आखिरकार नए मंत्री

हिमाचल मंत्रिमंडल विस्तार तक आते-आते भाजपा ने अपने कल सीधे किए और यही वजह है कि इसके  अर्थ को कई मुहानों पर पढ़ा जाएगा। यह एक तरह से नईर् सरकार का गठन है,जहां तीन नए चेहरे अपनी पृष्ठभूमि का आकार और मंत्रिमंडल में शामिल होने का आशीर्वाद बता रहे हैं। जाहिर है राकेश पठानिया, सुखराम चौधरी और राजिंद्र गर्ग का सरकार हो जाना दरअसल सत्ता में स्वीकार होने की ऐसी कड़ी है,जो वर्तमान सरकार से रुखसत हुए पुराने मंत्रियों को हटाने का श्रम भी रहा। ये नई सीढि़यां हैं,तो भाजपा के राष्ट्राध्यक्ष नड्डा के  कृपा पात्र बनने का सौभाग्य भी इसमें समाहित है। कम से कम राकेश पठानिया और राजिंद्र गर्ग तो इन रिश्तों से गौरवान्वित महसूस करेंगे,जबकि पहली बार ही विधायक बने राजिंद्र गर्ग पर आरएसएस और अखिल भारतीय विद्यार्थी  परिषद की छाप स्पष्ट है। मंत्रिमंडल विस्तार के इस श्रम में श्रेय है,लेकिन कुछ नेताओं की कतरब्यौंत भी जारी है।

आशाएं निरुत्तर हुईं,तो कई घाघ नेता हाथ मलते रह गए। भाजपा की प्रदेश सरकार से रुखसत हुए किशन कपूर,विपिन परमार व डा.राजीव बिंदल की फेहरिस्त में वे तमाम लोग भी शामिल हैं जो अपने वर्ग,जाति या क्षेत्र की लाज नहीं रख सके। मंत्रिमंडल में कांगड़ा -मंडी के गणित का नुकसान हो या छिटक कर बैठे हमीरपुर की रिक्तता रही हो,कहीं न कहीं इस हिसाब में भी बहुत कुछ पिछड़ा है। सिरमौर में डा. राजीव बिंदल के सामने अब सुखराम चौधरी का ध्रुव कितना विस्तृत होता है या बिलासपुर में राजिंद्र गर्ग के मार्फत राजनीति का भविष्य क्या होगा,यह सरकार के अगले कदमों की आहट में निहित है। कांगड़ा के परिप्रेक्ष्य में राकेश पठानिया के कैनवास का बड़ा होना, सरकार में क्षेत्रीय संतुलन का कितना सशक्त आधार बन पाता है,इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि उन्हें किस विभाग की जिम्मेदारी मिलती है। दूसरी ओर वर्षों से सियासी नेतृत्व ढूंढ रहे कांगड़ा में अब राकेश पठानिया को एक अवसर मिल रहा है कि वह क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा की पहरेदारी में अव्वल साबित हों। हालांकि पठानिया का अब तक का सफर भाजपा के भीतर धूप-छांव का रहा है। वह एक वक्त प्रेम कुमार धूमल के हनुमान बनकर कांगड़ा के अस्तित्व को छिन्न-भिन्न करने के मोर्चे पर नूरपुर को जिला बनाने पर आमादा रहे हैं। बहरहाल वह ऐसे राजपूत नेता हैं जिनका ताल्लुक अतीत के संघर्षों से जुड़ता है अतः कांगड़ा के परिप्रेक्ष्य में पुनः देखना होगा कि इस बार ‘कोई किल्ला पठानिया कितना लडि़या’ या भविष्य में इस उक्ति को सार्थक कर पाता है।

मंत्रिमंडल विस्तार के सदमे और संदेश भी हैं तथा जब महकमों का आबंटन होगा,तो यह पता चल जाएगा कि मंत्रिमंडल कितना परिपक्व हो रहा है। काफी समय से रुष्ठ रहे रमेश धवाला के लिए अब सरकार में वजन बढ़ाने के सारे कयास दफन हो गए,तो बिलासपुर के राजनीतिक सफर में राजिंद्र गर्ग का झंडा बुलंद किया जा रहा है। अब देखना यह होगा यह महज स्वास्थ्य, ऊर्जा और खाद्य आपूर्ति विभागों का आबंटन है या सरकार के सारे विभाग नए सिरे से लिखे जाएंगे। राज्य के कई विभाग अति कमजोर स्थिति में हैं या कुछ मंत्री ही अपनी क्षमता में कमजोर हैं। ऐसे में अपने लक्ष्यों के मुताबिक और चुनौतियों के अनुसार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास एक सुनहरा अवसर है कि सारे पत्ते फेंटकर सरकार का मुखर चेहरा पेश किया जाए। सरकार से कुछ पाने की उम्मीदों की ओर अभी भी निगाहें लगी हैं,तो देखें शेष बचे पद कितनी सियासी क्षुधा शांत कर पाते हैं।