परीक्षा की कैद में निरीक्षण

शिमला में नई शिक्षा नीति पर हिमाचल विधानसभा की बहस का गुलदस्ता, बिलासपुर पहुंच कर ही कांटों से भर गया। आरोप-प्रत्यारोपों के बीच नई शिक्षा नीति की पड़ताल होगी, लेकिन जो मजमून घुमारवीं के कुठेड़ा स्थित निजी स्कूल में देखा गया, अति शर्मनाक व निंदनीय है। स्कूल शिक्षा बोर्ड के तहत स्टेट ओपन स्कूल की अनुपूरक परीक्षा का हाल बयान करती यह घटना, समूची शिक्षा प्रणाली के दोष समेट लेती है। आश्चर्य यह कि प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक को न परीक्षा केंद्र की जांच करने दी गई, बल्कि पूरी फ्लाइंग स्क्वायड टीम को बंदी बना लिया गया। यहां शिक्षा का एक उद्देश्य पढ़ाई से दूर रहे छात्रों को ओपन स्कूल के मार्फत अवसर देना रहा होगा, जबकि दूसरी ओर शिक्षा के अवमूल्यन को रोकने की परिपाटी को सशक्त करना रहा है। जाहिर है ये दोनों उद्देश्य कुठेड़ा के स्कूल में असफल हुए और इसके माध्यम से हम परीक्षाओं की बिगड़ती स्थिति को भांप सकते हैं।

 यह मामला नकल से भी आगे निकल कर ऐसी पतित राह पर खड़ा है, जहां एक स्कूल में समाज के मूल्य नीलाम हो रहे हैं। यह शिक्षा में अवतरित माफिया का चित्रण भी है जो व्यवस्था को सीधी चुनौती दे रहा है। आखिर ऐसे स्कूल किस उद्देश्य से चल रहे हैं और समाज की कौन सी सेवा कर रहे हैं, इसका मूल्यांकन करना होगा। स्कूल शिक्षा बोर्ड की मान्यता में पलते शिक्षा के परिसर अगर कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाएंगे, तो ऐसे प्रसार का क्या फायदा। कुठेड़ा की एक घटना ने न जाने कितने निजी स्कूलों की छवि को चोट पहुंचाई है, जबकि इससे घृणित माहौल और क्या होगा कि एक स्कूल ही माफिया सरगना बन गया। देखना यह होगा कि इस घटना को कौन किस तरीके से देखता है। स्कूल शिक्षा बोर्ड, शिक्षा विभाग और समाज के सामने ऐसे नासूर की वजह सभी के आसपास है। हम इसे केवल अपराध न मान कर भी हल कर सकते हैं, लेकिन जिस अपराध की शाखा में परीक्षा हो रही थी, उसके व्यापक संदर्भों को खंगाले बिना जांच कैसे होगी। निजी क्षेत्र के कुछ स्कूल ऐसे इरादों में लिप्त होकर छात्रों के प्रिय केंद्र इसलिए बन जाते हैं, क्योंकि वहां पढ़ाई नहीं देखी जाती , बल्कि प्रमाण पत्र की गारंटी के साथ भ्रष्ट राह अपनाई जाती है।

 यह स्कूल नकल से भी आगे निकल कर अपने प्रतीकों में शिक्षा से खिलवाड़ कर रहा है, तो यहां पद्धति का दोष किसके सिर पर मढ़ा जाए। आखिर यह परिसर भी हिमाचली शिक्षा की संपत्ति माना जाएगा और अपने नैतिक दायित्व में स्कूल शिक्षा बोर्ड को यह तय करना है कि परीक्षा केंद्र इस तरह के माफिया का एकाधिकार न बन जाएं। यह इसलिए भी कि हर साल दावों की फेहरिस्त में शिक्षा बोर्ड इजाफा करता है, लेकिन असलियत में कुठेड़ा प्रकरण की संगत में पूरी व्यवस्था दिखाई देती है। बिलासपुर के प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक सुदर्शन कुमार की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने विभागीय कसौटियों पर परीक्षा का अपहरण होते-होते बचा लिया, वरना ऐसी तलाशियां भी मुखबिर बन कर स्थिति को सामान्य मान लेती हैं। आश्चर्य यह कि इसी महीने शिक्षक दिवस मनाने की प्रासंगिकता में शिक्षा का शृंगार हुआ, लेकिन कुठेड़ा के स्कूल ने उन तमाम पुरस्कारों का अपमान किया है, जिन्हें यह राज्य व देश कृतज्ञ मन से अदा करता है। इस घटना का कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकारी तौर पर ऐसा सबक देना चाहिए ताकि फिर कोई ऐसी जुर्रत न कर सके।