श्रीकृष्ण स्तोत्रम्

-गतांक से आगे…

अनर्घ्यरत्नजटितमुकुटोज्वलकुण्डलम् ।

सुस्मितं सुमुखाम्भोजं सखीवृन्दनिषेवितम् ॥ 10॥

स्वामिन्याश्लिष्टबामाङ्गं परमानन्दविग्रहम् ।

एवं ध्यात्वा ततः स्तोत्रं पठेत्सुविजितेन्द्रियः ॥ 11॥

भगवान कृष्ण का मुकुट चमचमाता हुआ और कुण्डल अनर्घ्य रत्नों

से जटित है। उनका मुखकमल सुंदर मुस्कान से युक्त तथा सखी

वृन्द से सेवित है। उनका परमानंद विग्रह वाम भाग में स्वामिनी

(राधा) से संश्लिष्ट है। उस विग्रह का ध्यान करके जितेन्द्रिय

साधक को उनके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए॥ 10-11 ॥

अथ स्तोत्रम्।

कृष्णं कमलपत्राक्षं सच्चिदानन्दविग्रहम्।

सखीयुथान्तरचरं प्रणमामि परात्परम्॥ 12॥

सत्, चित् एवं आनंदस्वरूप, कमल के पत्र के समान नेत्रों वाले

तथा सखीसमूह में विचरण करने वाले परात्पर कृष्ण को मेरा

प्रणाम है॥ 12 ॥

शृंगाररसरूपाय परिपूर्णसुखात्मने।

राजीवारुणनेत्राय कोटिकन्दर्परूपिणे॥ 13॥

शृंगार रस रूप वाले, परिपूर्ण सुख वाले, लाल कमल के समान

अरुण नेत्र वाले तथा कोटि कामदेव स्वरूप कृष्ण को मेरा नमस्कार है॥ 13 ॥                                    – क्रमशः