कोरोना के हमलों के बीच मिंजर मेला… बहुत मुश्किल है

चंबा में उत्सव के आयोजन को लेकर अभी तक कोई तैयार नहीं, जिला के लोग मेले की जरूरी रस्में निभाने के पक्ष में

चंबा – जनपद का ऐतिहासिक एवं अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेला इस वर्ष कोरोना महामारी की भेंट चढ़ सकता है। मिंजर मेले के आयोजन को लेकर फिलहाल प्रशासनिक स्तर पर कोई तैयारी आरंभ नहीं हो पाई है, मगर सदर विधायक सहित स्थानीय लोग मिंजर मेले के शुभारंभ व समापन मौके पर होने वाली रस्मों को अदा करने के पक्ष में हैं, ताकि हजारों वर्ष पुराने मेले के स्वरूप को बरकरार रखा जा सके। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले का आयोजन 26 जुलाई से दो अगस्त तक प्रस्तावित है, मगर कोरोना महामारी के बीच जारी अनलाक- टू में भी मेलों व समारोहों के आयोजन पर प्रतिबंध जारी रहने से मिंजर मेले का आयोजन हो पाना अभी तक असंभव दिख रहा है। बतातें चलें कि चंबा जिला में मिंजर मेले का आयोजन श्रावण माह के तीसरे रविवार से चौथे रविवार तक रियासतकालीन समय से किया जा रहा है। मेले के आयोजन को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। मिंजर मेले के दौरान बाहरी राज्यों से हजारों की तादाद में व्यापारी कारोबार के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा सांझ पहर चौगान स्थित कला केंद्र में पारंपरिक कुंजड़ी मल्हार व मुसाधा गायन का आयोजन होता है। सांस्कृतिक संध्याआें में बालीवुड, हिमाचली व लोकगायक अपनी स्वर लहरियों से दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। चंबा जिला के लोग वर्ष भर मेले में भागीदारी निभाने को लेकर पूरे वर्ष इंतजार कर सकते हैं, मगर इस वर्ष मिंजर मेला का आयोजन कोरोना महामारी की भेंट चढ़ने से चौगान में शायद ही यह रौनक देखने को मिल पाए। प्रशासनिक स्तर पर मेले के आयोजन की तैयारियां अप्रैल माह के अंत से आरंभ हो जाती हैं, मगर इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन और अनलॉक जारी रहने से मेले के आयोजन को लेकर कोई बैठक भी नहीं हो पाई है। चंबा के वरिष्ठ नागरिक सुरेश कश्मीरी, लेखराज, हेमचंद व किशोर शर्मा आदि का कहना है कि भले ही कोरोना महामारी के चलते मिंजर मेले का आयोजन बड़े स्तर पर नहीं हो सकता, मगर प्रशासन को मिंजर मेले के शुभारंभ पर भगवान रघुवीर, लक्ष्मीनाथ और हरिराय मंदिर में मिंजर अर्पित करने और अंतिम दिन रावी नदी में मिंजर का विसर्जन कर परंपरा का निर्वाहन कर चंबयाल समाज की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए।