कोरोना महामारी से उपजा डिप्रेशन घातक है, राकेश शर्मा, लेखक जसवां से हैं

कोरोना महामारी और इसके नकारात्मक प्रभावों की चपेट में आने वाले व्यक्तियों के दिमाग पर इनका बहुत गहरा दबाद पड़ रहा है और ये दबाव अवसाद (डिप्रेशन) का रूप लेकर एक तीसरे महादानव के रूप में मानवता को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत द्वारा पिछले दिनों अपने निवास पर की गई आत्महत्या ने पूरे देश में एक नई चर्चा को जन्म दिया है। जुनून और आत्मविश्वास से भरी हुई जिंदगी जीने वाला एक ऐसा कलाकार जिसने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर फिल्मी जगत में अपनी एक अलग पहचान स्थापित की थी, कैसे अवसाद का शिकार बन सकता है? कैसे एक मजबूत व्यक्ति को अवसाद ने मौत को गले लगाने पर मजबूर कर दिया, यह बात सिहरन पैदा करने वाली है। किसी नजदीकी व्यक्ति की मृत्यु या नौकरी छूट जाना अवसाद के सबसे बड़े कारण माने जाते हैं। एक लंबी उदासी और उन सभी क्रियाओं से मोह भंग जिनका व्यक्ति अपने जीवन में आनंद ले रहा होता है और रोजमर्रा की क्रियाओं में रुचि की कमी अवसाद के मुख्य लक्षण हैं। इसके अतिरिक्त शरीर में ताकत का अभाव, भूख में बदलाव, कम या अधिक सोना, चिंता, अपने कुछ भी न होने का एहसास, अपराध बोध, निराशा और खुद को नुकसान पहुंचाने का विचार दिमाग में आना और आत्महत्या का प्रयास, ये सभी भी अवसाद के ही लक्षण हैं। इन्हीं लक्षणों के आधार पर अवसाद के निम्न, मध्यम और उच्च स्तर का पता लगाया जा सकता है। आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति को अवसाद के उच्च स्तर में रखा गया है। स्तर चाहे कोई भी हो, लेकिन अच्छी बात यह है कि किसी भी प्रकार के अवसाद का इलाज संभव है। अवसाद पर अक्सर चर्चाएं सुनने को मिलती हैं, लेकिन इस विषय पर इसलिए ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि ज्यादातर लोगों को लगता है कि उनको अवसाद प्रभावित नहीं कर सकता, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है। देश में अवसाद संबंधित आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। भारत में वर्ष 2015 का नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे यह बताता है कि देश के पंद्रह प्रतिशत युवाओं को एक या एक से अधिक दिमागी समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय हस्तक्षेप की जरूरत है। इसी सर्वे में यह भी कहा गया कि भारत में बीस में से एक व्यक्ति अवसाद की बीमारी का शिकार है। ये आंकड़े पांच वर्ष पुराने हैं और आज के हालात से लगता है कि महामारी, अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत, बेरोजगारी और जॉब लॉस के बढ़ते आंकड़ों ने देश में इस बीमारी की जड़ें और गहरी कर दी हैं। प्रतिदिन आत्महत्या की आ रही खबरों से हर तरफ  चिंता का माहौल बन रहा है। हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में भी पिछले कुछ दिनों में आत्महत्या के मामलों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। पिछले दो-तीन महीनों के दौरान प्रदेश में लगभग एक सौ चालीस लोगों द्वारा किया गया आत्महत्या का प्रयास नई चिंता को जन्म दे रहा है। इस चिंता को दूर करने के लिए व्यापक प्रयास किए जाने की जरूरत है। आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है। डिप्रेशन का इलाज आज की तारीख में संभव है।