गुणीजनों का गुण है चापलूसी

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

चमचागिरी का गुण आज की आवश्यकता बन गया है। मैं खुद इस गुण को मुफीद मानता हूं, लेकिन पता नहीं क्यों अभी तक चमचा बन नहीं पा रहा हूं। दफ्तर में पूरा काम समय पर करने के बावजूद मुझे अफसर व्हाइट एलीफैंट मानता है। जबकि सच यह है कि सफेद हाथी वह स्वयं है। सारे दिन स्टेनो से बतियाना और उसके साथ कॉफी-चाय पीने के अलावा वह करता ही क्या है? हमेशा गोपनीय रिपोर्ट खराब जाने से मेरे प्रमोशंस भी ठंड में लगा दिए गए हैं। जबकि जो काम के अलावा और सब कुछ करते हैं, उनके धड़ाधड़ प्रमोशन हो रहे हैं। हालांकि वह भली प्रकार से जानता है कि मैं काम का आदमी हूं, इसीलिए तो वह मेरा ट्रांसफर नहीं करवाता। परंतु मेरी आदत चमचागिरी की नहीं होने के कारण मैं निरंतर पिछड़ रहा हूं। दरअसल वह चापलूसों और चापलूसी को पसंद करता है। वह हमेशा सर आप कितने काइंड नेचर के हैं, आप सबका ध्यान रखते हैं, आपके बच्चे की फीस जमा करा आऊं, आप कहें तो घर सब्जी-फल रख आऊं, सर आपका जैसा इनसान आज के जमाने में मिलना कठिन है, सर आपने कभी किसी का बुरा नहीं किया जैसे जुमले रात-दिन सुनना चाहता है। मुफीद मानने के बावजूद मैं चमचागिरी को नहीं अपना सका, इसका मुझे खेद तो है लेकिन खुद्दारी के अपने मजे हैं, जिसके मद में चूर मैं अपने आपको सबसे अलग कर लेता हूं। मोहल्ले की विकास समिति के अध्यक्ष कई बार मुझसे कह चुके हैं कि मैं उनसे मिला करूं। एक बार तो उन्होंने साफ  तौर पर मुझसे कहा भी कि यार पता नहीं तुम किस मिट्टी के बने हो। अपने आपको अफलातून समझते हो। इसका प्रचार उन्होंने पूरे मोहल्ले में कर दिया है, जिससे मैं वहां भी अलोकप्रिय हो गया हूं।