नियति में बंध कर लड़ा जा सकता है…

डा. अदिति गुलेरी, मो. 70181-65356

सृजन प्रकृति का नियम है, निरंतरता इसकी नियति है और साहित्य शिल्पी अपने-अपने शब्दों में ढालकर हर स्थिति और परिस्थिति को मनचाहा सांचा प्रदान करते हैं। कल्पनाओं से परिपूर्ण मन परमेश्वर का एक ऐसा अजूबा है, जिसे न कोई बूझ पाया है, न ही मानव इतना समर्थ है कि ऊपर वाले के नियमों को तोड़े-मरोड़े अथवा कोई संशोधन या संपादन कर पाए। नियमों की बात करना इसलिए जरूरी है चूंकि हालिया कोरोना महामारी हमारे सामने दंड के रूप में विद्यमान है। खैर मूल विषय यह रहा कि कोरोना काल में साहित्यकारों की मनोवृत्ति कैसी रही। क्या सृजन हुआ और मनोभावों को क्या दशा उन्होंने दी। तो डा. अदिति गुलेरी ने भी जो देखा अथवा महसूस किया, उन्होंने उसको हू-ब-हू कागज पर उतार दिया। कोरोना अगर राक्षस है, तो उसे हराया कैसे जाए, क्योंकि हराना आसान है, डराना बहुत मुश्किल। इस दौरान के लेखन में वे पारिवारिक पात्रों के माध्यम से समझा पाई हैं कि बचाव में ही बचाव है। अज्ञात शत्रु का मुकाबला घर की दहलीज के भीतर ही किया जा सकता है। कुछ बच्चे घर में कैद हैं, कुछ मैदान में आजाद हैं।  ऐसे में अनुशासन में रहना कोरोना को हराने की पहली और अंतिम शर्त है। डा. गुलेरी इस काल को लेकर समझाती हैं कि आशावान व्यक्ति संयमित होकर हर परिस्थिति से पार पा लेता है। बता दें कि डा. अदिति गुलेरी उत्तरी भारत की अग्रिम पंक्ति की रचनाकार हैं। उनका लेखन हमेशा उल्लेखनीय रहा है। कोरोना काल के दौरान उनका लेखन एक वृहद व्यवस्थागत तस्वीर पेश करता है। पेश है कहानी का यह अंश…

आज बहुत सारे घरों में यह स्टीकर लगा हुआ है। इसे अपनी मान-प्रतिष्ठा का कोई पैबंद न सोचें। यह स्टीकर किसी के मान-सम्मान का हनन नहीं है, अपितु यह एक प्रक्रिया है, जिसका निर्वहन करना हम सब के लिए आवश्यक है। रही पड़ोस और पड़ोसियों की बात तो यह लॉकडाउन तो गुजर जाएगा, परंतु हम सब के दिलों में हमेशा के लिए वो घुंडियां बंध जाएंगी, जिन्हें खोलना हमेशा के लिए मुश्किल हो जाएगा।