श्री विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा पूजा 16-17 सितंबर को मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति को होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा देव को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर माना जाता है। कहते हैं प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। स्वर्ग लोक, सोने की लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर भी विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। इसलिए विश्वकर्मा पूजा के दिन उद्योगों, फैक्ट्रियों एवं मशीनों की पूजा की जाती है।

यह पूजा उन लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है जो कलाकार, शिल्पकार और व्यापारी हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होती है। धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वालों के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।

विश्वकर्मा पूजा सामग्री एवं विधि

श्री विश्वकर्मा जी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि की व्यवस्था कर लें। इसके बाद फैक्ट्री, वर्कशॉप, दुकान आदि के स्वामी को स्नान करके सपत्नीक पूजा के आसन पर बैठना चाहिए। कलश को अष्टदल की बनी रंगोली जिस पर सतनाजा हो रखें। फिर विधि-विधान से क्रमानुसार स्वयं या फिर अपने पंडितजी के माध्यम से पूजा करें। ध्यान रहे कि पूजा में किसी भी प्रकार की शीघ्रता भूलकर न करें।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा का मंत्र भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ॐ आधार शक्तपे नमः और ॐ कूमयि नमः, ॐ अनंतम नमः, ॐ पृथिव्यै नमः मंत्र का जप करना चाहिए। जप करते समय साथ में रुद्राक्ष की माला रखें।

विश्वकर्मा पूजा की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार इस समस्त ब्रह्मांड की रचना भी विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई है। ऋग्वेद के 10वें अध्याय के 121वें सूक्त में लिखा है कि विश्वकर्मा जी के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना की गई है। विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की। कहा जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र, भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं। वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था।

भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के बारे में विचार किया। इसकी जिम्मेदारी शिवजी ने भगवान विश्वकर्मा दी तब भगवान विश्वकर्मा ने सोने के महल को बना दिया। इस महल की पूजा करने के लिए भगवान शिव ने रावण को बुलाया। लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने पूजा के बाद दक्षिणा के रूप में महल ही मांग लिया।  भगवान शिव इस महल को रावण को सौंपकर कैलाश पर्वत चले गए। इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण भी किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।