कोरोना से अब भी सचेत रहने की जरूरत

डा. अजय पाठक

लेखक नालागढ़ से हैं

ज्यादातर कोरोना के मरीज स्वतः ठीक हो जाते हैं, लेकिन कोमोरबिड  मरीजों को बीमारी गंभीर अवस्था तक ले जाती है। 50-55 वर्ष से ऊपर भी यह बीमारी गंभीर हो जाती है। लेकिन बाकी लोगों को भी इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए क्योंकि किसी भी व्यक्ति में बीमारी बढ़ सकती है। कोरोना अनेक अंगों को प्रभावित करता है। जब बीमारी तेजी से बढ़ रही होती है तो कई बार मरीज की मृत्यु तक भी हो जाती है। कोरोना शरीर के साथ-साथ मरीज को मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है। बहुत से असंक्रमित मरीज भी केवल डर के मारे मानसिक रूप से प्रभावित होते हैं। एक तरफ  कुछ लोग इसे बहुत हल्के से लेते हैं तो दूसरी तरफ  कुछ लोग बीमारी न हो जाए, इसके डर से इतना ग्रस्त हो जाते हैं कि वह मानसिक अवसाद का शिकार हो जाते हैं। वे डर से आवश्यक कामों के लिए भी बाहर नहीं निकलते।

हर समय बीमारी के बारे में सोचते रहते हैं। अगर उनके पास तनाव से लड़ने का कोई आध्यात्मिक, पारिवारिक अथवा धार्मिक साधन उपलब्ध न हो तो तनाव अथवा डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। बीमारी से ग्रस्त होने के बाद भी कोरोना व्यक्ति को मानसिक रूप से प्रभावित करता है। कुछ मरीजों के मन में एक डर पैदा हो जाता है। इससे उसकी इच्छा शक्ति कम हो जाती है। आइसोलेशन में रहने का डर ही व्यक्ति को मानसिक अवसाद से ग्रस्त कर सकता है। स्वस्थ होने के कई दिन बाद तक भी मरीज हल्के तनाव का शिकार रहता है। भारतीय संस्कृति में योग एवं ध्यान का एक विशेष महत्त्व है। परिवारों में बच्चों को बचपन से ही इसकी प्रेरणा दी जाती है। जो व्यक्ति ध्यान अथवा योग नित्य करता है, उसे आसानी से मानसिक अवसाद ग्रस्त नहीं करता। वह असंक्रमित अवस्था में भी बीमारी से सावधान तो रहता है, लेकिन डरता नहीं है। बीमारी के दौरान भी योग-ध्यान करने वाला व्यक्ति आसानी से विचलित नहीं होता। वह मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।