आतंकवाद के नए साये

अलकायदा और आईएस को समाप्त मानने वाले आकलन और विश्लेषण आज गलत साबित हुए हैं। अलकायदा उसके सरगना लादेन की मौत के कई सालों बाद भी जिंदा है। हालांकि अब कमान किसी अन्य आतंकी नेता के हाथ में है। भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा और आईएस एकसाथ मिलकर सक्रिय हैं। पाकिस्तान अब भी अलकायदा की पीठ पीछे मौजूद है। बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र ने एक रपट जारी की थी कि भारतीय उपमहाद्वीप में 180 से 200 तक आतंकी सक्रिय हैं और वे कभी भी आतंकी हमला कर सकते हैं। आतंकी अलकायदा से जुड़े हैं और भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से हैं। भारत के कई राज्यों में आतंकियों का विस्तार हो रहा है। हमारे देश में यमन का आतंकी संगठन -अंसारूल्लाह-भी दस्तक दे चुका है। यह यमन के हूती विद्रोहियों का उग्रवादी संगठन है, जिसके निशाने पर सऊदी अरब और अमरीका ही थे। वे कोशिश करते रहे हैं कि इन देशों में आतंकी हमले कर अशांति और अस्थिरता पैदा की जाए। यह दीगर है कि अमरीका में उनकी रणनीतिक साजिशें कामयाब नहीं रहीं, लेकिन अब अंसारूल्लाह ने दक्षिण भारत के इलाकों को दहलाने की रणनीति तैयार की है।

आतंकवाद के ऐसे काले साये मंडराते हुए तब महसूस हुए, जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से छह और केरल के एरनाकुलम से तीन आतंकियों को धर दबोचा। बंगाल में मुर्शिदाबाद के अलावा नदिया और नॉर्थ 24 परगना आदि इलाके भी आतंकवाद के नए गढ़ बन चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की रपट में यह  भी आगाह किया गया था कि केरल और कर्नाटक में बड़ी संख्या में अलकायदा-आईएस के आतंकी सक्रिय हैं। यह दावा भी किया गया था कि वे आतंकी हमलों को अंजाम दे सकते हैं। जिन नौ अलकायदा आतंकियों को गिरफ्त में लिया गया है, उनसे पूछताछ के बाद यह साजिश सामने आई है कि आतंकी राजधानी दिल्ली में प्रतिष्ठित सुरक्षा संस्थानों के अलावा भीड़भाड़ वाले इलाकों में कहर बरपाना चाहते थे। दिल्ली से सटे एनसीआर के कुछ इलाके भी उनके निशाने पर थे। केरल में कोच्चि के नौसेना बेस और शिपयार्ड भी आतंकियों के निशाने पर थे। आतंकियों की धरपकड़ के बाद तय हो गया कि आतंकवाद कश्मीर घाटी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बंगाल और केरल के अलावा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, बिहार, उप्र, मप्र और हरियाणा आदि राज्यों में भी अलकायदा-आईएस के स्लीपर सेल हैं। हमारे देश में यह आतंकवाद का नया चेहरा है। एनआईए को शुरुआती जांच में यह भी पता चला है कि आतंकियों को सोशल मीडिया के जरिए पाकिस्तान स्थित आतंकियों और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कट्टरपंथी बनाया और मानस में आतंकवाद बो दिया।

सवाल है कि आतंकियों को पैसा, हथियार और गोला-बारूद आदि कौन मुहैया कराता रहा है? क्या इस साजिश में भी पाकिस्तान संलिप्त है? गौरतलब है कि फरवरी, 2012 के बाद दिल्ली में कोई बड़े आतंकी हमले को अंजाम नहीं दिया जा सका है। राजधानी एकबारगी फिर छलनी होने से बच गई, लेकिन कश्मीर के पुलवामा में फरवरी, 2019 में एक बहुत बड़ा आतंकी हमला किया गया था, जिसमें हमारे 40 जवान ‘शहीद’ हुए थे।  हमने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में, आतंकवाद को कुचलने वाले ‘ऑपरेशनों’ के जरिए, प्रतिशोध लिया था। बहरहाल अब भी आतंकवाद के चेहरे मुखौटों में बंद रहते हैं, उनकी पहचान आसान नहीं होती। पकड़े गए आतंकी भी दिहाड़ीदार मजदूर का काम करते थे और कुछ पढ़ाई कर रहे थे। सभी मजदूर बस्तियों में रहते थे। जब उन्हें आतंकी के तौर पर गिरफ्तार किया गया, तो बस्ती वाले भी हैरान हुए होंगे और डरे भी होंगे कि क्या उनके बीच आतंकी रहते आए हैं? इस प्रवृत्ति का समाधान बहुत मुश्किल है। अब वह मामला भी प्रासंगिक लगता है, जब पत्रकारिता का एक राष्ट्रीय चेहरा भी चीन का ‘जासूस’ निकला। वह पैसे की लालच में देश के रक्षा विभाग और अन्य मामलों की जानकारी  चीन को बेच रहा था। शर्मिंदगी भरी प्रवृत्ति, विडंबना और देशद्रोह…! चेहरों पर भरोसा कैसे करें?