लॉकडाउन में लेखन
पवन चौहान, मो. 94185-82242
पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया कोरोना के संकट से गुजर रही है और इससे भारत भी अछूता नहीं रहा है। संकट के इस दौर में जब लॉकडाउन जारी हुआ तो सब घरों में कैद हो गए। अब समय ही समय था। बहुत कुछ किया जा सकता था। बहुत कुछ रचा जा सकता था। लेकिन इस महामारी के शुरुआती दिनों में कुछ भी पढ़ना-लिखना न हो सका। बस, एक उदास माहौल से घिरा रहा। फिर धीरे-धीरे जब इस सबकी आदत-सी हो गई तो कुछ पढ़ने-लिखने का मन बनने लगा। और बाल साहित्यकार पवन चौहान ने इस दौरान भीष्म साहनी द्वारा अनुदित चिंगिज आइत्मातोव का लघु उपन्यास ‘पहला अध्यापक’ दोबारा पढ़ा। मुरारी शर्मा का सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह ‘ढोल की थाप’ और नीलिमा शर्मा के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘लुकाछिपी’ भी पढ़ी। एस आर हरनोट जी का कहानी संग्रह ‘कीलें’भी पढ़ा। सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो इस लॉकडाउन में उन्होेंने किया, वह यह कि हिमाचल के बाल साहित्य और साहित्यकारों पर एक शोध आलेख तैयार किया। बहरहाल कोरोना काल में लिखी गई उनकी कुछ कविताएं भी काबिलेगौर हैं। यह इसलिए हैं कि ऐसे समय में भी उनका सृजन जारी रहा। पेश हैं इन कविताओं के कुछ अंश:
अगली शक्ल तुम्हारी ही है
बहुत देर तक
अंदर ही अंदर
घुटना पड़ता है कभी-कभी
अपने आपको कोसते हुए
अन्याय के खिलाफ
नहीं लड़ पाने की
हिम्मत से हारकर
तानाशाहों की नजरों से बचे रहने को।
कवि को विपरित परिस्थितियां बेशक तानाशाह लगती हों, फिर भी चिरकाल के लिए कुछ भी रहने वाला नहीं होता। उनकी दूसरी कविता ः
यह जो आग है
यह जो आग है
सुलग रही है शनैः शनैः
गरमा रही है सबको
अंदर ही अंदर
पिघला रही है बुजदिली को
जो बहुत जरुरी है।
वास्तव में ही व्यक्ति को खुद्दार होना चाहिए, यही इसमें भाव
छुपे हैं।
चेतावनी तुम चाह सकते हो कुछ भी
अपनी इस चाहत में तुम
तोड़ सकते हो अपने सारे उसूल आसमान से तारे भी। इसमें कवि चेतावनी देता है कि चाहत के लिए उसूल कितने जरूरी हैं। कविता करवट में वे कहते हैं ः किसान ने तसल्ली से बहाया है
खूब सारा पसीना
आज तक
चुपचाप
बिना किसी शिकायत के।
कंपन
अपनी कोमल उंगलियों के पोरों से
बेटी लिख रही थी
गाड़ी में जमे शीशे की धूल में
चुपके से मेरा नाम
कुफर
र्लौट आए हैं
वर्षों पहले गए पक्षी
पानी का हर जीव।
कुफर में अब शोर है
तुम आई तो
मैं और मेरी पत्नी कई महीनों से
इंतजार में थे तुम्हारे
न ही रही घर में कभी
हत्या की कोई साजिश
तुम्हारी किलकारियों का इन्तजार हमेशा से रहा।
इसी तरह असूया, सांझ और लेखन का शून्यकाल समेत पवन चौहान ने कई रचनाएं इस दौरान रचित की हैं। और सभी का एक ही संदेश रहता है कि रचनाकार हर काल और हर देश में अपने सिर्फ इसी एक हुनर पर जिंदा रह सकता है, बशर्ते जागरूकता बनी रहे। इन्हीं कविताओं में से एक कविता के ये अंश भी देखें :
कई दिनों तक सोई रही नींद /जेठ की दोपहरी के तपते पत्थरों पर भी/बिना किसी जलन, किसी चुभन से बेखबर/ एक शून्य काल में तैरती रही /भीगती रही पसीने की तपती बूंदों से।