सेना और मेक इन इंडिया: कर्नल (रि.) मनीष धीमान, स्वतंत्र लेखक

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

अमरीका द्वारा कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराना तथा चीन का संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमरीका में 70 लाख के करीब संक्रमित होने को ट्रंप की नाकामी बताना। भारत में भी संक्रमितों की बढ़ोतरी पर सरकार की काबिलीयत पर विपक्ष द्वारा उंगली उठाना, इस तरह के वाद-विवाद तथा बयानबाजी के साथ शायद हमारे देश ने ही नहीं बल्कि पूरे विश्व ने अब इस महामारी के साथ जीने की कोशिश शुरू कर दी है। कुछ ऐहतियात  के साथ हर काम और दिनचर्या बिलकुल आम होती जा रही है। कृषि विधेयकों पर समर्थन तथा विरोध में लोग बंटे हुए हैं। हिमाचल को लद्दाख से जोड़ने वाली रोहतांग सुरंग शिलान्यास के लगभग दो दशक बाद भव्य उद्घाटन के बाद देश को समर्पण के लिए तैयार है।

लद्दाख सीमा पर अलग-अलग स्तर की बातचीत के बावजूद कोई हल नहीं निकल रहा। पर एक बात तो तय है कि सेना को ताकतवर बनाने के लिए अन्य पहलुओं पर ध्यान देने के साथ आला दर्जे के हथियार मुहैया कराना भी जरूरी होता है। भारतीय सेना में बड़े लड़ाकू हथियारों की अहमियत के साथ छोटे तथा क्लोज़ कम्बैट वैपन की भी जरूरत रहती है। इसी के मद्देनजर पिछले दिनों भारतीय सेना जो 93895 बैटल कार्बाइन संयुक्त अरब अमीरात से खरीदने की योजना बना रही थी, उस पर पुनर्विचार किए जाने की बात हुई। करीब दो साल पहले किए गए एक समझौते के अनुसार भारत ने कारकल इंटरनेशनल से कार-816 कार्बाइन खरीदने पर सहमति जताई थी।

इसमें लगातार देरी होना तथा  देश में इसकी अर्जेंंट जरूरत होने की वजह से भारतीय रक्षा मंत्रालय ने अमीराती कंपनी से वैपन की डिलीवरी में देरी होने पर क्लेरिफिकेशन मांगी थी, पर कंपनी के जवाब से संतुष्ट न होने की वजह से रक्षा मंत्रालय ने भविष्य में इस कारबाईन की जरूरत जो कि करीब 360000 की होने वाली है, को देखते हुए यूएई से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात करते हुए इन हथियारों को भारत में ही बनाने की बात कही है। उसी के परिणामस्वरूप 21 सितंबर 2020 को संयुक्त अरब अमीरात की काराकल नामक स्मॉल आर्म मैनुफैक्चरिंग कंपनी ने भविष्य में इस वैपन को मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही बनाने की घोषणा कर दी है।

इसके अलावा मास्को में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की समिट के दौरान रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि भारत और रूस मिलकर एके-203 असालट राइफल का निर्माण भी शीघ्र ही भारत के अमेठी में करने जा रहे हैं। भारत जैसा देश जिसकी सीमाएं बिगड़ैल पड़ोसियों के साथ लगी होने के कारण उनकी सुरक्षा के लिए एक बड़ी सैन्य शक्ति तथा हथियारों की जरूरत लगातार बनी रहेगी, इसी के तहत भारतीय बजट का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ हथियारों की खरीद-फरोख्त में ही खर्च हो जाता है। इस सब को ध्यान में रखते हुए अगर भारत हथियारों को खरीदने के बजाय टैक्नोलॉजी ट्रांसफर पर फोकस रखते हुए ज्यादातर हथियारों का निर्माण अपने मुल्क में करना शुरू कर देगा तो भविष्य में यह भारत की तरक्की के लिए बहुत बड़ा योगदान होगा।