कांगड़ा दुर्ग में पठानिया

अपनी दक्षता के कुछ पन्ने खोलते हुए वन एवं पर्यटन मंत्री राकेश पठानिया ने बता दिया कि वह अब से कांगड़ा किला के असली वारिस हैं। राकेश पठानिया को विषय बनाना और अपने आसपास सिंचित ऊर्जा का इस्तेमाल करना आता है, इसलिए धर्मशाला में वह यह साबित करते हैं कि ‘अच्छे दिन’ किस तरह आते हैं और परिदृश्य में उनकी मौजूदगी अब क्या मायने रखती है। कांगड़ा के राजनीतिक रेगिस्तान को वह अपने विभागों का एक ऐसा मानचित्र दिखाना चाहते हैं,जो अतीत की अपूर्णीय क्षति की पूर्ति और भविष्य को रेखांकित करने का संतुलन भी है।

धर्मशाला की प्रेस कान्फ्रेंस में पहली बार जयराम ठाकुर का यह नया नवेला मंत्री बता गया कि जिला की नुमाइंदगी में यह शख्स अब शेष बचे कार्यकाल को तसल्लीबख्श ढंग से परोसेगा। कांगड़ा के सुर बदलने की जो चेष्टा मंत्रिमंडल विस्तार से शुरू हुई है, उसके पैगंबर बनने की मंशा रखते हुए पठानिया खासे उत्साहित और लक्ष्य केंद्रित दिखाई देते हैं। ऐसे में कयास लगने शुरू हो गए हैं कि क्या इस बार जयराम ठाकुर को कांगड़ा का हनुमान मिल गया या पठानिया अब उनके हनुमान हो गए। वह कांगड़ा के सूनेपन में अपने साथ कितनी उम्मीदें बटोर पाते हैं या खुद को अपनी विभागीय क्षमता से तिलिस्मगर बना पाते हैं, इस पर उनके भविष्य के अनेक सपने गूंथे हैं।

इसलिए वह कांगड़ा से सपनों का पहला सौदा पूर्व प्रस्तावित खेल विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर करते हैं। वह अपने इरादों के इर्द-गिर्द केंद्र की तरफ बाहें फैलाकर विश्वास से कहते हैं कि इस परियोजना में उन्हें जगत प्रकाश नड्डा व अनुराग ठाकुर का सैद्धांतिक सहयोग मिलेगा यानी इस शख्स की पींगों को देखना पड़ेगा। पठानिया ने वन विभाग के फलक से भी पौंग डैम में टापू देखे हैं। देश के लिए सबसे अधिक विस्थापन की शिकार हुई हल्दूण घाटी अपने आंचल पर खड़े पौंग बांध से पठानिया को पुकार रही है, तो वहां एक साथ कई सियासी प्रतिध्वनियां सुनी जाएंगी। विशाल पौंग जलाशय में घोषणाओं की किश्तियों पर कई नेताओं ने चप्पू चलाए हैं,लेकिन पहली बार कोई मंत्री खेल भावना के नजरिए से सोच रहा है।

पौंग ने स्व.सतमहाजन से चंद्र कुमार चौधरी तक के संकल्पों की आरती उतारी, लेकिन आज भी संभावनाओं के इस समुद्र को किसी ने नमन नहीं किया। ईको टूरिज्म पर पठानिया ने सारे प्रदेश का खाका खींच कर मीडिया को बता दिया कि उनके लिए जंगल की छांव भी वरदान सिद्ध हो सकती है। खैर पर नीति लाने की घोषणा से वह अभिनव की प्रयोगशाला खोलते हैं, तो यह भी सिद्ध करते हैं कि जयराम सरकार का यह मंत्री अपनी विभागीय जानकारियों को जुटाकर प्रशासनिक क्षमता का बखूबी इस्तेमाल करेगा। यही वजह है कि पूर्व सरकारों के कार्यकाल में धर्मशाला के सचिवालय की बढ़ती अहमियत में यह बंदा खुद को सजा देता है। यह क्षेत्रीय ताजपोशी का नया मंजर हो सकता है, जिसे कांगड़ा के दो अन्य मंत्री छू भी नहीं सके।

मौजूदा सरकार के आरंभिक वर्षों में कांगड़ा अगर अछूत बना, तो इसका एक कारण जिला के नेताओं का घटता वजन भी रहा। केवल विपिन सिंह परमार की शख्सियत में इतना दम रहा है कि वह क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा के चिराग जलाकर शांता कुमार के उत्तराधिकार की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन राजनीति के आकस्मिक परिवर्तन में उनका परिदृश्य बदल गया। सरवीण चौधरी बनाम किशन कपूर बना माहौल इतना रिसाव कर गया कि सचिवालय के गलियारे ही खाली हो गए। बिक्रम सिंह ने कोशिश ही नहीं की कि वह हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के बाहर कांगड़ा को भी देख सकें।

यह दीगर है कि कांगड़ा अपनी ही विभाजक रेखाओं के कारण सियासी दोष से निरंतर अभिशप्त रहा है। बहरहाल राकेश पठानिया ने फिर से नए संबोधन पैदा करने की कोशिश शुरू की है और इसकी सबसे अहम सांकेतिक भाषा में उन्होंने कांगड़ा के दर्पण का विस्तार किया है। वर्तमान सरकार अनेक कारणों से कांगड़ा के मंतव्य से दूर रही है और अगर पठानिया फिर से इस धुरी को घुमा पाते हैं, तो उनका धर्मशाला सचिवालय में बैठना राजनीति के नए संदर्भों में देखा जाएगा।