खुलते हिमाचल का गंतव्य

एक दिन तो खुलना ही था, इसलिए हिमाचल ने तय कर लिया कि अब कोरोना के खिलाफ प्रदेश में आने की कोईर् सरहद न रहे। अब प्रश्न केवल प्रतीक्षा से जुड़ा है कि कब आगे चलकर स्कूल-कालेज खुलेंगे या कोविड के बीच नई जिंदगी किस करवट बैठती है। देश ने देखा, हिमाचल ने अनुभव किया और करियर के फासलों को दूर करने की गुंजाइश में बच्चों ने जेईई तथा नीट की परीक्षाएं दे डालीं। एचएएस परीक्षा की प्रश्नावली का उत्तर लिखने के लिए हिमाचल की युवा पीढ़ी ने कोविड चुनौतियों के खिलाफ हस्ताक्षर किए, तो स्नातकोत्तर परीक्षाओं के अवरोधक हटा कर छात्रों ने कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों को नजरअंदाज कर दिया। जाहिर है अब कोविड के आंकड़ों को नजरअंदाज करके जिंदगी की शून्यता को तोड़ने का प्रयास हो रहा है। आर्थिकी को पुकारा जाने लगा है और इसी परिप्रेक्ष्य में हिमाचल को खोलकर सरकार अपने इरादों को जाहिर कर रही है। यह आर्थिक विराम के सामने उस एहसास की शुरुआत है जो जिंदगी की जरूरतों की कैद मंजूर नहीं करता। फैसले से आशंकित वर्ग भी रहा होगा, लेकिन यह नए सिरे से आत्मविश्वास लिखने की अनिवार्यता भी है।

राष्ट्रीय स्तर पर भी आर्थिकी के सारे सूचक और मददगार ध्वस्त हैं, तो हिमाचल जैसे राज्य की विवेचना आवश्यक हो जाती है। प्रदेश की करीब चार हजार होटल व पर्यटन इकाइयां आज भुखमरी का शिकार हैं, तो परिवहन क्षेत्र में छाई मायूसी टूट नहीं रही। अगर सर्वेक्षण करके समझा जाए, तो कितने ही व्यापार चौपट हुए या स्वरोजगार के शटर नीचे गिर गए। सरकार की अपनी वित्तीय व्यवस्था या बैंकों की हालत पर अगर मंथन करें, तो इस लाचारी से बाहर निकलने के सिवाय और कोई उपाय नहीं रहा। कुछ संरक्षणवादी विचार यह अभिलाषा कर सकते हैं कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों के बीच सारी शर्तें हटाने से और खतरा बढ़ेगा और यह भी कि हालात और बिगड़े तो क्या करेंगे। बेशक यह प्रश्न वाजिब है और सीधे चिकित्सकीय सुविधाओं को खंगालता है। अभी हिमाचल की केवल 27 फीसदी आबादी ही कोरोना टेस्टिंग से गुजरी है, तो आने वाले वक्त की कहानी क्या होगी। जाहिर है हिमाचल के खुलने से कार्य स्थल का विस्तार होगा, तो नई आर्थिकी के साथ कोरोना की रफ्तार का रिश्ता भी रहेगा। हिमाचल में कोरोना संक्रमण के अलग-अलग चरण रहे। पहले बाहर से नौकरी छोड़कर राज्य में पहुंचे संक्रमित हुए तो हमीरपुर-कांगड़ा ने अपने हाल बताए। फिर औद्योगिक मजदूरों ने सोलन का खाता बड़ा किया या बागबानी श्रमिकों ने सेब सीजन को कोरोना का आंकड़ा दिया। अब कम्युनिटी स्प्रैड के दायरे में एक साथ गांव-कस्बे से शहर तक के आंकड़े दौड़ रहे हैं, तो नए विवरण के साथ हिमाचल का खुलना पेश आएगा।

बंधन मुक्त होती व्यवस्था का एक पक्ष अवश्य ही रास आएगा, लेकिन इसके साथ-साथ हिदायतों का अनुशासन नत्थी है। अब हर तर्क सीधे मुखातिब है और हर नागरिक इससे वाकिफ है। कोरोना काल के अहम भाग में सरकारें पीछे हट रही हैं, तो आम आदमी को ही अपनी रोजी रोटी के साथ सुरक्षित रहने की परिपाटी विकसित करनी है। हिमाचल खुलने से सिर्फ उस आशा का दायरा बड़ा हो रहा है, जो पिछले छह महीनों में खो चुके अस्तित्व को फिर चला सकती है। यह आशा शायद धीरे-धीरे आर्थिकी का पहिया घुमा दे, तो कहीं किसी रेस्तरां के चूल्हे पर गर्मी आ जाए या टैक्सी के थमे पहिए फिर से रवाना हो जाएं। इस आशा का कोई सुरक्षा कवच नहीं, बल्कि यह अब तक के कवच को उतार कर हमें जीना सिखा रही है। इससे सोच बदलने का बहाना मिल रहा है और कोरोना के खिलाफ अब नई आर्थिक लड़ाई शुरू हो रही है। यह बाजार-व्यापार और पुरानी आर्थिकी में लौटने का अधिकार है, जिसे कबूल करने के लिए मनोबल ऊंचा करना पड़ेगा। मुंबई, पुणे, दिल्ली व बेंगलूर जैसे महानगरों को जिस कोरोना ने अभिशप्त किया, वहां जिंदगी फिर से सामना कर रही है। जो प्रवासी मजदूर भयभीत माहौल में घर लौट गए, वे फिर कार्यस्थल की ओर वापस आ रहे हैं, उनसे सीखें तो बदलते हालात में हिमाचल को खोलकर आर्थिक पहियों की रवानगी होगी, कुछ हिदायतों के साथ।