नवरात्र का महत्त्व

नवरात्र देवी मां के सम्मान में भारत भर में मनाए जाने वाले पर्वों में से मुख्य पर्व है। यह उत्सव अमावस्या के पश्चात शुक्लपक्ष के प्रारंभ का भी प्रतीक है। यह एक विशेष पर्व है, जिसमें पारंपरिक पूजन, नृत्य व संगीत सब सम्मिलित रहते हैं। ‘नवरात्रि’ शब्द दो शब्दों से बना है ‘नव’ अर्थात ‘नौ’ और ‘रात्रि’ अर्थात ‘रातें’। यह उत्सव नौ रातों और दस दिन तक चलता है और दसवें दिन ‘दशहरा’ या विजयदशमी मनाने के साथ समाप्त होता है। इन दस दिनों में देवी मां के दस रूपों का पूजन किया जाता है।

तीन तत्त्व- नवरात्रि नौ रातों तक उत्सव मनाने और देवी मां दुर्गा का पूजन करने का पर्व है। नवरात्र का अर्थ है, हमारे जीवन के सभी तीन तत्त्वों को, नौ दिन तक विश्राम देना। जिस प्रकार एक शिशु को जन्म लेने में नौ माह लगते हैं, उसी प्रकार देवी मां ने नौ दिन का विश्राम लिया और दसवें दिन जिसकी उत्पत्ति हुई, वो था निर्मल प्रेम व श्रद्धा। नवरात्रि के पहले तीन दिन तामसिक दिन होते हैं, उसके बाद राजसिक दिन आते हैं और अंत के तीन दिन सात्त्विक दिन होते हैं । रात को, सब चीजों का आनंद उठाने वाली देवी मां के लिए आरतियां गाई जाती हैं। शास्त्रीय नृत्य व गायन होता है और विभिन्न वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं। हर दिन का अपना विशेष महत्त्व होता है। यज्ञ, पूजा और होम किए जाते हैं। अग्नि को अर्पित की जाने वाली सामग्री में विभिन्न जड़ी-बूटियां, फल, वस्त्र और मंत्र शामिल होते हैं, जोकि मुग्ध कर देने वाले तेजोमय दैवीय वातावरण का निर्माण करते हैं।

नकारात्मक से सकारात्मक- नवरात्र के समय, सर्वप्रथम मन की अशुद्धियों को दूर करने के लिए मां दुर्गा का आवाहन किया जाता है। इस प्रकार, पहला कदम लालसा, द्वेष, दंभ, लोभ आदि प्रवृत्तियों पर विजय पाना है। एक बार, आप नकरात्मक आदतों और प्रवृत्तियों को छोड़ देते हैं, तो आध्यात्मिक मार्ग पर अगला कदम अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ाना व बलशाली बनाना होता है। इसके पश्चात उत्कृष्ट मूल्यों व गुणों और समृद्धि को विकसित करने के लिए मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है। अपनी सभी नकारात्मक प्रवृत्तियों के त्याग कर लेने और सभी भौतिक व आध्यात्मिक संपन्नता की प्राप्ति के पश्चात, आत्मा के सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हेतु मां सरस्वती का आवाहन किया जाता हैं। ये नौ रातें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें सूक्ष्म ऊर्जा भरी होती है और सूक्ष्म ऊर्जा का संवर्धन होता है। नवरात्र में की जाने वाली सभी पूजाओं और रस्मों का उद्देश्य अप्रकट व अदृश्य ऊर्जा, दैवीय शक्ति को प्रकट करना है, जिसकी कृपा से हम गुणातीत होकर सर्वोच्च, अविभाज्य, अदृश्य, निर्मल, अनंत चेतना की प्राप्ति कर सकते हैं।

विजयदशमी- नौ दिन के विशाल समागम के बाद, हम दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाते हैं। विशालता की संकीर्णता पर, वृहद् मन की क्षुद्र मन पर, अच्छाई की बुराई पर विजय। विजय दशमी के दिन हम संकल्प लेते हैं कि हमें जो कुछ भी मिला है, उसको हम विश्व के कल्याण के लिए सर्वोत्तम रूप से प्रयोग करेंगे। इस सारे उत्सव को मनाने का उद्देश्य जड़ता से प्रसन्नता की ओर कामना से तृप्ति की ओर जाना है।