हमीरपुर के हिस्से आया लंबा इंतजार

हाशिये पर चला गया भाजपा का गढ़, हमीरपुर से बढ़ गई शिमला की सियासी दूरी

हमीरपुर  – मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने गुरुवार को अपने दरबार में खाली पड़े तीन आसनों पर कांगड़ा, बिलासपुर और सिरमौर से तीन मंत्रियों को स्थान ग्रहण करवा दिया, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद से लगातार अनदेखी की मार झेल रहे हमीरपुर जिला की झोली में लंबे इंतजार की पोटली डाल दी। वह जिला जिसे भाजपा का गढ़ और कभी भारतीय जनता पार्टी का मक्का भी कहा जाता रहा है, उसने प्रदेश को दो बार मुख्यमंत्री दिया, जिसने केंद्र को राज्य वित्त मंत्री दिया, उसे इस तरह से इग्नोर किया गया मानों यहां से भाजपा का कभी कोई वजूद ही नहीं रहा हो।

जबकि पूरी उम्मीद जताई जा रही थी कि दो बार विधायक रहने वाले सदर के विधायक नरेंद्र ठाकुर को मंत्रिमंडल में स्थान मिलेगा। यही नहीं आरएसए बैकराउंड वाली भोरंज की विधायक कमलेश कुमारी से भी लोगों को उम्मीदें थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शिमला के साथ हमीरपुर की दूरी इस मंत्रिमंडल विस्तार के बाद और बढ़ गई। जिला की इस अनदेखी में पूरी तरह से शिमला को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कहीं न कहीं हमीरपुर भाजपा नेताओं की आपसी खींचतान और बड़े नेताओं की चुप्पी भी इसके लिए जिम्मेदार है। खैर जो होना था, सो हो गया, लेकिन यह सच है कि अब हमीरपुर जिला को सियासत में बड़े कद के लिए लंबा इंतजार करना होगा।

हालांकि पिछले डेढ़ साल के अंतराल में सरकार ने एक महिला समेत तीन पद हमीरपुर को बोर्ड और निगमों में देकर मूंगफलियों के कुछ दाने हाथ में थमा दिए थे, लेकिन जिन बादामों के सहारे अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी की जानी थी, वह कहीं और ही बंट गए। बड़े कामों के वे नींव पत्थर अब हमीरपुर में शायद नहीं लग पाएंगे।

हमीरपुर में किसे मजबूत करना चाह रहे मुख्यमंत्री

मंत्रिमंडल विस्तार के बाद एक सवाल जो दिमाग में घूम रहा है कि चलो मान लिया समीरपुर से शिमला बड़ी दूर हो गया है, लेकिन हमीरपुर सदर से दूरियों की वजह क्या है। क्या मुख्यमंत्री किसी और को यहां मजबूत करना चाह रहे हैं, क्या बोर्ड-निगमों में से किसी को जिसका बैकराउंड आरएसएस से जुड़ा है या फिर माइनस हमीरपुर सियासत अब होगी।