द्रौण शिव मंदिर

हिमाचल का नाम देवभूमि इसलिए भी प्रचलन में है क्योंकि पूरे प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर देवी-देवताओं का वास है और इससे संबंधित साक्षात प्रमाण देखने को मिलते हैं। हिमाचल प्रदेश में अनेको शिव मंदिर हैं। हर मंदिर की अपनी-अपनी महिमा है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल जिला ऊना के गगरेट कस्बे के नजदीक शिवबाड़ी नामक जगह पर है। शिवबाड़ी का शाब्दिक अर्थ ही शिवजी का वास है। कहते हैं कि यह स्थल महाभारत में कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की नगरी थी। यहां भगवान शिव का प्राचीन एवं भव्य मंदिर है। धारणा है कि इसका निर्माण स्वयं शिवजी ने किया था। कहते हैं कि गुरु द्रोणाचार्य हर रोज स्वां नदी में स्नान कर, संध्या को पाठ करने भगवान शिव के पास हिमाचल में जाया करते थे। गुरु द्रोण की पुत्री ययाति अपने पिता से हठ करने लगी कि आप हर रोज कहां जाते हैं, मैं भी आपके साथ चलूंगी। गुरु द्रोणाचार्य ने कन्या को बहुत समझाया, परंतु जब ययाति नहीं मानी, तो कहा कि तुम्हें अवश्य अपने साथ ले चलूंगा, परंतु तुम पहले घर में ही शिवजी का बीज मंत्र ॐ नमो शिवाय का जाप करो। गुरु द्रोण की बेटी एकाग्रचित होकर दृढ़ विश्वास से घर में ही नित्य पाठ करने लगी।

कुछ दिन बीतने पर शिवजी महाराज गुरु द्रोण की बेटी से प्रसन्न होकर स्वयं शिवबाड़ी पहुंच कर उससे बाल लीला कर खेलने लगे। कुछ दिनों बाद ययाति ने अपने पिता से कहा कि आपके जाने के बाद यहां पर जटाधारी बालक आता है और खेल कर चला जाता है। द्रोणाचार्य कहने लगे मैं भी उस जटाधारी बालक को देखूंगा। अगले ही दिन घर से थोड़ी ही दूर जाने के बाद वे रास्ते से वापस आए और घर पहुंचकर आश्चर्यचकित रह गए। जब उन्होंने देखा कि शिव भगवान बालक रूप धारण कर उनकी बेटी के साथ खेल रहे हैं। श्रद्धापूर्ण नमस्कार करने पर वे भगवान शिव से बोले प्रभु यह क्या लीला है। शिवजी ने कहा कि बच्चे ने हमें याद किया, इसलिए हम आ गए। ययाति ने हठ पूर्वक कहा कि हम आपको यहां से अब कभी भी जाने नहीं देंगे। शिव भगवान को उनका कहना मानना पड़ा और उन्होंने कहा कि वैसे तो मेरा वास हिमालय में है, परंतु आज से शिवबाड़ी भी मेरा वास है। तत्पश्चात गुरु द्रोण तथा स्वयं शिव भगवान ने शिवबाड़ी में शिवलिंग की स्थापना की। एक आध्यात्मिक पहलू यह भी है कि माता चिंतपूर्णी के चारों दिशाओं में चार महारुद्र हैं और शिवबाड़ी स्थित यह शिव मंदिर माता चिंतपूर्णी का दक्षिण महारुद्र है।

शिवबाड़ी स्थल के चारों दिशाओं में चार कोनों पर चार श्मशानघाट तथा उनके साथ चार कुएं भी हैं। चारों दिशाओं में श्मशानघाट होना भगवान शिव के भक्तों में भोले बाबा के प्रति उनकी आस्था को और भी प्रगाढ़ करता है। जब मुगल सम्राट औरंगजेब अपनी सेना को लेकर इस शिव मंदिर को तोड़ने आया, तो जैसे ही उसकी सेना ने पवित्र पिंडी को हाथ लगाया, तो पिंडी और जलहरी नीचे होती चली गई। जैसे ही सैनिकों ने पिंडी पर प्रहार करना शुरू किया वैसे ही लाल रंग के जहरीले जानवरों ने उन पर हमला कर दिया और देखते ही मुगल सम्राट के समस्त सैनिक बेहोश होकर गिर गए। तब सम्राट ने दोनों हाथ जोड़कर भगवान शंकर से क्षमा याचना की। उसकी जिद पर भगवान शिव ने स्वयं वहां पिंडी की स्थापना की और वचन दिया कि हर वर्ष बैसाखी के दूसरे शनिवार यहां पर विशाल मेला लगा करेगा और उस दिन वह इस स्थान पर विराजमान रहा करेंगे। तत्पश्चात इस मंदिर की स्थापना हुई। हिमाचल के ऊना स्थित इस मंदिर में बैसाखी के बाद आने वाले दूसरे शनिवार को वह दिन माना जाता है जब भगवान शिव पूरा दिन यहां रह कर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। कहा जाता है कि शिवबाड़ी में पहले भूत-प्रेतों का वास था। बलदेव गिरि जी ने यहां पर घोर तप करके इस शिवबाड़ी को अपने मंत्रों से कील दिया था।

कैसे पहुंचें – यह धार्मिक स्थल होशियारपुर से चिंतपूर्णी मार्ग पर गगरेट से एक किलोमीटर की दूरी पर स्वां नदी के किनारे स्थित है। ऊना तक बस, ट्रेन दोनों के द्वारा पहुंचा जा सकता है। ऊना से 39 किलोमीटर की दूरी पर अंबोटा में शिव मंदिर है। आप चाहें तो निजी वाहन या फिर टैक्सी से भी यात्रा कर सकते हैं ।          – जीवन धीमान, नालागढ़