कहीं सस्ता तो नहीं बेच दिए : अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं

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जब से नासपीटा हिंदुस्तानी मीडिया कुप्पे की तरह फूल कर, अपने सीने का नाप छप्पन इंच बताने लगा है, तब से खबरों और विज्ञापनों में भेद करना मुश्किल हो गया है। पता ही नहीं चलता कब विज्ञापन के बीच खबरें शुरू हो जाती हैं? खबरों के बीच बजता संगीत और शब्दावली सत्ता, संस्थान या व्यक्ति विशेष के विज्ञापन ही नज़र आते हैं। लगता है अगर फ्रांस को पता होता कि हिंदुस्तान को राफेल बेचने से उसकी इतनी मशहूरी होगी तो शायद उसका निर्माण होते ही वह उसे दो-चार जहाज़ मु़फ्त भेंट कर चुका होता। वैसे अ़खबारें राफेल के नाम पर जितना कुछ पेल चुकी हैं, चीन और पाकिस्तान तो उसके बोझ से ही दब कर मर सकते हैं। ़िकस्से-कहानियों में राजा के तलवार उठाते ही सौ-पचास सिरों के धड़ों से अलग होने की बातें तो सुनी थीं; लेकिन हमारा मीडिया तो दावा कर रहा है कि राफेल की गर्जना से ही जिनपिंग और इमरान के पायजामे गीले हो जाएंगे। यह तो भारतीय मीडिया का ही कमाल है कि फ्रांस को राफेल की इतनी खूबियों का पता इसे भारत को बेचने के बाद ही चल पाया। अब तो अमरीका भी मानने लगा है कि उसने अपने जहाज़ बनाने की बजाय अगर फ्रांस से राफेलखरीद लिए होते तो मुमकिन था कि किम जोंग बिना किसी दबाव के उसके सामने घुटने टेक देता। जब से पांच राफेल की पहली खेप भारत आई है, बेचारे फ्रांस की नींद उड़ गई है।

भारतीय मीडिया से राफेल के बारे में इतनी जानकारी मिलने के बाद उसे लगने लगा है कि कहीं उसने भारत को ये जहाज़ भूसे के भाव तो नहीं बेच दिए? भले ही हवा में जहाज़ में तेल भरने की तकनीक बरसों पुरानी है। लेकिन असली व्यापारी तो वही, जो मिट्टी को सोना बता कर बेच आए। फ्रांस तो इस मामले में फिसड्डी निकला, जो पैंतालीस सालों में भारत के अलावा केवल ़कतर और मिस्र को ही राफेल बेच सका। लेकिन हमारा मीडिया बाज़ी मार गया। उसका कहना है कि जब बड़बोले बाबा बातों में हवा, हवा में हवा और तेल में हवा भर सकते हैं तो वह हवा में तेल तो भर ही सकता है। राफेल के आने के बाद अब ‘उड़ी-सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी ़िफल्में बनना बंद हो जाएंगी। क्योंकि अब तो राफेल भारतीय सीमा में उड़ते हुए ही बीजिंग और इस्लामाबाद से भी आगे तक मार कर सकता है। हो सकता है कोई उत्साही भारतीय निर्माता जल्द ही ‘राफेल-सर्जिकल स्ट्राइक’ नाम से नई ़िफल्म बनाने का ऐलान कर डाले। लगता है कि जिस दिन भारत में राफेल बनने लगेंगे, उस दिन हमारा नाश्ता इस्लामाबाद, लंच बीजिंग और डिनर न्यूयार्क में होगा। सारी दुनिया हमारे कदमों में होगी। जिनपिंग खुद इमरान को लेकर हमारे सामने घुटने के बल रिरयाएगा और कहेगा, अपना अक्साई चिन और पीओके का जो हिस्सा पाकिस्तान ने हमें सौंपा था, उसे वापस ले लो। चाहे तो ताईवान और तिब्बत भी रख लो। बस हमें ब़ख्श दो। हमें तो राफेल की हुंकार से ही डर लगता है। मुझसे झूला झूलने की जो भूल हो गई थी, उसके लिए हमका मा़फी देई दोे। मैं तो अब आपको झूला झुलाने के लिए भी तैयार हूं। फिर ़खयाल आता है कि अगर भारतीय मीडिया की तंद्रा नहीं टूटी तो वास्तविक युद्ध होने पर कहीं पानीपत तो नहीं दुहरेगा?