विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

21 मार्च 2020 के अंक में आपने पढ़ा कि कैसे भी संकट में उनमें से एक ने भी स्वार्थ का परिचय न दिया। अपने मित्र  के लिए वे प्राणोत्सर्ग तक के लिए तैयार रहते, ऐसी थी उनकी अविचल प्रेम-निष्ठा। अब इससे आगे पढ़ें ः बंदर की इस निष्ठा ने ही अल्बर्ट श्वाइत्जर को एकांतवादी जीवन से हटाकर सेवाभावी जीवन बिताने के लिए अफ्रीका जाने की प्रेरणा दी…

-गतांक से आगे…

विधि की विडंबना:बंदरिया कुछ दिन पीछे बीमार पड़ी। बंदर ने उसकी दिन-दिन भर भूखे-प्यासे पास रहकर सेवा-सुश्रुषा की, पर बंदरिया बच न सकी, मर गई। बंदर के जीवन में मानो वज्रपात हो गया। वह गुमसुम जीवन बिताने लगा। इन प्राणियों में विधुर विवाह पर प्रायः किसी में भी प्रतिबंध नहीं है। एक साथी के न रहने पर नर हो या मादा, अपने दूसरे साथी का चुनाव खुशी-खुशी कर लेते हैं। इस बंदर दल में एक से एक अच्छी बंदरियाएं थीं। बंदर हृष्ट-पुष्ट था, किसी भी नई बंदरिया को मित्र चुन सकता था, पर उसके अंतःकरण का प्रेम तथाकथित मानवीय प्रेम की तरह स्वार्थ और कपटपूर्ण नहीं था। पता नहीं उसे आत्मा के अमरत्व, परलोक और पुनर्जन्म पर विश्वास था, इसलिए उसने फिर किसी बंदरिया से विवाह नहीं किया। पर आत्मा जिस धातु से बना है, वह प्रेम के प्रकाश से ही जीवित रहता है, प्रेमविहीन जीवन तो जीवित नरक समान लगता है। बंदर ने अपनी निष्ठा पर आंच न आने देने का संकल्प कर लिया होगा, तभी तो उसने दूसरा विवाह नहीं किया। पर प्रेम की प्यास कैसे बुझे? यह प्रश्न उसके अंतःकरण में उठा अवश्य होगा, तभी तो उसके कुछ दिन पीछे ही अपने जीवन की दिशा दूसरी ओर मोड़ दी और प्रेम को सेवा का रूप दे दिया।

 बंदर एक स्थान पर बैठा रहता। अपने कबीले या दूसरे कबीले का कोई अनाथ बंदर मिल जाता तो वह उसे प्यार करता, खाना खिलाता, भटक गए बच्चे को ठीक उसकी मां के पास पहुंचाकर आता, लड़ने वाले बंदरों को अलग-अलग कर देता, इसमें तो वह कई बार अति उग्र पक्ष को मार भी देता था, पर तब तक चैन नहीं लेता, जब तक उनमें मेल-जोल नहीं करा देता। उसने कितने ही वृद्ध, अपाहिज बंदरों को पाला, कितनों ही का बोझ उठाया। बंदर की इस निष्ठा ने ही अल्बर्ट श्वाइत्जर को एकांतवादी जीवन से हटाकर सेवाभावी जीवन बिताने के लिए अफ्रीका जाने की प्रेरणा दी। श्वाइत्जर बंदर की इस आत्मनिष्ठा को जीवन भर नहीं भूले। संटियागो की धनाढ्य महिला श्रीमती एनन ने पारिवारिक कलह से ऊबकर जी बहलाने के लिए एक भारतीय मैना पाल ली। मैना जब से आई, तभी से उदास रहती थी। एनन की बुद्धि ने प्रेरणा दी। संभव है, उसे भी अकेलापन कष्ट दे रहा हो। सो दूसरे दिन एक और तोता मोल ले लिया। तोता और मैना भिन्न जाति के दो पक्षी भी पास आ जाने पर परस्पर ऐसे घुल-मिल गए कि एक के बिना दूसरे को चैन ही न पड़ता।

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)