शिक्षा की रोशनी में दीमक

हमीरपुर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की रोशनी में दीमक की तरह घुसे निदेशक को भले ही बर्खास्त कर दिया गया हो, लेकिन शिक्षण संस्थान अभिशप्त होने से नहीं बचा। इमारतें खड़ी कर देने से शिक्षण संस्थान बन जाते, तो यह परिस्थिति क्यों आती, परंतु यहां नेतृत्व के घौंसले में दीमक पलती रही और वर्षों की मेहनत व प्रतिष्ठा को बट्टा लगाकर एक निदेशक शिक्षा की सारी मिट्टी को गंदा कर गया। कई दाग चस्पां हैं इस विरासत में, जरा कंधा देना दीवारें गिर न जाएं। और एनआईटी की दीवारें शिकायत कर रही थीं। जिस पृष्ठभूमि से निकलकर 1986 में स्थापित रिजनल इंजीनियरिंग कालेज राष्ट्रीय स्तर की रैंकिंग को छूते एनआईटी बना, वह एक ही झटके में अपनी बेचारगी पर तरस क्यों खाने लगा। छत्तीस साल के सफर को निगलने के लिए एक निदेशक को सिर्फ दो साल लगे और गुल भी ऐसे खिलाए कि परिसर में पढ़ाई का माहौल मातम मनाने लगा यानी जो संस्थान कभी राष्ट्रीय रैंकिंग में चौहदवें स्थान पर स्थान पर था आज 98वीं पायदान पर खिसक कर अपने हालात पर चीख रहा है। यह दीगर है कि इस दौरान प्रशासनिक अनियमितताएं और नियुक्तियों में सारे मानदंड आशंकित हैं।

 इन दो सालों में परिसर ने बाकी सारे काम किए, लेकिन उद्देश्यपूर्ण शिक्षा, जवाबदेही, जिम्मेदारी तथा पारदर्शिता भूल गया। यह विडंबना एक राष्ट्रीय संस्थान की है, तो इस अनुभव की कसौटी पर शिक्षण संस्थानों के गिरते स्तर व आचरण की पूर्ण समीक्षा अभिलषित है। हिमाचल में एकमात्र आईआईटी मंडी ने अपनी क्षमता, लक्ष्यों तथा ईमानदार माहौल को प्रमाणित करते हुए संस्थान को उच्च शिखर पर पहुंचा दिया है। पूरा प्रदेश इससे गौरवान्वित महसूस करता है। क्या इसी तरह का आभास बाकी विश्वविद्यालयों या मेडिकल कालेज परिसरों में मिलता है। यह एक बड़ा प्रश्न है। कभी शिमला विश्वविद्यालयों से निकले एमबीए या आईटी इंजीनियर अपने साथ रोजगार की उच्च संभावनाएं जोड़ते थे, लेकिन आज यह विरासत भी अपमानित व खंडित है। बागबानी व कृषि विश्वविद्यालयों की परिधि में किसान का खेत और बागीचा अगर मुस्करा नहीं पा रहा, तो कहीं उद्देश्य हार रहा है। सबसे अधिक विडंबना में केंद्रीय विश्वविद्यालय जी रहा है, जहां पढ़़ाई में शाखाएं तो हैं लेकिन अध्ययन नहीं। संगोष्ठियां-सम्मेलन तो हैं, लेकिन पर्वतीय मीमांसा नहीं। आश्चर्य तो यह कि सियासत ने इसके आंचल से निष्पक्षता, स्वतंत्रता और मौलिक ज्ञान को ही लूटकर इसे लाचार बना दिया।

 रैंकिंग तो छोड़ें, यह विश्वविद्यालय अपने शैशव काल में ही अनाथ-असहाय और असमर्थ होकर क्या कर रहा है, किसी को पता नहीं। इसका आज क्या वजूद है और कल क्या होगा, इस सन्नाटे में नियुक्तियों के ढेर पर शिकायतें बढ़ रही हैं। ऐसे में मात्र एनआईटी की तफतीश में शिक्षा के अपराधी सामने नहीं आएंगे, बल्कि हर छोटा-बड़ा शिक्षण संस्थान इस तरह की छानबीन से बच नहीं सकता। शिक्षा के उच्च मानदंड स्थापित करने के लिए अगर मंडी आईआईटी ने खुद को रेखांकित कर पाया, तो ठीक वैसे नेतृत्व की छांव में राष्ट्रीय-राज्य स्तरीय के साथ-साथ स्थानीय शिक्षण संस्थानों की परवरिश जरूरी है। हर नए मेडिकल कालेज में भवनों की चर्चा के बजाय वातावरण की अहमियत बढ़ाई जाए। हिमाचल ने शिक्षा में मात्रात्मक उपलब्धियों के बीच शिक्षक की अहमियत को नजरअंदाज किया है। अब प्रदेश में शिक्षक को शिक्षाविद के रूप में परिमार्जित करने की आवश्यकता है। हमीरपुर एनआईटी के निदेशक को बर्खास्त करके अगर केंद्र का सख्त लहजा कारगर हुआ है, तो हिमाचल भी इससे सीखे।