हिंदू धर्म की ध्वजा के वाहक हैं तुलसीदास

तुलसीदास जयंती विक्रमी संवत् के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। अधिकतर विद्वान् महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म इसी दिन मानते हैं। संपूर्ण भारतवर्ष में महान् ग्रंथ रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में तुलसी जयंती मनाई जाती है। श्रावण मास की अमावस्या के सातवें दिन तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है।

गोस्वामी तुलसीदास ने कुल 12 पुस्तकों की रचना की है, लेकिन सबसे अधिक ख्याति उनके द्वारा रचित रामचरितमानस को मिली। दरअसल, इस महान् ग्रंथ की रचना तुलसीदास ने अवधी भाषा में की है और यह भाषा उत्तर भारत के जन-साधारण की भाषा है। इसीलिए तुलसीदास को जन-जन का कवि माना जाता है। तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को उत्तर प्रदेश (वर्तमान बांदा जिला) के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था।

इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनका विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी रत्नावली से अत्यधिक प्रेम के कारण तुलसी को रत्नावली की फटकार सुननी पड़ी, जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया। पत्नी के उपदेश से तुलसी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। इनके गुरु बाबा नरहरिदास थे, जिन्होंने इन्हें दीक्षा दी।

योगदान

कलियुग का प्रारंभ होने के पश्चात् सनातन हिंदू धर्म यदि किन्हीं महापुरुषों का सबसे अधिक ऋणी है तो वह हैं आदि गुरु शंकराचार्य और गोस्वामी तुलसीदास। शंकराचार्य जी ने 2500 वर्ष पूर्व बौद्ध मत के कारण लुप्त होती वैदिक परंपराओं को पुनर्स्थापित करके दिग्दिगंत में सनातन हिंदू धर्म की विजय वैजयंती फहराई। विदेशी आक्रमणकारियों के कारण मंदिर तोड़े जा रहे थे, गुरुकुल नष्ट किए जा रहे थे, शास्त्र और शास्त्रज्ञ दोनों विनाश को प्राप्त हो रहे थे, ऐसे भयानक काल में तुलसीदास जी प्रचंड सूर्य की भांति उदित हुए।

उन्होंने जन भाषा में श्री रामचरितमानस की रचना करके उसमें समस्त आगम, निगम, पुराण, उपनिषद आदि ग्रंथों का सार भर दिया और वैदिक हिंदू सिद्धांतों को सदा के लिए अमर बना दिया था। अंग्रेजों ने हजारों भारतीयों को गुलाम बना कर मॉरीशस और सूरीनाम आदि के निर्जन द्वीपों पर पटक दिया था। उन अनपढ़ ग्रामीणों के पास धर्म के नाम पर मात्र श्री रामचरितमानस की एक-आध प्रति थी। केवल उसी के बल पर आज तक वहां हिंदू धर्म पूरे तेज के साथ स्थापित है।

अनेकों ग्रंथों के रचयिता भगवान् श्री राम के परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी भले ही तलवार लेकर लड़ने वाले योद्धा न हों, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति और लेखनी के बल पर इस्लामी आतंक को परास्त करके हिंदू धर्म की ध्वजा फहराए रखने में अपूर्व योगदान दिया था।