घर में आयुर्वेद

– डा. जगीर सिंह पठानिया

सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक,

आयुर्वेद, बनखंडी

औषधि के रूप में हिंगू  

हिंगू को हींग भी कहते हैं। हिंगू का बहुत बर्षों तक रहने वाला पौधा होता है,जिसकी जड़ व साथ के तने से निकलने वाला ओलियोगम रेजिन ही हींग कहलाता है।

रेजिन को पांच वर्ष के ऊपर के पौधे की जड़ के ऊपर के हिस्से में कट लगा कर के इकठा किया जाता है। यह जयादातर अफगानिस्तान, पाकिस्तान व ईरान में पाया जाता है। इसका साइंटिफिक नाम फैरूला असाफोएटिडा है। इस में फैरूला एसिड और अम्बैलिक एसिड नाम के रासायनिक तत्त्व पाए जाते हैं।

मात्रा

125 मिली ग्राम से 500 मिली ग्राम शुद्ध हींग पाउडर।

गुण व कर्म

हींग दीपक पाचक, वायु सारक, अफारा नाशक, दिल के लिए टॉनिक का काम करने वाला, पाचन तंत्र को ठीक करने वाला व प्रवाहन को ठीक करने वाला है। इस को मुखयतः वात व कफ  विकार में प्रयोग किया जाता है।

पाचक व दीपक

हींग जठराग्नि को प्रज्वलित करता है, भोजन को पचाता है व मैटाबॉलिजम में सहायक है।

उदरशूल नाशक

पेट के वायु विकार को दूर करके पेट की दर्द को दूर करता है। दस्तों में जब ज्यादा प्रवाहन व निचले पेट में कूथन होता है, उसे भी दूर करता है। यह कब्ज को भी ठीक करता है। औरतों में पीरियड जब अनियमित हों, ज्यादा आता हो, दर्द ज्यादा हो, तो उसमे भी लाभदायक है क्योंकि यह प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन क स्राव को बढ़ाता है।

श्वास कास रोगों में

यह श्वास रोग, श्वसन तंत्र के रोगों में व चेतना को स्थापित करने में सहायक है।  एंटीबायोटिक, एंटीवायरल व शोतधन होने के कारण है। यह श्वासकास प्रतिश्या व अन्य श्वसन तंत्र के रोगों में लाभदायक है। क्योंकि हींग श्वास मार्ग को उत्तेजित करता है तथा रुके हुए बलगम को बाहर करता है।

दिल के लिए टॉनिक के रूप में

हींग एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है, खून के जमने की शक्ति कम करता है तथा रक्त चाप को भी कम करता है। कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है। गर्भावस्था में औषधि के रूप में हींग निषेध है। इसका ज्यादा सेवन वमन व पेट जलन करता है तथा बाहरी चमड़ी पर स्थानीय प्रयोग भी जलन करता है।