्वभौम वेदांत धर्म के प्रचार-प्रसार और शिक्षा के लिए हिमालय पर एक मठ स्थापित करने का स्वामी जी का विचार था। इस विचार का प्रकाशन स्वामी जी ने इस सभा में किया। श्री बद्रीसहाय ने स्वामी जी के रहने के लिए अल्मोड़ा से बीस मील दूर एक वाटिकायुक्त मकान का प्रबंध कर दिया। यहां के शांत स्वच्छ वातावरण में स्वामी जी ने अपूर्व शांति का अनुभव किया। श्रद्धालु भक्तों के आते रहने की वजह से यद्यपि उन्हें आराम नहीं मिलता, फिर भी पंद्रह ही दिनों में उनके स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार दिखाई देने लगा। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। स्वास्थ्य में सुधार होता रहा। पंजाब तथा कश्मीर के विभिन्न नगरों से निमंत्रण आ रहे थे। इसलिए अल्मोड़ा में अढ़ाई महीने बीताने के बाद स्वामी जी नीचे उतर पड़े। अगस्त को वे बरेली पधारे। पहुंचते ही वे ज्वरग्रस्त हो गए। अगले दिन फिर वह अनाथालय के बच्चों को देखने गए। यहां के छात्रों द्वारा वेदांत के आदर्शों को मूर्तरूप देने के लिए उन्होंने छात्र समिति बनाई। कुछ ही दिनों में उन्हें फिर बुखार हो गया, लेकिन उसी हालत में बरेली से अंबाला की तरफ  चल पड़े। एक सप्ताह तक अंबाला में रहे। यहां से अमृतसर और वहां से रावलपिंडी की यात्रा की। फिर अन्य कई नगरों में होते हुए स्वामी जी 8 सितंबर को श्रीनगर पहुंचे। श्रीनगर में प्रधान न्यायमूर्ति श्री मुखोपाध्याय आग्रह के साथ उन्हें पहले अपने घर ले गए और उनकी सेवा आदि में लगे रहे। कश्मीर की जलवायु उनके स्वास्थ्य के अनुकूल पड़ी। 14 सितंबर दोपहर के बाद स्वामी राजभवन में पधारे। राजा श्री रामसिंह ने स्वामी का खूब आदर-सम्मान किया। कुछ लोगों ने स्वामी जी के स्वास्थ्य के संबंध में नौका गृह में रहने का मशवरा दिया। इसका इंतजाम राज्य के वजीर ने फौरन करवा दिया। उस दिन से वे नौकागृह में रहने लगे। साथ ही उन्होंने कश्मीर के कुछ ऐतिहासिक स्थलों को भी देखा। 12 अक्तूबर को फिर चले गए। हिंदुओं ने उन्हें अभिनंदन पत्र पेश किया। फिर वे 16 अक्तूबर को रावलपिंडी आए। वहां वह श्री हंसराज वकील के पास रहे। 17 अक्तूबर को हिंदू धर्म के विषय में भाषण दिया। 20 अक्तूबर को वे कश्मीर के महाराज के बुलाने पर जम्मू की तरफ रवाना हुए।